सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी एक छायावादी रचनाकार थे| इनके साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ अथवा इन की पहली रचना ‘जन्मभूमि की वन्दना’ नामक कविता से हुआ| इन्होंने अपनी पहचान ‘जूही की कली’ नामक कविता से बनायी। ये छायावाद के चार स्तम्भों में से एक माने जाते थे|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने प्रारम्भ में अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए बंगाल के महिषादल राज्य में नौकरी की| किन्तु अपने स्वाभिमान से परिपूर्ण व्यक्तित्व के कारण उस नौकरी को छोड़ दिया| फलस्वरूप यहाँ से अलग होकर इन्होंने कलकत्ता में अपनी रुचि के अनुसार रामकृष्ण मिशन के पत्र ‘समन्वय’ का सम्पादन का कार्य किया| उसके बाद ‘मतवाला’ के सम्पादक मण्डल में सम्मिलित हुए। तीन वर्ष के पश्चात लखनऊ आकर ‘गंगा पुस्तकमाला’ का सम्पादन करने लगे तथा ‘सुधा’ के सम्पादकीय लेख लिखने लगे| स्वाभिमानी व्यक्तित्व एवं स्वभाव के कारण यहाँ भी इनका मन नहीं रमा और लखनऊ छोड़कर ये इलाहाबाद में रहने लगे| आर्थिक परिस्थिति भोगते हुए इन्होंने जनसाधारण के साथ अपने को एकात्म कर दिया और प्रगतिशील काव्य की रचना करके बड़ी प्रसिद्ध प्राप्त किया| इन्होंने गद्य रचनाएँ ‘चतुरी चमार’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ आदि प्रस्तुत कीं| निरालाजी ने स्वच्छन्दतावादी विचारधारा को लेकर भी अनेक उपन्यास लिखे जैसे – ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’ तथा कहानियाँ लिखी थीं| हिंदी साहित्य के इस महान कवि का मृत्यु सन् 1961 ई० में हो गई|
बंगाल की भूमि में जन्म होने के कारण बँगला भाषा और उसके नवीन चेतना से प्रेरित हिंदी साहित्य का इन्हें भली प्रकार अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला| बंगाल के धार्मिक महापुरुषों- स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, आदि ने भी इन्हें प्रभावित किया|
विश्व प्रख्यात कवि रवीन्द्रनाथ की काव्य-प्रतिभा का अभिनन्दन करते हुए इन्होंने अपने प्रारम्भिक रचनाकाल में रवान्द्र कावता कानन’, की रचना की| किन्तु इनका व्यक्तित्व स्वयं महाप्राण था, इसलिए ये सभी प्रभाव इनके अंदर पूर्णतः समाहित हो गये| निरालाजी की मातृभाषा हिन्दी थी और उसके प्रति इनके मन में पर्याप्त अनुराग था, इसलिए ‘मर्यादा’, ‘सरस्वती’ आदि पत्रिकाओं के गम्भीर अध्ययन के माध्यम से बँगला-भाषियों के बीच रहते हुए भी इन्होंने हिन्दी का अभ्यास किया और हिन्दी में ही साहित्य का सृजन आरम्भ किया|
निरालाजी ने अपने विद्रोहशील व्यक्तित्व को लेकर मन के प्रबल भावावेग को जब वाणी दी तो छन्द के बन्धन सहज ही विच्छिन्न हो गये तथा मुक्तछन्द का आविर्भाव हुआ| कविता का यह स्वच्छन्द स्वरूप इनकी प्रथम रचना ‘जुही की कली’ से ही देखने को मिलती है| साहित्य का स्वच्छन्दतावादी संविधान निरालाजी की रचनाओं में ही सबसे सशक्त रूप में देखने को मिला है|
छायावाद या स्वच्छन्दतावाद की मूलभूत प्रवृत्ति आत्मानुभूति के आन्तरिक स्पर्श से अलंकृत भाषा में अभिव्यक्त है, जो मुक्तछन्द के अतिरिक्त कभी-कभी गीत रूप भी ग्रहण करती है|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के मुख्य काव्य-ग्रन्थ का विवरण इस प्रकार है —’अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’| ‘अनामिका’ में उत्कृष्ट छायावादी कविताएँ संग्रहीत किया गया है| इनकी अत्यधिक समर्थ काव्य-रचना ‘राम की शक्ति-पूजा’ और शोक-गीत ‘सरोज-स्मृति’ इसी संग्रह में देखने को मिलती है| ‘गीतिका’ मुख्यतः शृंगारिक रचना है। साथ ही इसमें देश प्रेम और प्रकृति-चित्रण