हरिशंकर परसाई – जीवन परिचय, रचनाएं एवं व्यंग्य

हरिशंकर परसाई – जीवन परिचय, रचनाएं एवं व्यंग्य

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय​

हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिला के अंतर्गत जमानी नामक स्थान में 22 अगस्त, सन 1924 ई. को हुआ था| हरिशंकर परसाई के पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद था तथा माता का नाम चंपाबाई प्रसाद था| प्रारंभ से लेकर स्नातक स्तर तक की शिक्षा मध्य प्रदेश में ही हुई| और नागपुर विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया| 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने जंगल विभाग में नौकरी की| खंडवा में 6 माह तक अध्यापन कार्य किया तथा सन् 1941 से 1943 ई. तक 2 वर्ष जबलपुर में स्पेस ट्रेनिंग कॉलेज में शिक्षण कार्य किया| 1943 में वही मॉडल हाईस्कूल में अध्यापक हो गए| 1952 ई. में इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी| 1953 से 1957 ई. तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की| 1957 ई. में नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन की शुरुआत की| कोलकाता के ललित कला विश्वविद्यालय से सन 1960 ई. में डिप्लोमा किया| अध्यापन-कार्य में ये कुशल थे, किंतु आस्था के विपरीत अनेक बातों का अध्यापन इनको यदा-कदा खटक जाता था| 10 अगस्त, 1995 ई. को इनका निधन हो गया|


हरिशंकर परसाई का साहित्यिक परिचय​

हरि शंकर परसाई की साहित्य में इनकी रूचि प्रारंभ से ही थी| अध्यापन कार्य के साथ-साथ ये साहित्य सृजन की ओर मुड़े और जब यह देखा कि इनकी नौकरी इनके साहित्यिक कार्य में बाधा पहुंचा रही है तो इन्होंने नौकरी को छोड़ दी और स्वतंत्र लेखन को ही अपने जीवन का उद्देश्य निश्चित करके साहित्य-साधना में जुट गए| इन्होंने जबलपुर से `वसुधा’ नामक एक साहित्यिक मासिक पत्रिका भी निकाली जिसके प्रकाशन व संपादन ये सोए थे| परसाई वर्षों तक विषम आर्थिक परिस्थिति में भी पत्रिका का प्रकाशन होता रहा और बाद में बहुत घाटा हो जाने पर इसे बंद कर देना पड़ा| सामयिक साहित्य के पाठक इनके लेखों को वर्तमान समय की प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते हैं| परसाई जी नियमित रूप से `सप्ताहिक हिंदुस्तान’, `धर्मयुग’ तथा अन्य पत्रिकाओं के लिए अपनी रचनाएं लिखते रहे हैं|

परसाई जी द्वारा रचित कहानी, उपन्यास तथा निबंध व्यक्ति और समाज की कमजोरियों पर चोटिल करते हैं| समाज और व्यक्ति के कुछ ऐसी विसंगतियां होती है जो जीवन को आडंबरपूर्ण और दूभर बना देती है| इन्हीं विसंगतियों का पर्दाफाश परसाई जी ने किया है| कभी-कभी छोटी-छोटी बातें भी हमारे व्यक्तित्व को विघटित कर देती है| परसाई जी के लेख पढ़ने के बाद हमारा ध्यान इन विसंगतियों और कमजोरियों की ओर चला जाता है|

परसाई जी की शैली व्यंग-प्रधान है| इस प्रकार से परसाई जी व्यंग्य-लेखक ही है| आजकल व्यंग्य का नाम आते ही परसाई जी का नाम अपने-आप सफल व्यंग लेखकों में आ जाता है| इनके व्यंग के विषय सामाजिक और राजनीतिक है| समय की कमजोरी एवं राजनैतिक के फोरैबो पर करारे व्यंग लिखने में ये सिद्धहस्त है| बोलचाल के शब्दों, तत्सम और विदेशी शब्दों का चुनाव उत्तम है| कहां कौन सा शब्द अधिक चोट करेगा, कौन-सा शब्द बात को अधिक गुणवत्ता प्रदान करेगा, इसका ध्यान परसाई जी को सदा रहता है| भाषा में व्यवहारिकता लाने के लिए उन्होंने उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग किया है|

