राय कृष्णदास – जीवन परिचय, साहित्यिक रचनाएं एवं कृतियां

राय कृष्णदास हिंदी साहित्य के महान लेखकों में गिने जाते थे| इनका हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान था| इन्होंने हिंदी साहित्य को सर्वश्रेष्ठ रचनाएं दी है|

राय कृष्णदास – जीवन परिचय, साहित्यिक रचनाएं एवं कृतियां


राय कृष्णदास का जीवन परिचय​

राय कृष्णदास का जन्म काशी के प्रसिद्ध राय परिवार में सन् 1892 ई० हुआ था| यह परिवार कला, संस्कृति और साहित्य प्रेम के लिए विख्यात रहा है| भारतेन्दु परिवार से सम्बन्धित होने के कारण इनके पिता राय प्रह्लाददास में अटूट हिन्दी-प्रेम था| इस प्रकार इनको हिन्दी-प्रेम पैतृक दाय के रूप में प्राप्त हुआ है| इनकी स्कूली शिक्षा बहुत स्वल्प हुई, पर इनमें उत्कट ज्ञान-लिप्सा थी| इन्होंने स्वतंत्र रूप से हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया और इनमें अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली| सन् 1980 ई० में भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्म भूषण’ अलंकरण से सम्मानित किया और सन् 1980 ई0 में ही इनका निधन हो गया| हिंदी साहित्य को आज भी इनकी कमी महसूस होती है| इनका हिंदी साहित्य में विशेष स्थान था|


राय कृष्णदास का साहित्यिक परिचय​

राय कृष्णदास की साहित्यिक रुचि के विकास में काशी का तत्कालीन वातावरण भी बहुत दूर तक प्रेरक रहा है| साहित्यिक गतिविधियों के कारण बहुत प्रारम्भ में ही इनकी घनिष्ठता जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, रामचन्द्र शुक्ल आदि प्रमुख कवियों-आलोचकों से हो गयी| कुछ समय बाद ये काशी नागरी प्रचारिणी सभा के कार्यक्रमों में भी प्रमुख रूप से हाथ बँटाने लगे| भारतीय कला-आन्दोलन में भी राय साहब का अप्रतिम स्थान रहा है| इन्होंने ‘भारत कला भवन’ नामक एक विशाल संग्रहालय की स्थापना की थी जो अब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का एक विभाग है| इस संग्रहालय की गणना संसार के प्रमुख संग्रहालयों में की जाती है| इन्होंने भारतीय कलाओं का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत किया है| भारत की चित्रकला तथा भारतीय मूर्तिकला इनके प्रामाणिक ग्रन्थ हैं| प्राचीन भारतीय भूगोल एवं पौराणिक वंशावली पर इन्होंने विद्वत्तापूर्ण शोध निबंध प्रस्तुत किये हैं|

इन्होंने परम्परागत ब्रजभाषा में कविताएँ लिखी हैं, जो ‘ब्रजरज’ में संगृहीत हैं| इनके ‘भावुक’ नामक खड़ीबोली काव्य संग्रह पर छायावाद का स्पष्ट प्रभाव है| राय साहब हिन्दी साहित्य में अपने गद्य-गीतों के लिए प्रसिद्ध हैं| इनके गद्य-गीतों के संग्रह ‘साधना’ और ‘छायापथ’ के नाम से प्रकाशित हैं| ‘संलाप’ और ‘प्रवाल’ में इनके संवाद शैली के निबंध संगृहीत हैं| इनकी कहानियाँ ‘अनाख्या’, ‘सुधांशु’ और ‘आँखों की थाह’ नामक संग्रहों में संकलित हैं| इन्होंने खलील जिब्रान के ‘दि ‘मैड मैन’ का ‘पगला’ नाम से हिन्दी में सुन्दर अनुवाद किया है|

कोमल भावनाओं को सजीव शब्द में प्रकट करना राय साहब की गद्य-शैली की प्रमुख विशेषता है| इनकी गद्य शैली भावात्मक, सांकेतिक और कवित्वपूर्ण है| इन्होंने हिन्दी गद्य को एक नया आयाम प्रदान करके अपनी मौलिकता का परिचय दिया है| हिन्दी में गद्य-गीत की विधा का प्रवर्तन राय साहब ही ने किया| आधुनिक युग को गद्य का युग कहा जाता है, जिसकी विशेषता यह है कि गद्य ने अपनी शक्ति के द्वारा पद्य को भी आत्मसात् कर लिया है| वास्तव में पद्य व गद्य को पूर्णतः पृथक् नहीं किया जा सकता| इसका प्रमाण हमें इनके गद्य-गीतों में मिलता है| इन गीतों में पद्य की तरह तुक तो नहीं है परन्तु लय और संगीत पूर्णतः विद्यमान है| शब्द चयन, वाक्य-विन्यास और अलंकारों के प्रयोग ने इन गद्य-गीतों को भव्यता प्रदान कर दी है| आत्मा और प्रकृति के सौन्दर्य का प्रकाश इन गद्य-गीतों में बिखरा हुआ दिखलायी पड़ता है| ये गीत सरल, सुगम और आकार में लघु हैं| काव्य की जटिलता से ये दूर हैं| इन्हें भले ही गाया न जा सके, पर गुनगुनाया जा सकता है|