के भी दर्शन होते हैं। निरालाजी की स्वच्छन्दतावादी काव्यकला का प्रमुख स्वरूप इनके ‘परिमल’ काव्य-संग्रह की रचनाओं में देखने को मिलता है| इसमें हमें सौन्दर्य चेतना के मानवीय, आध्यात्मिक और प्रकृतिपरक सभी रूप देखने को मिल जाते हैं| अतीत के भी भावना और कल्पना से अनुरंजित अनेक भव्य और प्रेरणाप्रद चित्र देखने को मिलते हैं| इनके अतिरिक्त निराला जी की अन्य प्रमुख काव्य रचनाओं का विवरण इस प्रकार हैं—’तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘नये पत्ते’, ‘अर्चना’, बेला ‘आराधना’ आदि। इनका सहज संवेदनशील हृदय समाज के अनेक लोगों के पीड़ितों और प्रपीड़ितों के प्रति सहानुभूति से परिपूर्ण हो उठा है| इसी अनुभूति को लेकर इनका विद्रोही मन सजग हो उठा है और बड़ी ओजस्वी शब्दावली में समाज एवं व्यक्ति और सम्पूर्ण देश को विप्लव के लिए आह्वान करने लगा है|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है—(1)सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक भाषा, (2) माधुर्यपूर्ण, सौष्ठवमयी भाषा, (3) प्रौढ़, सशक्त एवं ओजस्वी भाषा, (4) बोलचाल की चलती भाषा, निराला जी ने स्पष्ट लिखा है कि “हम किसी भाव को जल्दी और आसानी से तभी व्यक्त कर सकेंगे, जब हम उस भाषाको आसानी से जान सके और समझ सके |
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ‘यथा नाम तथा गुण’ के सबल प्रमाण थे| निराले व्यक्तित्व के कारण इन्हें सैकड़ों में से आसानी से पहचाना जा सकता था| जिस ओर भी इनकी निराली लेखनी चली, उधर से ही विजय होकर लौटी| इन्होंने अपने निराले व्यक्तित्व से हिन्दी साहित्य जगत् को निराला रास्ता दिखाया है, निराला रूप दिया, निराली दिशा दी और निराला भाषा प्रदान की| हिन्दी साहित्य संसार अपनी निराली विभूति को कभी भुला न सकेगा|
‘निराला’ का मुक्त एवं क्रान्तिकारी स्वभाव परम्परागत छन्द -विधान को स्वीकार न कर पाया और इन्होंने मुक्त छन्द का विकास का कार्य किया| निराला जी की भाषा संस्कृतनिष्ठता से परिपूर्ण है| कोमल कल्पना के अनुरूप इनकी भाषा की पदावली भी कोमल व शांत है| भाषा में खड़ीबोली की नीरसता नहीं पाई जाती, वरन् उसमें संगीत की मधुरिमा विद्यमान होता है| आलंकारिकता, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता आदि इनके काव्य में प्रमुखता से विद्यमान दिखाई पड़ते है| इन्होंने छायावादी भाषा को नूतन पदावली देकर उसके भण्डार को समृद्ध किया गया है| तथा गूढ़तम भावों को वहन करने की शक्ति प्रदान की की गई है| इनकी दो शैलियाँ स्पष्ट हैं- 1) उत्कृष्ट छायावादी गीतों में प्रयुक्त लम्बी शैली, सामासिक पदावली से युक्त तत्समबहुल, गहन विचार से ओत-प्रोत शैली, 2) सरल, प्रवाहपूर्ण, प्रचलित उर्दू शब्द लिये व्यंग्यपूर्ण और चुटीली शैली| इनके भाव एवं शिल्प का विस्तार छायावाद तक ही सीमित नहीं है, वरन् वह उसके बाद की रचनाशीलता को भी प्रभावित करता है| बादल राग, कुकुरमुत्ता, दान, भिक्षुक जैसी कविताओं में इनका प्रगतिवली स्वर मुखरित होते हुए दिखाई पड़ता है|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की रचनाओं में आग है, पौरुष है और सड़ी गली परम्पराओं से विद्रोह भी देखने को मिलता है| निराला जी हिन्दी के क्रान्तिकारी कवि में से एक थे| इन्होंने जीवन को जिस रूप में जिया, उसकी प्रत्यक्ष छवि इनके काव्य-रचनाओं में देखी जा सकती है| शायद ही हिन्दी के किसी अन्य कवि को जीवन के इतने विरोधों का सामना करना पड़ा हो| प्रलयंकर शिव के समान स्वयं विष पान करके इन्होंने हिन्दी काव्य साहित्य को अमृत पिलाया है| निराला की प्रारम्भिक कविताओं का स्वर छायावादी था इसलिए इन्हें छायावादी चतुष्टय (प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी) में स्थान मिला किन्तु बाद की अनेक कविताओं में उनका स्वर क्रांतिकारी होने के कारण वे प्रगतिवादी काव्य की रचना करते दिखाई दिए हैं|