हरिशंकर परसाई जी हिंदी व्यंग के आधार-स्तंभ थे| इन्होंने हिंदी व्यंग को नई दिशा प्रदान की| `विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया| फ्रांसीसी सरकार की छात्रवृत्ति पर उन्होंने पेरिस प्रवास किया| ये उपन्यास एवं निबंध लेखन के बाद भी मुख्यता व्यंग्यकार के रूप में विख्यात रहे|

हरिशंकर परसाई की रचना​

• कहानी संग्रह — 1) हंसते हैं रोते हैं 2) जैसे उनके दिन फिरे

3) भोलाराम का जीव​

इस कहानी में चित्रगुप्त जो कि एक काल्पनिक चरित्र है वह संसार में हो रहे भ्रष्टाचार की स्थिति को बता रहे हैं, कि किस प्रकार लोग अपने मित्र को फल भेजते हैं और वह रास्ते में ही गायब हो जाता है|
• उपन्यास — 1) रानी नागफनी की कहानी, 2) ज्वाला और जल, 3) तट की खोज


हरिशंकर परसाई के व्यंग्य लेख​

• व्यंग्य संग्रह​

1) निठल्ले की डायरी – इसमें परसाई जी की 26 व्यंग संग्रह शामिल है इसमें समाज में हो रहे भ्रष्टाचार, दोगलापन, दिखावा, नौकरशाही पर करारे व्यंग्य लिखे गए हैं|
यह ऐसे व्यक्ति पर लिखे गए हैं जो समाज में निठल्ले व्यक्ति के नाम से जाना जाता है|

• निबंध संग्रह​

1) तब की बात और थी, 2) भूत के पांव पीछे, 3) बेईमानी की परत, 4) पगडंडियों का जमाना , 5) सदाचार की ताबीज, 6) शिकायत मुझे भी है, 7) और अंत में, 8) अपनी-अपनी बीमारी, 9) प्रेमचंद के फटे जूते, 10) माटी कहे कुम्हार से, 11) काग भगोड़ा, 12) आवारा भीड़ के खतरे, 13) ऐसा भी सोचा जाता है, 14) वैष्णो का फीसलन, 15) उखड़े खंभे, 16) विकलांग श्रद्धा का दौर, 17) तुलसीदास चंदन घिसे, 18) हम एक उम्र से वाकिफ है, 19) बस की यात्रा

• स्मरण​

1) तिरछी रेखाएं

हिंदी साहित्य में स्थान​

हरिशंकर परसाई जी का हिंदी साहित्य में रुचि प्रारंभ से ही था| उन्होंने साहित्य-सृजन को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था| इन्होंने `वसुधा’ नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया था| तथा ये सप्ताहिक पत्रिका `हिंदुस्तान’ एवं `धर्मयुग’ पत्रिकाओं के लिए अपनी रचनाएं लिखते रहे हैं| परसाई जी हिंदी व्यंग्य साहित्य के स्तंभ आधार रहे हैं| इन्होंने हिंदी व्यंग्य साहित्य को नई दिशा प्रदान की है| तथा इनका व्यंग साहित्य में विशेष स्थान है|

• संक्षिप्त परिचय​

  • लेखक – हरिशंकर परसाई
  • जन्म – 22 अगस्त सन 1924 ई.
  • जन्म स्थान – जमानी (होशंगाबाद) मध्य प्रदेश
  • संपादन – `वसुधा’ `मासिक पत्रिका’
  • लेखन विधा – व्यंग्य
  • भाषा – सरल, खड़ी बोली
  • शैली – व्यंग्यात्मक, आत्मपरक
  • प्रमुख रचनाएं – सदाचार की ताबीज, रानी नागफनी की कहानी, जैसे उनके दिन फिरे,
  • मृत्यु – 10 अगस्त सन 1995 ई.

FAQ​

1. हरिशंकर परसाई का जन्म कब और कहां हुआ था?
इनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिला के अंतर्गत जमानी नामक स्थान में 22 अगस्त, सन 1924 ई. को हुआ था|

2. हरिशंकर परसाई जी की भाषा-शैली
उनकी भाषा शैली सरल और खड़ी बोली थी|

3. भोलाराम का जीव कहानी का प्रमुख पात्र कौन है?
इस कहानी में चित्रगुप्त जो कि एक काल्पनिक चरित्र है वह संसार में हो रहे भ्रष्टाचार की स्थिति को बता रहे हैं, कि किस प्रकार लोग अपने मित्र को फल भेजते हैं और वह रास्ते में ही गायब हो जाता है|
 
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