हिंदुत्त्व और सनातन धर्म का ज्ञान की रोचक जनकारियाँ।
उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2 - वेद-ज्ञान किसने दिया?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।
प्र.3 - ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4 - ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।
प्र.5 - वेद कितने है?
उत्तर- चार।
प्र.7 - वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर - चार
प्र 8 - वेदों के अंग हैं।
उत्तर - छः।
उत्तर - चार ऋषियों को।
प्र.10 - वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया?
उत्तर - समाधि की अवस्था में।
प्र.11 - वेदों में कैसे ज्ञान है?
उत्तर - सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12 - वेदो के विषय कौन-कौन से हैं?
उत्तर - चार।
प्र.13 - वेदों में।
ऋग्वेद में।
उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15 - क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है?
उत्तर - बिलकुल भी नहीं।
प्र.16 - क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है?
उत्तर - नहीं।
प्र.17 - सबसे बड़ा वेद कौन-सा है?
उत्तर - ऋग्वेद।
प्र.18 - वेदों की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर - वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व।
प्र.19 - वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है?
उत्तर -
उत्तर - आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21 - प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है?
उत्तर - केवल ग्यारह।
प्र.22 - उपनिषदों के नाम बतावे?
उत्तर -
उत्तर - वेदों से।
प्र.24 - चार वर्ण।
उत्तर -
नरक - जहाँ दुःख है।
#भगवान_शिव के "35 रूपों" के रहस्यों का ज्ञान।
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
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1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
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2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
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3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
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4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
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5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
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6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
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7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
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8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
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9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
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10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
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11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
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12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -* ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
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13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
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14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
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15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
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16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
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17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
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18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
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19.* तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
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20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
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21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
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22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
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23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
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24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
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25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
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26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
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27.शिव के प्रमुख नाम : -* शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
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28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
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29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
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30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
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31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
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32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
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33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।
*
34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।
*
35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे।
# हिंदू ग्रंथो के नाम और उनके रचनाकार
- अष्टाध्यायी - पाणिनी
- रामायण - वाल्मीकि
- महाभारत - वेदव्यास
- अर्थशास्त्र - चाणक्य
- महाभाष्य - पतंजलि
- सत्सहसारिका सूत्र - नागार्जुन
- बुद्धचरित - अश्वघोष
- सौंदरानन्द - अश्वघोष
- महाविभाषाशास्त्र - वसुमित्र
- स्वप्नवासवदत्ता - भास
- कामसूत्र - वात्स्यायन
- कुमारसंभवम् - कालिदास
- अभिज्ञानशकुंतलम् - कालिदास
- विक्रमोउर्वशियां - कालिदास
- मेघदूत - कालिदास
- रघुवंशम् - कालिदास
- मालविकाग्निमित्रम् - कालिदास
- नाट्यशास्त्र - भरतमुनि
- देवीचंद्रगुप्तम - विशाखदत्त
- मृच्छकटिकम् - शूद्रक
- सूर्य सिद्धान्त - आर्यभट्ट
- वृहतसिंता - बरामिहिर
- पंचतंत्र - विष्णु शर्मा
- कथासरित्सागर - सोमदेव
- अभिधम्मकोश - वसुबन्धु
- मुद्राराक्षस - विशाखदत्त
- रावणवध - भटिट
- किरातार्जुनीयम् - भारवि
- दशकुमारचरितम् - दंडी
- हर्षचरित - वाणभट्ट
- कादंबरी - वाणभट्ट
- वासवदत्ता - सुबंधु
- नागानंद - हर्षवधन
- रत्नावली - हर्षवर्धन
- प्रियदर्शिका - हर्षवर्धन
- मालतीमाधव - भवभूति
- पृथ्वीराज विजय - जयानक
- कर्पूरमंजरी - राजशेखर
- काव्यमीमांसा - राजशेखर
- नवसहसांक चरित - पदम् गुप्त
- शब्दानुशासन - राजभोज
- वृहतकथामंजरी - क्षेमेन्द्र
- नैषधचरितम - श्रीहर्ष
- विक्रमांकदेवचरित - बिल्हण
- कुमारपालचरित - हेमचन्द्र
- गीतगोविन्द - जयदेव
- पृथ्वीराजरासो - चंदरवरदाई
- राजतरंगिणी - कल्हण
- रासमाला - सोमेश्वर
- शिशुपाल वध - माघ
- गौडवाहो - वाकपति
- रामचरित - सन्धयाकरनंदी
- द्वयाश्रय काव्य - हेमचन्द्र
#हिंदू धर्म के वेदों का ज्ञान
प्र.1 - वेद किसे कहते है?उत्तर- ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।
प्र.2 - वेद-ज्ञान किसने दिया?