काव्य रचनाएँ
1) तुलसीदास, 2) अनामिका 3) अणिमा, 4) बेल, 5) अर्चना, 6) कुकुरमुत्ता, 7) राम की शक्ति पूजा, 8) सरोज स्मृति इनकी लम्बी एवं प्रसिद्ध कविताएँ हैं|
9) परिमल – छायावादी रचनाओं का संग्रह है| जिसमें प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है|
10) अनामिका- इसके दो संस्करण प्रकाशित हुए हैं। प्रथम संस्करण में इनकी तीन कविताएँ हैं
11) पंचवटी प्रसंग, 12) जूही की कली, 13) तुम और मैं विशेष उल्लेखनीय है| इसका द्वितीय संस्करण 1931 में प्रकाशित हुआ| इसमें दान, तोड़ती पत्थर, राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति आदि कविताएँ संगृहीत हैं|
14) गीतिका – इसमें 101 गीतों का लघु संग्रह है|
15) तुलसीदास – यह तुलसीदास जी के रचनाओं पर आधारित लिखा एक खण्डकाव्य है।
16) कुकुरमुत्ता,
17) नये पत्ते – यह व्यंग्य प्रधान, कविताओं के संग्रह हैं|
(ख) गद्य रचनाएँ
1) अलका, 2) अप्सरा, 3) लिली, 4) चतुरी, 5) प्रभावती आदि इनकी श्रेष्ठ गद्य रचनाएँ हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी छायावादी युग के कवि है|
2) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जीवनी
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म सन् 1897 ई० बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में हुआ था| इनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी था|
3) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं
तुलसीदास, अनामिका, अणिमा, बेल, अर्चना, कुकुरमुत्ता, राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति इनकी लम्बी एवं प्रसिद्ध कविताएँ हैं|
4) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म और मृत्यु
निराला का जन्म सन् 1897 ई० तथा मृत्यु सन् 1961 ई० में हो गई|
5) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने किस पत्रिका का संपादन किया
इन्होंने सरस्वती एवं मतवाला नामक दो पत्रिका का संपादन किया|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय | suryakant tripathi nirala jeevan parichay
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला स्वच्छन्दतावादी भावधारा के कवियों में सर्वाधिक अनोखे एवं प्रिय व्यक्तित्व की गरिमा से परिपूर्ण कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म सन् 1897 ई० बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में हुआ था| इनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी था| जो कि उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत जिला उन्नाव में स्थित गढ़ाकोला ग्राम के निवासी थे| और महिषादल राज्य में जाकर राजकीय सेवा में कार्यरत थे| जब निरालाजी छोटे अवस्था ही थे| तभी इनके माता-पिता का असामयिक मृत्यु हो गई| युवा अवस्था होने पर साहित्यिक रुचि से सम्पन्न मनोहरा देवी से इनका विवाह सम्पन्न हुआ| लेकिन मनोहरा देवी भी शीघ्र ही इनमें साहित्यिक संस्कार जगाकर एक पुत्र और पुत्री का भार इनके ऊपर छोड़कर इस संसार से विदा हो गयीं| इनकी पुत्री पुत्री सरोज जब बड़ी हुई तो इन्होंने उसका विवाह किया, लेकिन थोड़े ही दिनों में उसकी भी मृत्यु हो गई| निरालाजी अपनी इस विवाहिता पुत्री के निधन से अत्यधिक दुखी हो उठे| मन के इस दुख को इन्होंने अपनी रचना ‘सरोज-स्मृति’ में वाणी दी|सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने प्रारम्भ में अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए बंगाल के महिषादल राज्य में नौकरी की| किन्तु अपने स्वाभिमान से परिपूर्ण व्यक्तित्व के कारण उस नौकरी को छोड़ दिया| फलस्वरूप यहाँ से अलग होकर इन्होंने कलकत्ता में अपनी रुचि के अनुसार रामकृष्ण मिशन के पत्र ‘समन्वय’ का सम्पादन का कार्य किया| उसके बाद ‘मतवाला’ के सम्पादक मण्डल में सम्मिलित हुए। तीन वर्ष के पश्चात लखनऊ आकर ‘गंगा पुस्तकमाला’ का सम्पादन करने लगे तथा ‘सुधा’ के सम्पादकीय लेख लिखने लगे| स्वाभिमानी व्यक्तित्व एवं स्वभाव के कारण यहाँ भी इनका मन नहीं रमा और लखनऊ छोड़कर ये इलाहाबाद में रहने लगे| आर्थिक परिस्थिति भोगते हुए इन्होंने जनसाधारण के साथ अपने को एकात्म कर दिया और प्रगतिशील काव्य की रचना करके बड़ी प्रसिद्ध प्राप्त किया| इन्होंने गद्य रचनाएँ ‘चतुरी चमार’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ आदि प्रस्तुत कीं| निरालाजी ने स्वच्छन्दतावादी विचारधारा को लेकर भी अनेक उपन्यास लिखे जैसे – ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’ तथा कहानियाँ लिखी थीं| हिंदी साहित्य के इस महान कवि का मृत्यु सन् 1961 ई० में हो गई|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्यिक परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला नवीन चेतना के विद्रोहशील स्वरूप की सर्वाधिक और सबसे समर्थ अभिव्यक्ति निरालाजी के काव्य में देखने को मिलता है|बंगाल की भूमि में जन्म होने के कारण बँगला भाषा और उसके नवीन चेतना से प्रेरित हिंदी साहित्य का इन्हें भली प्रकार अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला| बंगाल के धार्मिक महापुरुषों- स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, आदि ने भी इन्हें प्रभावित किया|
विश्व प्रख्यात कवि रवीन्द्रनाथ की काव्य-प्रतिभा का अभिनन्दन करते हुए इन्होंने अपने प्रारम्भिक रचनाकाल में रवान्द्र कावता कानन’, की रचना की| किन्तु इनका व्यक्तित्व स्वयं महाप्राण था, इसलिए ये सभी प्रभाव इनके अंदर पूर्णतः समाहित हो गये| निरालाजी की मातृभाषा हिन्दी थी और उसके प्रति इनके मन में पर्याप्त अनुराग था, इसलिए ‘मर्यादा’, ‘सरस्वती’ आदि पत्रिकाओं के गम्भीर अध्ययन के माध्यम से बँगला-भाषियों के बीच रहते हुए भी इन्होंने हिन्दी का अभ्यास किया और हिन्दी में ही साहित्य का सृजन आरम्भ किया|
निरालाजी ने अपने विद्रोहशील व्यक्तित्व को लेकर मन के प्रबल भावावेग को जब वाणी दी तो छन्द के बन्धन सहज ही विच्छिन्न हो गये तथा मुक्तछन्द का आविर्भाव हुआ| कविता का यह स्वच्छन्द स्वरूप इनकी प्रथम रचना ‘जुही की कली’ से ही देखने को मिलती है| साहित्य का स्वच्छन्दतावादी संविधान निरालाजी की रचनाओं में ही सबसे सशक्त रूप में देखने को मिला है|
छायावाद या स्वच्छन्दतावाद की मूलभूत प्रवृत्ति आत्मानुभूति के आन्तरिक स्पर्श से अलंकृत भाषा में अभिव्यक्त है, जो मुक्तछन्द के अतिरिक्त कभी-कभी गीत रूप भी ग्रहण करती है|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के मुख्य काव्य-ग्रन्थ का विवरण इस प्रकार है —’अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’| ‘अनामिका’ में उत्कृष्ट छायावादी कविताएँ संग्रहीत किया गया है| इनकी अत्यधिक समर्थ काव्य-रचना ‘राम की शक्ति-पूजा’ और शोक-गीत ‘सरोज-स्मृति’ इसी संग्रह में देखने को मिलती है| ‘गीतिका’ मुख्यतः शृंगारिक रचना है। साथ ही इसमें देश प्रेम और प्रकृति-चित्रण के भी दर्शन होते हैं। निरालाजी की स्वच्छन्दतावादी काव्यकला का प्रमुख स्वरूप इनके ‘परिमल’ काव्य-संग्रह की रचनाओं में देखने को