18 best moral stories in hindi with pictures

ये Moral Stories In Hindi With Pictures: – जो कहानियों के माध्यम से बच्चों को अच्छी सीख देगा, बच्चों को नैतिकता और साहसिक होने का गुण सिखाएगा।

प्रेरणादायक कहानियाँ निराशा से आशा की ओर एक व्यक्ति का मार्ग दिखाती हैं।

1. अच्छा मित्र

अच्छा मित्र


बहुत पहले की बात है , भगवान बुद्ध का एक समर्पित शिष्य था । उसका एक मित्र था । एक बार दोनों मित्रों ने पूर्व दिशा की और समुद्री जहाज से जाने का निश्चय किया । मित्र की पत्नी ने शिष्य से अपने पति का ख्याल रखने का अनुरोध किया । शिष्य एक सप्ताह पश्चात बंदरगाह से समुद्री जहाज ने अपनी यात्रा प्रारम्भ करी ।

एक दिन समुद्र के बीच तूफान आया और जहाज उसमें फसकर डूब गया । एक लकड़ी के पटरे के सहारे किसी अच्छा मित्र में उसे आश्वस्त किया । प्रकार तैरते दोनों मित्र एक सूने द्वीप पर पहुँचे । भूख से बेहाल मित्र ने तुरंत कुछ पक्षियों को मारकर पकाया और बुद्ध के शिष्य को भी खाने के लिए दिया ।

उसने मना करते हुए कहा , ” नहीं , बहुत बहुत धन्यवाद । मैं ठीक हूँ । ” अपने मन में फिर उसने सोचा , ” इस निर्जन स्थान पर पवित्र मंत्र पर ध्यान लगाने के अतिरिक्त और कुछ भी करने के लिए नहीं है । ” ऐसा सोचकर उसने ध्यान लगाकर मंत्र पढ़ना प्रारम्भ कर दिया । उसके ध्यान लगाते ही उस द्वीप पर रहने वाले

एक नाग राज ने स्वयं को एक समुद्री जहाज में बदल लिया । उस जहाज में सात कीमती चीजें थीं । नीलम के बने तीन मस्तूल , सोने के बने तख्ते और लंगर तथा चांदी की रस्सियाँ श्रीं । समुद्र की आत्मा खेवनहार थी । वह जहाज की छत से पुकार रही थी , “ भारत के लिए कोई यात्री ? ” शिष्य ने उत्तर दिया , “ हाँ , हमलोग वहीं से तो हैं ।

” खेवनहार ने कहा , “ फिर जहाज पर आ जाओ । ” शिष्य ने उस खूबसूरत जहाज पर चढ़कर अपने मित्र को आवाज़ लगाई । पर समुद्र की आत्मा ने उसे रोकते हुए कहा , ” तुम आ सकते हो पर वह नहीं । ” आश्चर्यचकित शिष्य ने पूछा , “ पर क्यों नहीं ? ” खेवनहार ( समुद्र की आत्मा ) ने कहा , ” वह अपने जीवन में पवित्रता का अनुसरण नहीं करता है ।

मैं यह जहाज मात्र तुम्हारे लिए लाया हूँ , उसके लिए नहीं । ” शिष्य ने उत्तर दिया , “ वैसी स्थिति में , जितने भी दान – पुण्य मैंने किए हैं , जो भी मेरे गुण और अच्छाइयाँ हैं , उनके सारे फल मैं अपने मित्र को देता हूँ । ” समुद्री आत्मा ने कहा , ” ठीक है । मैं अब तुम दोनों को जहाज पर ले चल सकता हूँ ।

” समुद्री जहाज दोनों व्यक्तियों को लेकर चला । पहले समुद्र और फिर गंगा नदी के ऊपर से होते हुए उन्हें सुरक्षित उनके घर पहुँचा दिया । समुद्री आत्मा ने अपनी जादुई शक्ति से दोनों के लिए खूब धन – सम्पत्ति उत्पन्न कर दी । फिर आकाशवाणी हुई जिसे वहाँ उपस्थित सभी ने सुना , “ सदा अच्छे और बुद्ध की

