जयशंकर प्रसाद – जीवन परिचय, रचनाएं एवं साहित्यिक परिचय

जयशंकर प्रसाद जी आधुनिक काल के छायावादी कवि थे| इन्होंने पन्द्रह वर्ष की अवस्था से ही लिखना आरम्भ कर दिया था| ये बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न महान साहित्यकार थे| इन्हें काव्य, नाटक, कहानी, निबन्ध तथा उपन्यास सभी प्रकार की साहित्यिक रचनाएँ कीं थी, किन्तु मूलतः ये कवि थे| पहले ‘कलाधर’ नाम से ब्रजभाषा में कविता लिखा करते थे, इनकी प्रारम्भिक कविताएँ ब्रजभाषा में ही पाया जाता है|

जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठ प्रतिभा संपन्न कवि थे| द्विवेदी-युग की स्थूल और इतिवृत्तात्मक कविता-धारा को सूक्ष्म भाव-सौन्दर्य, रमणीयता एवं माधुर्य से परिपूर्ण कर प्रसादजी ने नवयुग का गठबंधन किया| ये छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने साथ ही नाटककार एवं कहानीकार भी रहे हैं|

जयशंकर प्रसाद – जीवन परिचय, रचनाएं एवं साहित्यिक परिचय


जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय​

जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी, 1889 ई० में भारत के उत्तर प्रदेश में काशी के सुँघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था| जयशंकर प्रसाद के माता का नाम मुन्नी देवी तथा पिता का नाम देवी प्रसाद था| छोटी अवस्था में ही पिता तथा बड़े भाई के मृत्यु हो जाने के कारण इनकी शिक्षा पूरी ना हो सकी | घर के व्यापार को सँभालते हुए भी इन्होंने स्वाध्याय पर विशेष ध्यान रखा| घर पर ही इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया| परिवारजनों की मृत्यु, अर्थ-संकट, पत्नी की मृत्यु का वियोग आदि संघर्षों को अत्यन्त समस्याओं को झेलते हुए| यह अलौकिक प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार हिन्दी के मन्दिर में अमूल्य रचना-सुमन अर्पित करता रहा| जयशंकर प्रसाद 14 जनवरी, 1937 ई. को क्षय रोग से ग्रसित होने के कारण साहित्य के इस महान कवि का मृत्यु हो गया|


जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय​

‘कानन-कुसुम’, ‘चित्राधार’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’ आदि प्रसादजी की प्रमुख काव्य-कृतियाँ थी| ‘कामायनी’ हिन्दी काव्य का गौरव-ग्रन्थ में से एक मानी जाती है| ‘विशाख’, ‘राज्यश्री’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘अजातशत्रु’, ‘चन्द्रगुप्त’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’ आदि उनके उत्कृष्ट नाटक माने जाते हैं| अनेक कहानी-संग्रह, कई उपन्यास तथा निबन्धों की रचना करके जयशंकर प्रसाद ने अपनी प्रतिभा का प्रसाद हिन्दी को प्रदान किया| तथा इसके साथ-साथ ख्याति भी प्राप्त की है|

जयशंकर प्रसाद का दृष्टिकोण विशुद्ध मानवीय रहा है| उसमें आध्यथा| ये जीवन की चिरन्तन समस्याओं का कोई चिरन्तन माननीय समाधान खोजना चाहते थे| इच्छा, ज्ञान और क्रिया का सामंजस्य ही उच्च मानवता मानते थे| उसी की प्रतिष्ठा जयशंकर प्रसाद ने की है| प्रवृत्ति और निवृत्ति का यह समन्वय ही भारतीय संस्कृति की अनुपम देन है और ‘कामायनी’ के माध्यम से यही सन्देश जयशंकर प्रसाद ने सम्पूर्ण मानवता दिखाया है|

इनकी प्रारम्भिक रचनाओं में ही, संकोच और झिझक होते हुए भी कुछ कहने को आकुल चेतना के दर्शन होते हैं| ‘चित्राधार’ में ये प्रकृति की सुंदरता और माधुर्य पर मुग्ध हैं| ‘प्रेम पथिक’ में प्रकृति की पृष्ठभूमि में कवि-हृदय में मानव सौन्दर्य के प्रति जिज्ञासा का भाव जागता है| इनकी कविता में माधुर्य तथा पद-लालित्य भरा है| माधुर्य-पक्ष की ओर स्वभावतः इनकी प्रवृत्ति होने से रहस्य-भावना में भी वही संयोग-वियोग वाली भावनाएँ व्यक्त हुई हैं| ‘आँसू’ जयशंकर प्रसाद जी का उत्कृष्ट, गम्भीर, विशुद्ध मानवीय विरह काव्य है, जो प्रेम के स्वर्गीय रूप का प्रभाव छोड़ता है, इसीलिए कुछ लोग इसे आध्यात्मिक विरह का काव्य मानते हैं| ‘कामायनी’ प्रसाद-काव्य की सिद्धावस्था है, उनकी काव्य-साधना का पूर्ण परिपाक है| कवि मनु और श्रद्धा के बहाने पुरुष और नारी के शाश्वत स्वरूप एवं मानव के मूल मनोभावों का काव्यगत चित्र अंकित किया है| ने काव्य, दर्शन और मनोविज्ञान की त्रिवेणी ‘कामायनी’ निश्चय ही आधुनिक काल की सर्वोत्कृष्ट सांस्कृतिक रचना मानी जा सकती है|

जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि थे| प्रेम और सौन्दर्य उनके काव्य का प्रधान विषय है| मानवीय संवेदना उसका प्राण है| प्रकृति को सचेतन अनुभव करते हुए उसके पीछे परम सत्ता का आभास कवि ने सर्वत्र किया है तथा अपने पाठकों को कराया है| यही इनका रहस्यवाद है| इनका रहस्यवाद साधनात्मक नहीं है| वह भाव-सौन्दर्य से संचालित प्रकृति का रहस्यवाद है| अनुभूति की तीव्रता, वेदना, कल्पना प्रणवता आदि प्रसाद-काव्य की कतिपय अन्य विशेषताएँ हैं|

जयशंकर प्रसाद ने काव्य-भाषा के क्षेत्र में भी युगान्तर उपस्थित किया है| द्विवेदी युग की अभिधा प्रधान भाषा और इतिवृत्तात्मक शैली के स्थान पर प्रसादजी ने भावानुकूल चित्रोपम शब्दों का प्रयोग पाया गया है| लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता से युक्त इनकी भाषा में अद्भुत नाद-सौन्दर्य और ध्वन्यात्मकता है| चित्रात्मक भाषा में संगीतमय चित्र अंकित किये हैं| इन्होंने प्रबन्ध तथा गीति-काव्य दोनों रूपों में समान अधिकार से श्रेष्ठ काव्य-रचना की है| झरना एवं लहर आदि उनकी मुक्तक काव्य-रचनाएँ हैं| प्रबन्ध-काव्यों में ‘कामायनी’ जैसा रत्न इन्होंने हिंदी साहित्य को दिया है|

जयशंकर प्रसाद का काव्य अलंकारों की दृष्टि से भी अत्यन्त समृद्ध है| प्रायः सादृश्यमूलक अर्थालंकारों में ही इनकी वृत्ति अधिक रमी है| परम्परागत अलंकारों को ग्रहण करते हुए भी इन्होंने नवीन उपमानों का प्रयोग करके उन्हें नयी विशेषताएं प्रदान की है| अमूर्त उपमान-विधान उनकी विशेषता है| मानवीकरण, ध्वन्यार्थ व्यंजना, विशेषण-विपर्यय जैसे पाश्चात्य प्रभाव से ग्रहीत आधुनिक अलंकारों के भी सुन्दर प्रयोग इनकी रचनाओं में देखने को मिलते हैं| विविध छन्दों का प्रयोग और नवीन छन्दों की उद्भावना भी प्रसादजी ने की है| वस्तुतः इनका हिंदी साहित्य अनन्त वैभव-सम्पन्न है|

भाषा शैली​

इनकी भाषा पूर्णतः साहित्यिक परिमार्जित एवं परिष्कृत खड़ी बोली हिन्दी है| भाषा प्रवाहयुक्त होते हुए भी संस्कृतनिष्ठ है, जिसमें सर्वत्र प्रसाद एवं माधुर्य गुण पाए गए है| अपने सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने के लिए इन्होंने व्यंजना एवं लक्षणा शब्द शक्तियों का सहारा लिया है| इनकी शैली काव्यात्मक चमत्कारपूर्ण अत्यन्त सरस एवं मधुर है|

प्रकृति में चेतनता की अनुभूति, रहस्यमयता, सौन्दर्य-निरूपण, नारी-चित्रण आदि भागवत विशेषताएँ इनके काव्य पाई गई हैं| संस्कृतनिष्ठ कोमलकान्त पदावली, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता, आलंकारिता आदि भाषागत प्रवृत्तियाँ इनके काव्य में स्वाभाविक रूप में देखने को मिलते हैं|

वस्तुत: हिन्दी में नवीन युग का द्वार ‘प्रसाद’ ने ही खोला है| आज अनेक विद्वान् एक स्वर में इन्हें छायावाद का प्रवर्तक और उसका श्रेष्ठ कवि मानते हैं | निश्चय ही ये युग-प्रवर्तक साहित्य स्रष्टा थे| इतिहास, दर्शन और कला के मणि-कांचन संयोग ने इनके काव्य को अपूर्व गरिमा प्रदान की है| छायावादी शैली-शिल्प का प्रौढ़तम रूप इनकी कविता में उपलब्ध है|