मिलता है| इसमें हमें सौन्दर्य चेतना के मानवीय, आध्यात्मिक और प्रकृतिपरक सभी रूप देखने को मिल जाते हैं| अतीत के भी भावना और कल्पना से अनुरंजित अनेक भव्य और प्रेरणाप्रद चित्र देखने को मिलते हैं| इनके अतिरिक्त निराला जी की अन्य प्रमुख काव्य रचनाओं का विवरण इस प्रकार हैं—’तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘नये पत्ते’, ‘अर्चना’, बेला ‘आराधना’ आदि। इनका सहज संवेदनशील हृदय समाज के अनेक लोगों के पीड़ितों और प्रपीड़ितों के प्रति सहानुभूति से परिपूर्ण हो उठा है| इसी अनुभूति को लेकर इनका विद्रोही मन सजग हो उठा है और बड़ी ओजस्वी शब्दावली में समाज एवं व्यक्ति और सम्पूर्ण देश को विप्लव के लिए आह्वान करने लगा है|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है—(1)सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक भाषा, (2) माधुर्यपूर्ण, सौष्ठवमयी भाषा, (3) प्रौढ़, सशक्त एवं ओजस्वी भाषा, (4) बोलचाल की चलती भाषा, निराला जी ने स्पष्ट लिखा है कि “हम किसी भाव को जल्दी और आसानी से तभी व्यक्त कर सकेंगे, जब हम उस भाषाको आसानी से जान सके और समझ सके |
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ‘यथा नाम तथा गुण’ के सबल प्रमाण थे| निराले व्यक्तित्व के कारण इन्हें सैकड़ों में से आसानी से पहचाना जा सकता था| जिस ओर भी इनकी निराली लेखनी चली, उधर से ही विजय होकर लौटी| इन्होंने अपने निराले व्यक्तित्व से हिन्दी साहित्य जगत् को निराला रास्ता दिखाया है, निराला रूप दिया, निराली दिशा दी और निराला भाषा प्रदान की| हिन्दी साहित्य संसार अपनी निराली विभूति को कभी भुला न सकेगा|
‘निराला’ का मुक्त एवं क्रान्तिकारी स्वभाव परम्परागत छन्द -विधान को स्वीकार न कर पाया और इन्होंने मुक्त छन्द का विकास का कार्य किया| निराला जी की भाषा संस्कृतनिष्ठता से परिपूर्ण है| कोमल कल्पना के अनुरूप इनकी भाषा की पदावली भी कोमल व शांत है| भाषा में खड़ीबोली की नीरसता नहीं पाई जाती, वरन् उसमें संगीत की मधुरिमा विद्यमान होता है| आलंकारिकता, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता आदि इनके काव्य में प्रमुखता से विद्यमान दिखाई पड़ते है| इन्होंने छायावादी भाषा को नूतन पदावली देकर उसके भण्डार को समृद्ध किया गया है| तथा गूढ़तम भावों को वहन करने की शक्ति प्रदान की की गई है| इनकी दो शैलियाँ स्पष्ट हैं- 1) उत्कृष्ट छायावादी गीतों में प्रयुक्त लम्बी शैली, सामासिक पदावली से युक्त तत्समबहुल, गहन विचार से ओत-प्रोत शैली, 2) सरल, प्रवाहपूर्ण, प्रचलित उर्दू शब्द लिये व्यंग्यपूर्ण और चुटीली शैली| इनके भाव एवं शिल्प का विस्तार छायावाद तक ही सीमित नहीं है, वरन् वह उसके बाद की रचनाशीलता को भी प्रभावित करता है| बादल राग, कुकुरमुत्ता, दान, भिक्षुक जैसी कविताओं में इनका प्रगतिवली स्वर मुखरित होते हुए दिखाई पड़ता है|
भाषा शैली
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने अपनी रचनाओं में शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ीबोली का प्रयोग किए गए पाए गए हैं| भाषा में अनेक स्थलों पर शुद्ध संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, जिसके कारण इनके भावों को समझने में कठिनाई होती है| सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की छायावादी रचनाओं में जहाँ भाषा की कठिनाई मिलती है, वहीं इसके विपरीत प्रगतिवादी रचनाओं की भाषा अत्यन्त सरल, सरस एवं व्यावहारिक दिखाई पड़ती है| छायावाद पर आधारित इनकी रचनाओं में कठिन एवं दुरूह शैली तथा प्रगतिवादी रचनाओं में सरल एवं सुबोध शैली का प्रयोग देखने को मिलता