देखते हो बस ऐब ही ऐब मुझ में…!!
मीडिया से हो गए हो आजकल तुम…!!
हमें देख कर जब उन्होने मुँह मोड लिया,
एक तसल्ली सी हो गयी की चलो, पहचानते तो है..!!
इशारों में बात करनी थी, तो पहले बताते,
हम शायरी को नही, आँखों को सजाते।
चाहूँ तो चंद लफ़्ज़ों में तुम्हारा पूरा शहर भिगो दूँ..
खैर छोड़ो गुमनाम ही रहने दो ये शायर के इश्क़ की कहानी है..!!
दुनिया कितनी छोटी है न तुम पर आ कर रुक सी गई है।
गम की परछाईयाँ, यार की रुसवाईयाँ।
वाह रे मुहोब्बत, तेरे ही दर्द और तेरी ही दवाईयां।।
उदासी, शाम, तन्हाई, यादे, बेचैनी..
मुझे सब सौंपकर सुरज उतर जाता है पानी मे..!!
जिस दिन मेरी मौत कि खबर आयेगी लोग कहेंगे,
मिला तो कही नही पर शायरी अच्छा करता था।
कैसे मुमकिन था किसी और दवा से इलाज ग़ालिब,
इश्क़ का रोग था, बाप की चप्पल से ही आराम आया।





मिल जायेंगा हमें भी कोई टूट के चाहने वाला,
अब सारा शहर का शहर तो बेवफा नहीं हो सकता..!!
रिश्ता तोड़ना मेरी फ़ितरत में नहीं,
हम तो बदनाम हैं रिश्ता निभाने के लिये..!!
उनके रूठने का तो मत पूछिये जनाब ,
वो तो इस बात पे भी रूठे है कि मनाया नहीं हमने।
हमें भी याद रखें जब लिखों तारीख गुलशन की,
की हमने भी लुटाया है चमन में आशियां अपना।
समुंदर बहा देने का जिगर तो रखते है लेकिन,
हमें आशिकी की नुमाइश की आदत नहीं है दोस्त।
जन्नत-ए-इश्क मैं हर बात अजीब होती है,
किसी को आशिकी तो किसी को शायरी नसीब होती है।
वक़्त के बदलने से दिल कहाँ बदलते हैं,
आप से मोहब्बत थी आप से मोहब्बत है।
तिलिस्म-ए-मोहब्बत है आशिक़ का हाल,
उन्हें भी ये क़िस्सा सुनाएँगे हम।
आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है,
जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है।
हम जैसा आशिक-ऐ-दिल तुझे कही भी नही मिलेगे क्योकि
एक हम ही हे जो तेरे सितम भी सहेगे और तुझे प्यार भी करेंगे।
अभी तो चंद लफ़्ज़ों में समेटा है तुझे,
अभी तो मेरी किताबों में तेरा सफ़र बाक़ी है।
काश कोई पैमाना होता मोहब्बत मापने का,
तो हम शान से आते तेरे सामने सबूत के साथ।
मुमकिन नही है हर नजर में बेगुनाह रहना,
कोशिश करें कि खुद की नजरों में बेदाग हों।
मुझे तालीम दी है मेरी फितरत ने ये बचपन से,
कोई रोये तो आँसू पोंछ देना अपने दामन से।
ये लाली, ये काजल, जुल्फें भी खुली खुली
यूँ ही जान मांग लेती, इतना इंतज़ाम क्यूं किया।
जिंदगी के सफ़र की घड़ियां यूँ तो कठिनाइयों से गुजर रही है,
अफ़सोस की बात है चेहरे की रंगत तो कही ओर बसर कर रही है।
कारवाँ -ए -ज़िन्दगी हसरतो के सिवा कुछ भी नहीं,
ये किया नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं।
कयामत से कम नही है तेरा मेरी गली से गुजर जाना,
मुस्कराना, पीछे मुडकर देखना और निकल जाना।
कोई सस्ता सा इलाज हो तो बताना,
एक गरीब को इश्क हुआ है मँहगाई के इस दौर में।
नही जानता कोई अपने शहर में हमे,
अन्जान लोगों में काफी मशहूर है हम।
नाजुक तो हम भी है पीना के बुलबुले की तरह,
जरा सा नजर अंदाज करोगे तो ढूढते रह जाओगे।
जिंदगी जला दी हमने जब जैसी जलानी थी,
अब धुऐं पर तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी।
नज़र अंदाज़ करने की वज़ह क्या है बता भी दो,
मैं वही हूँ जिसे तुम दुनिया से अलग बताती थी।
मुमकिन हो तो मेरे दिल मे रह लो,
इससे हसीन मेरे पास कोई घर नही।
एहसास की नमी बेहद जरुरी है हर रिश्ते में,
वरना रेत भी सूखी हो तो निकल जाती है हाथों से।
अंत में लिखी है दोनों की बर्बादी,
जनाब फिर चाहे वो आशिक़ हो या हो आतंकवादी।
इंसाफ मांगने निकला था तुम्हारे दिए जख्मों का,
पर इस शहर में हर कोई तुम्हारा आशिक निकला।
ऐ समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूँ
मगर इतना बताता हूँ,
वो आंखें तुझसे ज्यादा गहरी हैं जिनका मैं आशिक हूं।
जमाना चाहे कुछ भी कहे,
लेकिन आशिक़ सिर्फ इश्क़ की फिराक में होगा।
लगता है ये चाँद भी उनका आशिक हो गया है,
हमने कई दफ़ा देखा है इसे उनके छत पे जाते हुये..!!