संगति करो । यदि यह व्यक्ति इस धर्मात्मा शिष्य की संगति में नहीं होता तो समुद्र के बीच में ही विलीन हो गया होता । ” अंत में समुद्री आत्मा , नागराज को अपने साथ लेकर लौट गई ।

शिक्षाः सदा मित्र के रूप में अच्छों की संगति करें ।

2. बदले की आग

बदले की आग


एक राजा के पास कुतिनी नामक एक चिड़िया थी । वह बहुत ही और बुद्धिमान थी । राजा उसी चिड़िया के द्वारा दूसरे राजाओं अत्यन्त संतुष्ट और प्रसन्न था । राजा के अच्छे व्यवहार से कुतिनी बदले की आग भद्र पास संदेश भिजवाया करता था । कुंतिनी की सेवा से राजा भी अति प्रसन्न थी ।

एक बार कुतिनी के दो चूजे हुए जिन्हें वह बड़े लाड़ – दुलार से अपने घोंसले में बड़ा करने लगी । एक दिन राजा को किसी दूसरे राज्य में अपना संदेश भेजना था । उसने कुंतिनी को बुलाया । कुतिनी ने कहा , ” हे महाराज ! मेरे दो बच्चे बहुत ही छोटे हैं । वे अभी उड़ भी नहीं सकते । कौन उनकी रक्षा करेगा ?

” राजा ने कुतिनी को आश्वस्त करते हुए कहा , ” तुम उनकी चिंता मत करो यह मुझपर छोड़ दो । ” कुंतिनी आश्वस्त होकर चली गई । कुतिनी के जाने के बाद उसके घोंसले के पास राजा के बच्चे खेलने लगे और उन्होंने कुतिनी के बच्चों को मार दिया । वापस आने पर कुंतिनी इस समाचार को पाकर बहुत दु : खी हुई ।

उसने हत्यारों के बारे में पता किया तो महल के सेवकों ने सच्चाई का बयान कर दिया । अपने बच्चों का बिछोह वह सह नहीं पा रही थी । कुंतिनी ने बच्चों की हत्या का बदला लेने का निश्चय किया पर ऊपर से वह शांत बनी रही और पहले की ही भाँति अपना काम करती रही । राजा को कुछ भी शंका नहीं हुई ।

एक दिन राजा महल से बाहर गया हुआ था । राजा के पास एक अत्यन्त क्रूर पालतू शेर था । कुंतिनी राजा के बच्चों को लुभाकर क्रूर शेर के पास ले गई और उसने बच्चों पर हमला कर उन्हें खा लिया ।

कतिनी ने अपने बच्चों का बदला ले लिया था । हालांकि अब वह भयभीत हो गई कि राजा उसे मरवा देगा । इसलिए उसने महल छोड़ने का निश्चय किया पर पहले उसने राजा से मिलना आवश्यक समझा । राजा के वापस लौटने पर वह उससे मिलने गई और बोली , ” हे महाराज !

आपकी बेरुखी के कारण मेरे बच्चों को आपके बच्चों ने मार डाला था और मेरे क्रोध के कारण ही आपके बच्चे मारे गए । आपक राज्य में सदा मुझे आदर – सत्कार मिला है पर अब मैंने यहाँ से जाने का निश्चय कर लिया है । कृपया मुझे जाने दें । ” राजा बुद्धिमान , विवेकशील और नैतिक गुणों से भरपूर था ।

उसने कतिनों से कहा , ” यह एहसास होने पर कि एक गलती के कारण दूसरी गलती हो गई है , विद्वेष का भाव समाप्त हो जाता है । इसलिए कुतिनी , तुम्हें नहीं जाना चाहिए । ” किन्तु कुतिनी ने जोर देते हुए कहा , “ मालिक , दोषी और पीड़ित कभी भी एक नहीं हो सकते । इसलिए मुझे यहाँ रहने की इच्छा नहीं है । मुझे जाना ही चाहिए ।