है|सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की रचनाओं में आग है, पौरुष है और सड़ी गली परम्पराओं से विद्रोह भी देखने को मिलता है| निराला जी हिन्दी के क्रान्तिकारी कवि में से एक थे| इन्होंने जीवन को जिस रूप में जिया, उसकी प्रत्यक्ष छवि इनके काव्य-रचनाओं में देखी जा सकती है| शायद ही हिन्दी के किसी अन्य कवि को जीवन के इतने विरोधों का सामना करना पड़ा हो| प्रलयंकर शिव के समान स्वयं विष पान करके इन्होंने हिन्दी काव्य साहित्य को अमृत पिलाया है| निराला की प्रारम्भिक कविताओं का स्वर छायावादी था इसलिए इन्हें छायावादी चतुष्टय (प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी) में स्थान मिला किन्तु बाद की अनेक कविताओं में उनका स्वर क्रांतिकारी होने के कारण वे प्रगतिवादी काव्य की रचना करते दिखाई दिए हैं|
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएं
इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैंकाव्य रचनाएँ
1) तुलसीदास, 2) अनामिका 3) अणिमा, 4) बेल, 5) अर्चना, 6) कुकुरमुत्ता, 7) राम की शक्ति पूजा, 8) सरोज स्मृति इनकी लम्बी एवं प्रसिद्ध कविताएँ हैं|
9) परिमल – छायावादी रचनाओं का संग्रह है| जिसमें प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है|
10) अनामिका- इसके दो संस्करण प्रकाशित हुए हैं। प्रथम संस्करण में इनकी तीन कविताएँ हैं
11) पंचवटी प्रसंग, 12) जूही की कली, 13) तुम और मैं विशेष उल्लेखनीय है| इसका द्वितीय संस्करण 1931 में प्रकाशित हुआ| इसमें दान, तोड़ती पत्थर, राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति आदि कविताएँ संगृहीत हैं|
14) गीतिका – इसमें 101 गीतों का लघु संग्रह है|
15) तुलसीदास – यह तुलसीदास जी के रचनाओं पर आधारित लिखा एक खण्डकाव्य है।
16) कुकुरमुत्ता,
17) नये पत्ते – यह व्यंग्य प्रधान, कविताओं के संग्रह हैं|
(ख) गद्य रचनाएँ
1) अलका, 2) अप्सरा, 3) लिली, 4) चतुरी, 5) प्रभावती आदि इनकी श्रेष्ठ गद्य रचनाएँ हैं।
एक संक्षिप्त परिचय
कवि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला- जन्म – सन् 1897 ई०
- जन्म स्थान – मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल)
- पिता – रामसहाय त्रिपाठी
- पत्नी – मनोहरा देवी
- प्रमुख रचनाएँ – परिमल, अनामिका, गीतिका, चतुरी चमार, बिल्लेसुर बकरिहा, प्रभावती आदि
- लेखन विधा – कविता, उपन्यास, कहानी, निबन्ध
- भाषा : संस्कृतनिष्ठ, खड़ी बोली
- शैली : सरल और मुहावरेदार
- मृत्यु – सन् 1961 ई०
FAQ
1) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला किस युग के कवि हैसूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी छायावादी युग के कवि है|
2) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जीवनी
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म सन् 1897 ई० बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में हुआ था| इनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी था|
3) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएं
तुलसीदास, अनामिका, अणिमा, बेल, अर्चना, कुकुरमुत्ता, राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति इनकी लम्बी एवं प्रसिद्ध कविताएँ हैं|
4) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म और मृत्यु
निराला का जन्म सन् 1897 ई० तथा मृत्यु सन् 1961 ई० में हो गई|
5) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने किस पत्रिका का संपादन किया
इन्होंने सरस्वती एवं मतवाला नामक दो पत्रिका का संपादन किया|
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