राय कृष्णदास अपने गद्य-काव्य की मधुर एवं रमणीय शैली द्वारा पर्याप्त कीर्ति अर्जित कर चुके हैं| ‘साधना’ के निबंधों में जीवन और परमात्मा के बीच की क्रीड़ाओं के रेखांकन में राय साहब को अभूतपूर्व सफलता मिली है| इन निबंधों में मनमोहक ढंग से प्रिय और प्रिया की आँखमिचौनी के सजीव चित्र प्रस्तुत हुए हैं|

भाषा शैली​

इनकी भाषा-शैली कवित्वपूर्ण होते हुए भी सहज और सरल है| न तो उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का आग्रह है और न ही बोलचाल के सामान्य शब्दों की उपेक्षा इसी प्रकार इनके वाक्य-विन्यास में भी कोई जटिलता नहीं है| कोमल भावनाओं को सजीव शब्दों में प्रकट कर देना राय साहब की गद्य-शैली की प्रमुख विशेषता है| इनकी गद्य शैली भावात्मक, सांकेतिक और कवित्वपूर्ण है| इन्होंने संस्कृत शब्दों के साथ-साथ उर्दू के व्यावहारिक शब्दों का भी प्रयोग किया है| प्रान्तीय और ग्रामीण शब्दों का भी प्रयोग हुआ है| अलंकरण का प्रयोग सहज रूप में हुआ है, किसी बनावट के साथ नहीं| मीरा के गीतों के समान भावुक हृदय की सहज अनुभूतियाँ इनके गीतों में प्रकट हुई हैं|

इन्होंने अपने गद्य-गीत में यह बताया गया है कि आनन्द का स्रोत अपने अन्दर ही विद्यमान है| प्रायः लोग आनन्द की खोज वस्तुजगत् में करते हैं| उनकी यह खोज पता नहीं कितने जन्मों से चल रही लेकिन एक पल के लिए भी मनुष्य यदि अपने भीतर निहार ले तो निश्चित रूप से उसे आनन्द के अक्षय स्रोत का पता लग जायेगा| मनुष्य अशेष सृष्टि के साथ ज्यों ही आत्मीय सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, त्यों ही उसे अपने सही स्वरूप का बोध हो जाता है| इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति एक भ्रांत पथिक है| वह अशेष सुख और आनन्द की तलाश में है| उसकी तलाश निरंतर जारी है| लेकिन वह पूर्ण सुख और आनन्द की खोज के लिए जिस कल्पना लोक के स्वप्न रचता है, उस रचना का मुख्याधार यही वस्तुजगत् है| हम वस्तुजगत् के आधार पर ही कल्पना करते हैं| हमारी कल्पना समाज एवं बाह्य परिवेश से निरपेक्ष नहीं होती| अतः दूसरे लोक की कल्पना करते समय इस जगत् से कट जाना प्रांति है| सच्चाई तो यह है कि इस जागृति के भीतर ही हमें पूर्ण सुख और आनन्द की प्राप्ति हो सकती है, लेकिन इसके लिए हमें अपने सही स्वरूप को जानने का प्रयास अवश्य करना पड़ेगा|


संक्षिप्त परिचय​

  • जन्म–सन् 1892 ई०
  • मृत्यु – सन् 1980 ई०
  • जन्म-स्थान—काशी (उ० प्र०)
  • उपनाम–नेही
  • पिता—राय प्रह्लाददास
  • रुचि–चित्रकला, मूर्तिकला एवं पुरातत्त्व

FAQ​

1) राय कृष्णदास की रचनाएँ?

साधना, अनाख्या, सुधांशु, प्रवाल आदि इनके प्रमुख रचनाएं है|

2) राय कृष्णदास का जीवन जीवन परिचय?

राय कृष्णदास का जन्म काशी के प्रसिद्ध राय परिवार में सन् 1892 ई० हुआ था|

3) राय कृष्णदास का जन्म कब हुआ था?

इनका जन्म काशी के प्रसिद्ध राय परिवार में सन् 1892 ई० हुआ था|

4) राय कृष्णदास की मृत्यु कब हुई थी?

हिंदी साहित्य के इतिहास लेखक की मृत्यु सन् 1980 ई0 में हो गया|
 
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