” एक बार पुनः राजा ने उसे समझाने का प्रयास करते हुए कहा , ” कुतिनी ! दोषी और पीड़ित शर्तिया मिल सकते हैं , एक हो सकते हैं । पर उसके लिए पिछला सारा बैर भुलाना होता है । मैं बस यही कहूँगा कि तुम्हें नहीं जाना चाहिए । ” अंतत : कुंतिनी ने उत्तर दिया , “ मालिक ! मेरा निर्णय पक्का है । मैं अब यहाँ नहीं रुकूँगी । ” कुतिनी ने राजा का अभिवादन किया और हिमालय पर्वत की और उड़ चली ।

शिक्षा : रिश्ता विश्वास पर ही फलता – फूलता है ।

3. लालची कौआ

लालची कौआ


बहुत समय पहले की बात है , मयूरपटनम के लोगों ने गर्मी लटका दी थी । उसमें उन्होंने अनाज के दाने तथा पाना का कटोरा के महीने में अपने घर में तथा सड़कों पर खपच्ची की टोकरी एक लखपति व्यक्ति के घर खाना बनाने वाले रसोइए ने भी अपनी रसोई में एक वैसी ही टोकरी लटका दी थी । उस टोकरी में एक भद्र कबूतर आकर रहने लगा था ।

प्रतिदिन प्रात : वह उड़कर चला जाता और गोधूलि वेला में वापस लौटा जाता हुआ कोआ मछली की सुगंध से आकृष्ट हो गया । उसके लालची कौआ एक दिन रसोई में मछली पक रही थी । ऊपर से रखा था जिससे पक्षी आकर उन्हें खा सकें । करता था । उड़कर मन में मछली खाने की तेज इच्छा हुई ।

वहीं पास में वह बैठ गया । शाम के समय उसने कबूतर को रसोई में जाते हुए देखा । उसने सोचा कबूतर के सहारे वह रसोई में जाएगा और उसे मछली खाने को मिलेगी । अगली सुबह जब कबूतर उड़कर रसोई से बाहर निकला तब कौए ने उसका पीछा किया । कबूतर ने कहा , “ कौए भाई , तुम मेरे पीछे क्यों आ रहे हो ?

” कौआ बोला , ” उस्ताद , मुझे तुम्हारा रहन – सहन बहुत पसंद आया है । मैं तुम्हारी सेवा में जीवन यापन करना चाहता हूँ । ” कबूतर ने उत्तर दिया , ” कौए भाई , हमारा चुग्गा ( भोजन ) अलग – अलग है । मेरी सेवा करने में तुम्हें बहुत कठिनाई होगी ।

कौए ने ज़िद करी उस्ताद मैं तुम्हारे साथ ही चुगंगा कबूतर ने कौए को नसीहत देते हुए कहा , ” ठीक है तुम सतर्क रहना । ” कबूतर ने अनाज के दाने और बीज चुगे जबकि कौए कौए ने जिद करी , ” उस्ताद . और जब तुम लोटोगे तभी ने पास पड़े गोबर में से कीड़े चुनकर खाए ।

वापस कबूतर के पास आकर उसने कहा , ” उस्ताद , तुम चुगने में बहुत समय लगाते हो । तुम्हें लौटूंगा । ” कम खाना चाहिए । ” शाम ढलने पर वह कबूतर के साथ ही रसोई में लौट आया । रसो ने देखा कि उसके पालतू कबूतर के साथ एक दूसरा पक्षी भी आया है तो उसने एक दूसरी खपच्ची की टोकरी टाँग दी ।

इस प्रकार दोनों पक्षी साथ – साथ रहने लगे । एक दिन लखपति दावत के लिए ढेर सारी मछलियाँ लेकर आया । रसोइए ने उन्हें रसोई में लटका दिया । मछली देखकर कौए के मुँह में पानी आ गया । उस दिन उसने बाहर नहीं जाने का निर्णय किया जिससे वह मछली खा सके । पूरी रात उसने बेसब्री से काटी । सुबह बाहर जाने के लिए तैयार होकर कबूतर ने कौए से कहा , ” कौए भाई , चलो चलें । ” ‘ उस्ताद , आज तुम अकेले ही चले जाओ । मेरे पेट में दर्द

