बक्सर का पचकोश मेला एक पौराणिक कथा - Buxar ka Pachkosh mela

भारत हमेशा से ही विविधताओं, मान्यताओं, लोक कथाओ एवं पौराणिक कथाओ का देश रहा है, आज हम ऐसे ही त्रेता युग की एक कथा और उससे जुडी मान्यताओ को आपके लिए यहाँ प्रकाशित कर रहे है,हम यहाँ एक ऐसे ही पौराणिक कथाओ से जुडी एक मेले का ज़िक्र कर रहे है जिसे हम पचकोश मेला या पचकोशी मेला भी कहते है ये मेला बिहार के बक्सर जिले में मनाया जाता है यहाँ दूर-दूर से लोग इस मेले में सम्मलित होते है पटना आरा बक्सर आसपास सभी गावों के लोग उस दिन यहाँ इस मेले में सम्मलित होते है।

इस वर्ष 27 November शनिवार 2021 से शुरू हो रहा है, बक्सर का प्रसिद्ध लिट्टी चोखा का पचकोश मेला।


मान्यता (क्यों मानते है पंचकोश मेला)​

वहाँ के लोगों के मान्यता अनुसार जब प्रभु राम एवं लक्ष्मण जी विश्वामित्र जी के साथ सिद्धाश्रम यानी बक्सर भूमि पर पधारे थे तब हर एक कोस यानी हर 3 km के पड़ाव पर अलग-अलग तरह का भोजन का व्यवस्था वहाँ के लोगों और ऋषियों द्वारा किया गया था। इस तरह श्रीराम जी के पांच पड़ाव पर पांच तरह का भोजन कराया गया इसी मान्यता अनुसार वहाँ के लोग उस-उस स्थान पर उस दिन वही भोजन करते है। यह पचकोश मेला माघ शीर्ष यानी अगहन माघ के कृष्ण पक्ष के पहली तिथि से सुरु होती है एवं पंचमी तिथि को समाप्त हो जाती है ।

मान्यता (क्यों मानते है पंचकोश मेला)


1.अहिरौली​

श्रीराम जी का पहला पड़ाव अहिरौली था जो की गौतम ऋषि का आश्रम भी रहा था और उन्ही के श्राप के कारण देवी अहल्या बाई वहाँ पत्थर में तब्दील हो गई थी, परभु श्रीराम ने देवी अहल्या बाई को अपने पैरों से स्पर्श करके फिर से पत्थर से स्त्री रूप दिया, तत पश्चात् प्रभु श्रीराम ने वहाँ पूड़ी पुवा का भोजन किया था , आज भी वैसे ही वहाँ देवी अहल्या का पूजन करने के बाद पूवा पकवान प्रसाद के रूप ग्रहण करते है वह आज भी देवी अहल्या का मंदिर आपको वहाँ मिल जायेगा, माता के मन्दिर में औरतों हुजुम जमता है औरतें यहाँ आँचल नृत्य भी करती पूरे दिन माता के मंदिर में भीड़ रहता है।

अहिल्या मंदिर


अहिल्या मंदिर


2. नादाओ गाँव​

दूसरा पड़ाव अहिरौली से 1 कोस यानी 3 कम की दुरी पर नदांव गाँव है जो पौराणिक कथानुसार नारद ऋषि का आश्रम हुआ करता था, वहाँ प्रभु श्रीराम ने सत्तू और मूली का भोजन ग्रहण किया था वहाँ नर्बदेश्वर शिव मंदिर भी स्थित है। यहाँ भक्त शिव मंदिर में माथा टेककर नजदीकी सरोवर के पास सत्तू को ही भोजन रूप में ग्रहण करते है ।

नागेश्वर नाथ मंदिर


नादाओ गाँव



3. भभुवर​

तीसरा पड़ाव भभुवर था जहा श्रीराम जी ने चूड़ा दही का भोजन ग्रहण किया था, भभुवर भार्गव ऋषि का आश्रम हुआ करता था। कहाँ जाता है कि यहाँ लक्ष्मण जी ने भार्गव ऋषि के आश्रम के पास भोलेनाथ को जलाभिषेक करने के लिए पताल गँगा को अवतरित किया था , आज उस सरोवर का नाम भार्गव सरोवर है, और भोले बाबा को भारगेश्वर महादेव कहा जाता है 100 एकड़ में फैले इस सरोवर की दुर्दशा देखकर मन हीन हो जाता है ।

4. बड़का नुवाओ​

चौथा पडाव बड़का नुवाओ था जो की उद्यालक ऋषि का आश्रम था जहा प्रभु श्रीराम ने खिचड़ी चोखा का भोजन ग्रहण किया था

5. बक्सर​

अंतिम पड़ाव सिद्धाश्रम यानी बक्सर था जो की ऋषि विश्वामित्र का आश्रम था जहा प्रभु श्रीराम ने ताड़का का वध किया था, यहाँ प्रभु श्रीराम ने लिट्टी चोखा का सेवन किया था। , यहाँ आते-आते मेला अपना भब्या रूप ले लेता है ,यहाँ दूर दराज से लोग आते है पूरा चरितर्वन क़िला मैदान नाथ घाट, रामरेखा घाट पर जन सैलाब उमड़ आता है, आप यहाँ खली हाथ भी आएंगे तो लिट्टी चोखा बनाने की सब सामग्री मिल जाएगी अगर आप दूर से आये है यहाँ तो उस दिन आप किसी से भी लिट्टी चोखा मांग कर खा सकते है लोग आपको प्यार से ऐसे ही खिला देंगे।

बक्सर


बक्सर


उस दिन आप को अगर जगह नहीं मिल रही है तो आप किसी के घर सामने बैठ कर लिट्टी चोखा बना सकते है आपको कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। उस दिन बक्सर की दुकानों से वहाँ की Famous सोनपापड़ी जल्दी नहीं मिलेगी, शाम से पहले ही पूरी दुकानों से सोनपापड़ी गायब हो जाती है ,वहाँ के लोग इस मेले की तैयारी बहुत पहले से करना सुरु कर देते है। इस मेले को वहाँ के लोग लिट्टी चोखा या लिट्टी भांटा भी कहते है , उस पावन दिन को बक्सर की धरती जैसे धुंवे में तैरती नज़र आती है पूरा आकाश लिट्टी बनाने वाले गोबर के उपलों के धुंवे से ढंक जाता है ।

निष्कर्ष​

ये मेला एक लोक कथा पर आधरित है अब इस मेले के बारे आपका क्या कहना आप हमें कमेंट बॉक्स में टिप्पणी करके बता सकते है

धन्यवाद्।
 
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