भगवान राम ने पृथ्वी को क्यों और कैसे त्याग दिया?
हम लोग सब जानते हैं की भगवान राम कितने महान थे। रामायण तो आप सबने देखा ही होगा। उन्होंने 10,000 साल तक शासन किया। लेकिन एक सवाल मन में आता है आख़िर “भगवान राम ने पृथ्वी को क्यों और कैसे त्याग दिया ?” जय श्री रामएक कथा के अनुशार :- एक बार की बात है, एक वृध संत भगवान राम के दरबार में पहुँचे और अकेले में चर्चा करने का निवेदन किया। भगवान राम उनकी बात मान लिए और एक कक्ष में ले गए और दरवाज़े के बाहर लक्ष्मण को खड़ा कर दिए और बोले की किसी को भी अन्दर ना आने दे वरना उसे में मृत्यु दण्ड दे दूँगा। इतना बोल के भगवान राम और वो वृध इंसान अंदर कक्ष में चले गए।
जब भगवान राम और वो वृध इंसान अंदर कक्ष में चले गए तो वो वृध इंसान ने अपना असली रूप दिखाया। वो कोई और नहीं – विष्णुलोक से भेजे काल देव थे, जिन्हें भगवान राम को यह संदेश देने के लिए धरतीलोक भेजा गया था की – उनका धरती में जीवन पूरा हो चूका है अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।
उसी समय, अचानक ऋषि दुर्वासा आ गए और भगवान राम से बात करना चाहे। उन्होंने लक्ष्मण को कहा की उन्हें भगवान राम से अभी बात करना है परन्तु लक्ष्मण ने उन्हें थोड़ा इंतज़ार करने को कहा और इस बात से ऋषि दुर्वासा को बहुत ही ज्यादा क्रोध आने लगा। ऋषि दुर्वासा ने कक्ष के अंदर जाने का अनुमति मांगी परन्तु लक्ष्मण भगवान राम के आज्ञा का पालन करते हुए ऋषि दुर्वासा को अन्दर जाने से रोकते रहे।
ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कहा अगर तुमने मुझे भगवान् राम से बात करने से रोका तो मैं उन्हें श्राप दे दूँगा। यह बात सुनते ही लक्ष्मण डर गए और सोचने लगे की उन्हें बलि देनी होगी वरना ऋषि दुर्वासा भगवान् राम को श्राप दे देंगे। यह सोचने के बाद उन्होंने ऋषि दुर्वासा को वही रुकने को कहा और वो खुद कक्ष के अंदर चले गए। जैसे लक्ष्मण अंदर गए और काल देव ग़ायब हो गए। फ़िर वही हुआ जो डर था।
भगवान् राम को ना चाहते हुए भी लक्ष्मण को दण्ड देना पड़ा। उन्होंने लक्ष्मण को देश छोड़ने का आदेश दिया। यह दण्ड मृत्यु से काम नहीं था। उसके बाद लक्ष्मण, जो कभी भगवान् राम के बिना एक पल नहीं रहते, उन्होंने पृथ्वी को त्याग करने का निर्णय लिया और सरयू (Saryu) नदी में वो अंदर चले गए। उसके बाद अंदर जाते ही वो शेषनाग के अवतार में बदल गए और विष्णुलोक चले गए।
उसके बाद भगवान् राम पृथ्वीलोक में अकेले हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम नहीं। फिर उन्होंने भी पृथ्वीलोक का त्याग करने का फैसला लिया। उन्होंने पूरा राजपाठ अपने बेटे और भाइयों के बेटो को सौंप दिया और सरयू (Saryu) नदी की ओर प्रस्थान किया। भगवान् राम सरयू (Saryu) नदी के अंदर चले गए और फिर उन्होंने अपने असली रूप (भगवान् विष्णु) में भक्तों को दर्शन दिए। उसके बाद वैकुण्ठ धाम की ओर प्रस्थान किये।
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