कबूतर ने कहा , ” कौए भाई , आज से पहले कभी भी कौए को पेट दर्द होता नहीं सुना है । हो न हो तुम भूख से संतप्त हो । कहीं तुम मछली खाने की योजना तो नहीं बना रहे हो ? आओ , मनुष्य का भोजन तुम्हें करना सही नहीं है । ऐसा मत करो । चलो मेरे साथ चुगने । ” कौए ने अड़े रहकर कहा ,

” उस्ताद , मैं नहीं आ सकता । ” ” ठीक है , तो तुम मेरी बात नहीं मानोगे … सचेत रहना , इसमें तुम्हारा ही नुकसान है … ” ऐसा कहकर कबूतर उड़ गया । उस दिन रसोइए ने मछली के कई व्यंजन बनाए । भाप बाहर निकलने के लिए बर्तन के ऊपर का ढक्कन खोलकर , कलछी उसमें रखकर वह रसोई के बाहर खड़ा होकर अपना पसीना पोंछने लगा ।

कौए ने रसोइए को रसोई से बाहर देखकर सोचा , “ जी भरकर मछली खाने का यही उपयुक्त समय है । अपनी इच्छानुसार मैं छोटे टुकड़े खाऊं या बड़े टुकड़े खाऊँ । एक बड़ा मछली का टुकड़ा मैं अपनी टोकरी में लेकर आऊँगा जहाँ मैं बैठकर ऐसा सोचकर कौआ अपनी टोकरी से उड़कर नीचे आया और कलछी पर बैठ गया । कलछी हिली और खनखनाहट हुई ।

आवाज सुनकर रसोइया सावधान होकर भीतर आया । कौए को देखकर उसने सोचा . ” अच्छा तो यह कौआ उसने रसोई के सभी दरवाजे बंद कर दिए और कौए को पकड़ लिया । उसने कौए के पंख पकड़कर उस पर नमक , दिया । उसके बाद रसोइए ने कौए को उसकी टोकरी में फेंक दिया ।

कौआ वहाँ पड़ा दर्द से कराहता रहा । शाम को कबूतर मेरे मालिक के दावत के लिए पकने वाली मछली को खाना आराम से उसे खाऊँगा । ” चाहता है । मैं उसे सबक सिखाऊँगा । ” कालीमिर्च , अदरक और जीरा लगाकर उसे छाछ में डुबो ने वापस आने पर कौए को अत्यंत दयनीय अवस्था में पाया । कबूतर ने कहा , ” हे लालची कौए ! तुमने मेरी सलाह पर ध्यान नहीं दिया । अब तुम अपनी लालच का फल भुगतो ।

शिक्षा : लालच का अंत कभी अच्छा नहीं होता है ।

4. निर्दयी हाथी और गौरया

निर्दयी हाथी और गौरया


किसी बीहड़ वन में बहुत सारे हाथी रहते थे । वहाँ वे निर्भय होकर आराम से घूमते , चरते और पेड़ों से फल तोड़कर खाते थे । लाटूकिका नामक एक गरिया भी वहाँ रहती थी । एक बार नन्हीं गौरैया ने जिस स्थान पर अंडे दिए वह स्थान हाथियों के मार्ग में पड़ता था ।

समय के अंतराल निर्दयी हाथी और गौरैया में अंडों से चूजे निकले । चूजों के पंख भी नहीं उग पाए थे कि उसने हाथियों का झुंड आता देखा । गौरैया बेहद डर गई । उसे डर था कि उसके बच्चे हाथियों के पैर से कुचल जाएँगे । हाथियों के राजा से उसने दया की याचना करते हुए कहा , “ हे जंगल के राजा ! झुंड के सरदार ! हे नामी हाथी !

मैं आपको नमण करती हूँ । मैं अपने पंखों को जोड़कर आपको प्रणाम करती हूँ । मैं बहुत छोटी और कमजोर हूँ । कृपया मेरे बच्चों को न मारें । ” हाथियों का सरदार अत्यन्त दयालु था । उसने कहा , “ लाटुकिका , मैं तुम्हारे बच्चों की रक्षा करूँगा । तुम चिंता मत करो । ऐसा कहकर वह बच्चों के ऊपर ढाल बनकर खड़ा हो गया ।