हिन्दी साहित्य में इनका महत्त्व इसी बात से स्पष्ट है कि तुलसीदास जी की ‘श्रीरामचरितमानस’ के बाद दूसरा स्थान ‘कामायनी’ को ही दिया जाता है| निश्चित ही कामायनीकार का कृतित्व अविस्मरणीय एवं अमूल्य है| ये हिन्दी के सफल नाटककार एवं कथाकार भी माने जाते हैं|


जयशंकर प्रसाद की रचनाएं​

इनकी प्रमुख रचनाएं निम्न हैं।

काव्य

1) कामायनी – इस ग्रन्थ में जहाँ मनु और श्रद्धा को प्रलय के बाद सृष्टि-संचालक बताया गया है, वहीं दार्शनिक बिन्दु पर मनु, श्रद्धा और इड़ा के माध्यम से मानव को हृदय (श्रद्धा) और बुद्धि (इड़ा) के समन्वय का आदेश दिया गया है| आँसू-यह आधुनिक हिन्दी साहित्य की अनुपम धरोहर है| इसमें हृदय की व्यथा को मार्मिक शैली में व्यक्त किया है|

2) झरना- इसमें प्रेम और सौन्दर्य के साथ-साथ प्रकृति के मनोरम रूप का भी चित्रण किया गया है| लहर- इसमें छायावाद का प्रौढ़तम रूप मिलता है| इसमें हृदयगत भावों के बड़े ही मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया गया हैं|

3) कानन कुसुम- इसमें खड़ी बोली की छह कविताएँ तथा शेष छायावादी गीत हैं| यह इनकी फुटकर रचनाओं का संकलन है|

4) चित्राधार- इसमें इनकी प्रारम्भिक ब्रज भाषा की रचनाएँ संकलित हैं|

नाटक

ये एक सफल नाटक लेखक भी थे| इनके नाटकों का संग्रह इस प्रकार है – 1) चन्द्रगुप्त, 2) स्कन्दगुप्त, 3) ध्रुवस्वामिनी, 4) कामना, 5) जनमेजय का नागयज्ञ, 5) विशाख, 6) राज्यश्री, 7) अजातशत्रु, 8) प्रायश्चित्त

उनके मुख्य नाटक है|

एकांकी

1) एक घूँट

उपन्यास

इन्होंने तीन उपन्यास लिखे

1) कंकाल, 2) तितली, 3) इरावती (अपूर्ण)

कहानी संग्रह

उन्होंने उत्कृष्ट कहानियाँ भी लिखीं| इन कहानियों में भारत के अतीत का गौरव साकार हो उठता है| इनके कहानी संग्रह

इस प्रकार हैं – 1) छाया, 2) प्रतिध्वनि, 3) आँधी, 4) इन्द्रजाल, 5) आकाशदीप

निबन्ध

1) काव्य और कला

साहित्य में स्थान​

ये एक असाधारण प्रतिभाशाली कवि थे उनके काव्य में एक ऐसा आकर्षण एवं चमत्कार है कि पढ़ने वाला पाठक उसमें रसमग्न होकर अपनी सुध-बुध खो बैठता है| निस्सन्देह वे आधुनिक| हिन्दी-काव्य-गगन के अप्रतिम तेजोमय मार्तण्ड हैं|

संक्षिप्त परिचय​

जन्म – 30 जनवरी 1989 ई०

जन्म – स्थान-काशी (उत्तर प्रदेश)

पिता – देवीप्रसाद

छायावाद के प्रवर्तक

लेखन विधा – काव्य, नाटक, उपन्यास, निबन्ध

• भाषा – संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली

शैली – प्रबन्ध काव्य एवं मुक्तक

• प्रमुख रचनाएँ – कामायनी, आँसू, लहर, झरना, चित्राधार, कानन कुसुम, प्रेम पथिक

• मृत्यु – 14 जनवरी 1937 ई०

FAQ​

जयशंकर प्रसाद का जन्म कहां हुआ था?
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के काशी में 18 जनवरी सन 1989 ई. में हुआ था|

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी?
प्रसाद जी की मृत्यु 14 जनवरी सन 1937 में हुई थी|

जयशंकर प्रसाद के नाटक?
इनके नाटक का विवरण इस प्रकार है — चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, कामना, जनमेजय का नागयज्ञ, विशाख, राज्यश्री, अजातशत्रु, प्रायश्चित्त आदि इनके मुख्य नाटक है|

जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली?
प्रसाद जी की शैली काव्यात्मक चमत्कारपूर्ण अत्यन्त सरस एवं मधुर है| इतिहास, दर्शन और कला के मणि-कांचन संयोग ने इनके काव्य को अपूर्व गरिमा प्रदान की है| इनकी शैली मुख्यत प्रबन्ध काव्य एवं मुक्तक थी|

जयशंकर प्रसाद की कृतियां?
ध्रुवस्वामिनी, अजातशत्रु, चित्राधार, कानन-कुसुम, झरना, कामायनी आदि प्रसाद जी की प्रमुख कृतियां है|
 
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