नागार्जुन – जीवन परिचय, कृतियां एवं साहित्यिक रचनाएं

नागार्जुन हिंदी साहित्य के महान कवियों में से एक गिने जाते थे| इन्हें हिंदी साहित्य द्वारा कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है| उन्होंने हिंदी साहित्य को उच्च कोटि की रचनाएं दी है|

नागार्जुन – जीवन परिचय, कृतियां एवं साहित्यिक रचनाएं


नागार्जुन का जीवन परिचय​

हिंदी साहित्य के महान कवि वैद्यनाथ मिश्र (नागार्जुन) का जन्म दरभंगा (बिहार) जिले के सतलखा नामक ग्राम में 30 जून, 1911 ई. में हुआ था| इनके पिता का नाम गोकुल मिश्रा तथा इनकी माता का नाम उमा देवी था| इनकी पत्नी का नाम अपराजिता देवी था| इनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला से शुरू तो हुई, पर जारी न रह सकी| ज्ञान प्राप्ति की लालसा इन्होंने स्वाध्याय से पूरी की| इनका आरम्भिक जीवन अभावों का जीवन था| जीवन के अभाव ने ही आगे चलकर इनके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया| व्यक्तिगत दुःख ने इन्हें मानवता के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की| पहले ये ‘यात्री’ उपनाम से लिखा करते थे| इनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था, किन्तु बाद बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर इन्होंने अपना नाम ‘नागार्जुन’ रख लिया| इन्होंने खूब यात्राएँ की और यात्राओं के दौरान जन-जीवन को अत्यन्त निकट से देखा| इससे उपजी सहानुभूति, ममता और करुणा इनके साहित्य का आधार बनी| यात्राओं के दौरान ही ये श्रीलंका जा पहुँचे और वहाँ संस्कृत के आचार्य बन गये| 1941 ई. में ये भारत लौट आये| अपनी विद्रोही प्रकृति के कारण स्वतन्त्र भारत में भी इन्हें जेल जाना पड़ा| हिंदी साहित्य का यह महान लेखक दिनांक 4 नवम्बर, 1998 ई. को 87 वर्ष की आयु में यह महान् विभूति परलोक सिधार गयी|


वैद्यनाथ मिश्र नागार्जुन का साहित्यिक परिचय​

नागार्जुन के हृदय में सदैव शोषित और दलित वर्ग के प्रति संवेदना रही है| अपनी कविताओं में ये अत्याचार-पीड़ित और त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाते, वरन् उन्हें अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी देते हैं| सम-सामयिक राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं पर इन्होंने बहुत कुछ लिखा है| व्यंग्य करने में इन्हें संकोच नहीं होता| तीखी और सीधी चोट करने वाले ये अपने समय के प्रमुख व्यंग्यकार थे| यह एक ऐसे कवि हैं| जिन्हें कोई नहीं बाँध पाया| इनकी कविता बहुत भावपूर्ण होती थी| यह कविताओं की किसी भी प्रकार की सीमा में न बाँधकर उसे सारयुक्त बनाने की कला में कुशल थे|

भाषा​

इनकी भाषा अधिकांशतः लोक भाषा के अधिक निकट है| इसलिए उनकी भाषा सहज, सरल, बोधगम्य, स्पष्ट, स्वाभाविक और मार्मिक प्रभाव डालने वाली है| कुछ थोड़ी-सी कविताओं में संस्कृत के क्लिष्ट-तत्सम शब्द भी हैं; जैसे-विसतन्तु, मदिरारुण, उन्मद है, किन्तु ऐसे शब्दों के प्रयोग से उनकी भावाभिव्यक्ति में बाधा नहीं पड़ती है| संस्कृत, पालि और प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता होकर भी उनमें पाण्डित्य-प्रदर्शन की लालसा नहीं है|जिन कविताओं में संस्कृत की क्लिष्ट तत्सम शब्दावली की अधिकता है उनमें भी पाण्डित्य-प्रदर्शन के प्रति उनका आग्रह न होकर भावाभिव्यक्ति के अनुरूप भाषा की प्रतिष्ठा करने का स्वाभाविक प्रयास है| उन्होंने अपनी भाषा में तद्भव तथा ग्रामीण शब्दों का भी यत्र-तत्र प्रयोग किया है| किन्तु ऐसे शब्द उनकी भावाभिव्यक्ति में बाधक न होकर उसमें एक प्रकार की मिठास उत्पन्न करते हैं| कुछ कविताओं को छोड़कर उन्होंने अपनी शेष कविताओं में लोक-मुख को वाणी दी है| उनकी भाषा में न तो शब्दों की तोड़-मरोड़ है और न उस पर मैथिली का प्रभाव है|