अस्सी हज़ार हाथियों के झुंड के चले जाने के पश्चात् उसने गौरैया से कहा , “ लाटुकिका , मेरे पीछे एक पागल हाथी आ रहा है । वह मेरी बात नहीं सुनेगा । जब वह यहाँ आए तो तुम उससे भी नन्हे बच्चों को छोड़ देने का अनुरोध करना । मैं अब जाता हूँ । ” यह कहकर हाथियों का सरदार चला गया ।

कुछ ही देर में एक अकेला हाथी मद में झूमता हुआ वहाँ आया । सावधान लाटुकिका ने उससे कहा , ” हे जंगल राज ! हे पर्वत पर रहने वाले ! हे विशेष हाथी ! मैं आपको नमण करती हूँ । अपने पंखों को जोड़कर मैं आपको प्रणाम करती हूँ । कृपया मेरे नन्हे अहंकारी हाथी ने कहा , ” लाटुकिका , तुम निर्बल हो । तुम मेरा भी अहित नहीं कर सकती हो ।

मैं तुम जैसे हजारों को अपने पैरों तले कुचल सकता हूँ । में तुम्हारे बच्चों को अवश्य कुचल कुछ बच्चों को न मारें । ” कुचला डालूँगा । ” यह कहकर दुष्ट हाथी ने चूजों को अपने पैरों तले और चिंघाड़ता हुआ आगे बढ़ गया । लाटुकिका फूट – फूट कर रोई । अपने चूजों के मृत शरीर को देखती हुई मन ही मन उसने कहा , “ हे हाथी ! अपनी शक्ति के घमंड में चूर होकर कितने भी मदमस्त रहो पर शीघ्र ही तुम्हें इसका फल भुगतना पड़ेगा । शायद तुम्हें पता नहीं है कि शरीर की शक्ति से बुद्धि की शक्ति अधिक बड़ी होती है ।

शारीरिक शक्ति सदा काम नहीं आती है । वह तुम्हें मार भी सकती है । हे शक्तिशाली हाथी ! तुमने मेर बच्चों को मारा है । मैं इसका बदला अवश्य लूंगी । ” लाटुकिका ने एक योजना बनाई । उसने पूरे लगन से एक कौए की सेवा करनी शुरू की । कौए ने उससे प्रसन्न होकर कहा , “ प्रिय लाटुकिका , मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ ? ” गौरैया ने कौए से अनुरोध करते हुए कहा ,

” मालिक , अकेले घूमने वाले हाथी की आँखें आप अपनी चोंच से फोड़ डालें । ” कौए ने उसे उपकृत किया । लाटुकिका ने इसी प्रकार एक मक्खी को प्रसन्न किया और उससे हाथी की आँखों के गड्ढे में

मक्खी से अंडा देने के लिए कहा । मक्खी ने वैसा ही किया । हाथी दर्द से बेहाल जंगल में घूमता रहा । फिर गौरैया ने मेंढक की सेवा कर उसे प्रसन्न किया । मेंढक से उसने हाथी को देखकर पहाड़ की चोटी से टरटराने के लिए कहा और जब पानी की चाह में हाथी पहाड़ पर पहुंचे तो मेंढक नीचे बने तालाब में कूद पड़े । मेंढक ने लाटुकिका के लिए वह सब किया ।

प्यासा हाथी मेंढक की आवाज सुनकर पहाड़ी पर पहुंचा । मेंढक पहाड़ी से तालाब में कूदकर टरटराने लगा । अंधा हाथी आगे बढ़ा । उसका पैर फिसला और तालाब में गिरने से वहीं उसकी मृत्यु हो गई । अपने बच्चों के हत्यारे का यह अंत देखकर लाटुकिका ने चैन की सांस ली । अपनी तसल्ली के लिए वह हाथी के भारी – भरकम शरीर पर चढ़कर फुदकने लगी ।

शिक्षाः शक्ति पर भी बुद्धि से विजय पाई जा सकती है ।

5. उदार दाता

उदार दाता


बहुत समय पहले की बात है , जतुत्तरा शहर पर संजय नामक उन्होंने राजा से शहर में घूमने जाने का अनुरोध किया । राजा उदार दाता गजा का राज्य था । गर्भवती रानी का प्रमुख काल निकट ही था । की आज्ञा पर पूरे शहर को सजाया गया । रानी सजे हुए रथ पर बैठकर शहर में घूमने निकली ।