उत्तर- ईश्वर ने दिया।
प्र.3 - ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया?
उत्तर- ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।
प्र.4 - ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।
प्र.5 - वेद कितने है?
उत्तर- चार।
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद
वेद | ब्राह्मण |
---|---|
ऋग्वेद | ऐतरेय |
यजुर्वेद | शतपथ |
सामवेद | तांड्य |
अथर्ववेद | गोपथ |
प्र.7 - वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर - चार
वेद | उपवेद |
---|---|
ऋग्वेद | आयुर्वेद |
यजुर्वेद | धनुर्वेद |
सामवेद | गंधर्ववेद |
अथर्ववेद | अर्थवेद |
प्र 8 - वेदों के अंग हैं।
उत्तर - छः।
- शिक्षा
- कल्प
- निरूक्त
- व्याकरण
- छंद
- ज्योतिष
उत्तर - चार ऋषियों को।
वेद | ऋषि |
---|---|
ऋग्वेद | अग्नि |
यजुर्वेद | वायु |
सामवेद | आदित्य |
अथर्ववेद | अंगिरा |
प्र.10 - वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया?
उत्तर - समाधि की अवस्था में।
प्र.11 - वेदों में कैसे ज्ञान है?
उत्तर - सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।
प्र.12 - वेदो के विषय कौन-कौन से हैं?
उत्तर - चार।
ऋषि | विषय |
---|---|
ऋग्वेद | ज्ञान |
यजुर्वेद | कर्म |
सामवे | उपासना |
अथर्ववेद | विज्ञान |
प्र.13 - वेदों में।
ऋग्वेद में।
- मंडल - 10
- अष्टक - 08
- सूक्त - 1028
- अनुवाक - 85
- ऋचाएं - 10589
- अध्याय - 40
- मंत्र - 1975
- आरचिक - 06
- अध्याय - 06
- ऋचाएं - 1875
- कांड - 20
- सूक्त - 731
- मंत्र - 5977
उत्तर- मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।
प्र.15 - क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है?
उत्तर - बिलकुल भी नहीं।
प्र.16 - क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है?
उत्तर - नहीं।
प्र.17 - सबसे बड़ा वेद कौन-सा है?
उत्तर - ऋग्वेद।
प्र.18 - वेदों की उत्पत्ति कब हुई?
उत्तर - वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व।
प्र.19 - वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है?
उत्तर -
- न्याय दर्शन - गौतम मुनि।
- वैशेषिक दर्शन - कणाद मुनि।
- योगदर्शन - पतंजलि मुनि।
- मीमांसा दर्शन - जैमिनी मुनि।
- सांख्य दर्शन - कपिल मुनि।
- वेदांत दर्शन - व्यास मुनि।
#शास्त्र और उपनिषदों का ज्ञान
प्र.20 - शास्त्रों के विषय क्या है?उत्तर - आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जगत की उत्पत्ति, मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान आदि।
प्र.21 - प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है?
उत्तर - केवल ग्यारह।
प्र.22 - उपनिषदों के नाम बतावे?
उत्तर -
- ईश ( ईशावास्य)
- केन
- कठ
- प्रश्न
- मुंडक
- मांडू
- ऐतरेय
- तैत्तिरीय
- छांदोग्य
- वृहदारण्यक
- श्वेताश्वतर।
उत्तर - वेदों से।
प्र.24 - चार वर्ण।
उत्तर -
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- शूद्र
#हिंदू धर्म के अनुसार युगों का ज्ञान
प्र.25 - चार युग?- सतयुग - 17,28000 वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
- त्रेतायुग- 12,96000 वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
- द्वापरयुग- 8,64000 वर्षों का नाम है।
- कलयुग- 4,32000 वर्षों का नाम है।
#पंच महायज्ञ
- ब्रह्मयज्ञ
- देवयज्ञ
- पितृयज्ञ
- बलिवैश्वदेवयज्ञ
- अतिथियज्ञ
# मृत्यु के बाद के लोक
स्वर्ग - जहाँ सुख है।नरक - जहाँ दुःख है।
#भगवान_शिव के "35 रूपों" के रहस्यों का ज्ञान।
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
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रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।
तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
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दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
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