शैली​

इनकी शैली पर उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप है| वे अपनी बात अपने ढंग से कहते हैं, इसलिए उनकी काव्य-शैली किसी से मेल नहीं खाती| उनकी कविताएँ प्रगति और प्रयोग के मणिकांचन संयोग के कारण एक प्रकार के सहज भाव-सौन्दर्य से दीप्त हो उठी हैं| वे अपनी ओर से अपनी शैली में भाषा का न तो शृंगार करते दीख पड़ते हैं और न रस-परिपाक की योजना का अनुष्ठान करते हैं| उनके भाव स्वयं ही अपनी अभिव्यक्ति के अनुकूल अपनी भाषा के रूप निर्माण कर उसमें रस की प्रतिष्ठा कर लेते हैं इसलिए उनकी शैली स्वाभाविक और पाठकों के हृदय में तत्सम्बन्धी भावनाओं को उद्दीप्त करने वाली होती है| उन्होंने अधिकांशतः मुक्तक काव्यों की ही रचना की है| मुक्तक काव्य दो प्रकार के होते हैं- (1) भाव-मुक्तक और (2) प्रबन्ध-मुक्तक| इनके अधिकांश भाव-मुक्तक सुपाठ्य हैं| उनके सुपाठ्य भाव-मुक्तक उनकी भावाभिव्यक्ति के अनुरूप कई प्रकार के हैं| कुछ भाव-मुक्तकों में प्रगति और प्रयोग का मणिकांचन संयोग है तो कुछ में प्रगतिवादी स्वर मुखरित हो उठा है| कुछ में ग्राम्य एवं नागरिक जीवन की संघर्षमय परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण है तो कुछ में प्रणय-निवेदन है| कुछ में प्रकृति-चित्रण है और कुछ में शिष्ट-गम्भीर हास्य तथा सूक्ष्म तीखे व्यंग्य की सृष्टि है| अपने मुक्तकों में उन्होंने मात्रिक छन्दों को स्थान देने के साथ अतुकान्त छन्दों को भी स्थान दिया है|

‘युगधारा’ में उनकी काव्य-शैली की समस्त विशेषताएँ देखी जा सकती हैं| उनकी काव्य-शैली में न तो अलंकारों के प्रयोग के प्रति विशेष आग्रह है और न रेस-परिपाक के प्रति| फिर भी अलंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि के अनेक उदाहरण मिलते हैं|


वैद्यनाथ मिश्र नागार्जुन की रचनाएं​

इनकी रचनाएँ निम्न प्रकार हैं
  • काव्य संकलन – युगधारा, सतरंगें पंखों वाली, प्यासी पथराई आँखें, खून और शोले, भस्मांकुर|
  • उपन्यास – रतिनाथ की चाची, बाबा बटेसरनाथ, दुखमोचन, बलचनमा, नई पौध वरुण के बेटे|
  • अनुवाद – मेद्यदूत, गीत गोविन्द|
इन्होंने मैथिली में यात्री नाम से लिखा है|इसके अतिरिक्त इन्होंने संस्कृत और बंगला भाषा में भी लिखा है| यह एक ऐसे कवि थे जिनको किसी प्रकार का बन्धन स्वीकार नहीं था|

संक्षिप्त परिचय​

  • जन्म – 30 जून, 1911 ई.
  • पिता – गोकुल मिश्रा
  • माता – उमा देवी
  • पत्नी – अपराजिता देवी
  • जन्म स्थान – सतलखा (दरभंगा) बिहार
  • वास्तविक नाम – वैद्यनाथ मिश्र
  • भाषा – सरल, स्पष्ट
  • रचनाएँ – युगधारा, सतरंगें पंखों वाली, रतिनाथ की चाची, नई पौध, बाबा बटेसरनाथ, दुखमोचन
  • मृत्यु – 4 नवम्बर, 1998 ई.

FAQ​

1) नागार्जुन का जन्म कब और कहां हुआ था?

इनका जन्म दरभंगा (बिहार) जिले के सतलखा नामक ग्राम में 30 जून, 1911 ई. में हुआ था|

2) नागार्जुन की मृत्यु कब हुई थी?

इनकी मृत्यु दिनांक 4 नवम्बर, 1998 ई. को मात्रा 87 वर्ष की आयु में हो गई|

3) नागार्जुन आ के माता पिता का नाम क्या था?

इनके पिता का नाम गोकुल मिश्रा तथा इनकी माता का नाम उमा देवी था|

4) नागार्जुन का वास्तविक नाम क्या था?

इनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था|

5) इनकी प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है?

युगधारा, सतरंगें पंखों वाली, रतिनाथ की चाची, नई पौध, बाबा बटेसरनाथ, दुखमोचन आदि इनके प्रमुख रचनाएं हैं|
 
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