वैश्यों की गली से गुजरते समय उन्हें अचानक प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हुई और वहीं उन्होंने पुत्र को जन्म दिया । वैश्यों की गली में जन्म लेने के कारण पुत्र का नाम विशात्र रखा गया । राजकुमार विशांत्र बचपन से ही अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे तथा बहुत कम उम्र से ही उन्होंने दान देना प्रारम्भ कर दिया था । उनके यौवनावस्था में प्रवेश करने पर उनका विवाह राजकुमारी माद्री से कर दिया गया ।

उनकी दो संतान हुई । पुत्र का नाम जाली तथा पुत्री का नाम कृष्णार्जिन रखा गया । उसी समय पड़ोसी राज्य कलिंग में भीषण सूखा पड़ा । वहाँ के लोगों ने अपने राजा से प्रार्थना करी , “ महाराज , जतुत्तरा शहर में महाराज संजय का पुत्र विशांत्र रहता है । वह महान् दाता है । उसके पास एक सफेद हाथी है ।

वह मंगलदायक हाथी जहाँ भी रहता है बारिश होती है । आप उसे यहाँ लाने का प्रयत्न करें । ” कलिंग के राजा ने अपने आठ ब्राह्मणों को हाथी लाने के लिए जतुत्तरा भेजा । ब्राह्मणों ने वहाँ पहुँचकर राजकुमार विशांत्र को अपने दानघर के पास मंगलदायक सफेद हाथी पर बैठकर आते देखा । उन्होंने राजकुमार से हाथी की याचना करी ।

राजकुमार विशात्र ने प्रसन्नतापूर्वक अपना सजा हुआ हाथी दान दे दिया । उनके इस कृत्य से जतुत्तरा के लोग अप्रसन्न हो बर्बाद हो जाएगा । राजकुमार विशांत्र ने वह मंगलदायक हाथी जो गए । उन्होंने अपने राजा से जाकर कहा , ” महाराज , हमारा राज्य हमारे लिए मगलसूचक था उसे क्यों दे दिया ?

उनका यहाँ रहना उग्र जनता के कारण विवश होकर राजा ने राजकुमार विशांत्र को देश निकाला दे दिया । राजकुमार विशांत्र ने कोई शिकायत नहीं की । उसने कहा , ” मुझे दान देना अच्छा लगता है । यदि राज्य की संपूर्ण जनता मिलकर भी मुझे मार डाले या मेरे टुकड़े दे फिर भी वे मुझे दान देने से रोक नहीं पाएंगे । ” राजकुमार ने अपने माता – पिता को जाकर प्रणाम कर आर्शीवाद लिया और कहा ,

” कृपया मुझे देश छोड़ने की अनुमति उचित नहीं है । द । मंगलदायक हाथी को देने से मेरे कारण आपको दुःख हुआ है पर मुझे कलिंग के लोगों को दान देने का कोई दुःख नहीं राजा ने राजकुमार को जाने की अनुमति दे दी और अपनी पुत्रवधू माद्री के बच्चों के साथ महल में रुकने के लिए कहा । पर माद्री ने कहा , ” मैं अपने पति के बिना नहीं रह सकती ।

मैं वन में जाकर सारे कष्ट सह लूँगी । मैं बच्चों को भी साथ ही ले जाऊँगी । जैसे हम लोग रहेंगे उसी प्रकार वे भी वहीं रहेंगे । ” राजकुमार विशांत्र अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ चार घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर वन में वंक पर्वत के लिए चल पड़े । पीछे से कुछ ब्राह्मणों को आते देख विशांत्र ने रथ

रोका । ब्राह्मणों ने राजकुमार से उसका घोड़ा माँग लिया । विशांत्र ने अपने चारों घोडे उन्हें दे दिए । एक ब्राह्मण के रथ मांगने पर उसने रथ भी दे दिया । अब राजकुमार विशांत्र पैदल ही सपरिवार चलने लगे । मार्ग में वे चेटी में मातुल नामक शहर में रुके । वहाँ के लोगों ने बड़ी ही गर्मजोशी से उनका अभिनन्दन किया ।

