आसन केवल शारीरिक प्रक्रिया मात्र नहीं है, उसमें सर्वांगीण विकास के बीच छिपे हैं आसन शब्द का अनेक अर्थ में प्रयोग होता है आस् धातु बैठने के लिए प्रयुक्त होता है, पूजा भट्ट इत्यादि के लिए जिस बिछावन का प्रयोग किया जाता है मैं भी आसन कहलाता है।
आसन का अर्थ
महर्षि पतंजलि ने कहा “स्थिरसुखमासनम्”अर्थात सुख पूर्वक स्थिरता से लंबे समय तक एक ही स्थान पर एक ही स्थिति में ठैहरना “आसन” कह लाता है विधिपूर्वक लेट कर (पेट एवं पीठ के बल) बैठकर एवं खड़े होकर तीनों व्यवस्थाओं में आसन का अभ्यास किया जाता है। आसन का अभ्यास शारीरिक क्रियाओं को व्यवस्थित कर वाणी और मन को भी स्थिरता प्रदान करता है। आसन शारीरिक सब सोषठव एवं वृद्धि होती है। शारीरिक मानसिक क्षमता का विकास करने के लिए आसन एक महत्वपूर्ण क्रिया है। आसन के द्वारा सर्दी गर्मी भूख प्यास इत्यादि पर नियंत्रण प्राप्त होता है अतः विधि पूर्वक किया गया अभ्यास निश्चित रूप से निरोगिता, स्थैर्यता, और एकाग्रता प्रदान करता है।आसनों की सावधानियां
आसनों को करते समय सावधानियां रखना अति आवश्यक है आसनों से हमें हानि ना हो सिर्फ लाभ हो इसके लिए सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक और पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक छोटे-छोटे छोटी-छोटी योग क्रियाएं होती हैं जो शरीर के अंगों कि अस्थियों को खोलने के लिए इन क्रियाओं को करना आवश्यक है। आसन करते समय शरीर के अंगों के साथ किसी प्रकार की जोर जबरदस्ती ना करें, और इसके अलावा योगासनों का अभ्यास उपयुक्त समय स्थान तथा उचित बिछावन तथा मोटी दरी एवं उसके ऊपर कंबल पर गुरु के निर्देश पर ही करना चाहिए।आसनों के अभ्यास को चार प्रकार से किया जाता है
1.बैठकर किए जाने वाले आसन- सिंहासन
- पद्मासन
- अर्धमत्स्येंद्रासन
- बकासन
- शवासन
- हलासन
- कर्णपीड़ासन
- मकरासन
- सलभाषन
- धनुरासन
- भुजंगासन
- गरुड़ासन
- ताड़ासन
- कटिचक्रासन
- इत्यादि