उन्होंने वंक पर्वत जाने की मार्ग भी बताया । इन्द्रदेव ने वहाँ उनके रहने के लिए दो कुटी भी बनवा दी थी । वहाँ बने चौकोर तालाब के किनारे विशांत्र ने थोड़ी देर विश्राम किया । फिर उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारकर साधुओं का वस्त्र धारण किया । वंक पर्वत पर बनी कुटी में चारों रहने लगे । प्रतिदिन तड़के ही माद्री उठती थी और वन से फल तथा जड़ी बूटी लाती थी । फिर चारों साथ – साथ भोजन करते थे ।

इसी प्रकार सात महीने वंक पर्वत पर व्यतीत हो गए । संयोगवश उस समय कलिंग के एक गाँव में पुजाक नामक एक वृद्ध ब्राह्मण अपनी जवान पत्नी के साथ रहता था । एक दिन पत्नी ने पति से कहा , “ अब मैं आपके साथ तभी रहूँगी जब आप मेरे लिए एक सेवक नियुक्त करेंगे ।

” ब्राह्मण ने उत्तर दिया , ” प्रिय ! मैं एक दीन व्यक्ति हूँ । मैं तुम्हारे लिए सेवक कैसे नियुक्त कर सकता हूँ ? ” उसकी पत्नी राजकुमार विशांत्र से जाकर सेवक की याचना करने की सलाह देते हुए बोली , ” विशांत्र महान् दाता है । वह निश्चित रूप से तुम्हें सेवक प्रदान करेगा । ” वृद्ध ब्राह्मण अपनी पत्नी के आग्रह को अस्वीकार न कर
सका । वह जतुत्तरा पहुँचा । वहाँ उसे राजकुमार के निर्वासन तक वंक पर्वत पर उसके रहने की बात पता चली । ब्राह्मण चलते चलते वंक पर्वत पहुँचा । गोधूलि बेला हो चुकी थी । पास की एक चट्टान पर उसने रात बिताई । सका । वह जतुत्तरा पहुंचा । वहाँ उसे राजकुमार के निर्वासन तथा वंक पर्वत पर उसके रहने की बात पता चली ।

ब्राह्मण चलते चलते वंक पर्वत पहुँचा । गोधूलि बेला हो चुकी थी । पास की उसी रात माद्री ने एक दु : स्वप्न देखा । उसने देखा कि एक काला व्यक्ति केसरिया कपड़ों में है । दोनों कानों में लाल फूल कुटिया में प्रवेश कर माद्री को बालों से पकड़कर जमीन पर पटक दिया । माद्री रोने लगी । उसने माद्री की दोनों आँखें निकाल हैं ।

अपने हाथों में भुजाएँ लिए हुए उस डरावने व्यक्ति ने ली , दोनों हाथ काट डाले और छाती फाड़कर लहू लुहान कर वह चला गया । प्रात : काल माद्री ने अपने स्वप्न की बात विशांत्र को बताई । विशात्र ने उसे सांत्वना देते हुए कहा , माद्री , चिंता मत करो । कभी – कभी मानसिक उद्विग्नता के कारण ऐसा होता है ।

” पति की बातों से आश्वस्त होकर माद्री फल तथा जड़ी बूटी लाने वन चली गई । विशांत्र ने जब ब्राह्मण पुजाक को आते हुए देखकर पूछा , ” हे ब्राह्मण ! इस घने वन में आप क्यों पधारे हैं ? पुजाक ने कहा , “ हे श्रीमान् ! मैं आपके बच्चों को दान में माँगने आया हूँ ।

” ब्राह्मण की याचना सुनकर विशांत्र थोड़ा भी भयभीत नहीं हुआ । उसे पता था कि वृद्ध ब्राह्मण बच्चों से सेवक का काम लेना चाहता है । अपने दोनों बच्चों को देते उसने कहा , ” हे ब्राह्मण ! दान और परोपकार के दिव्य गुण के रूप में यह परम ज्ञान मुझे सौ पुत्रों या सौ हजार पुत्रों से भी अधिक प्रिय है ।

पुजाक बच्चों को साथ लेकर चला गया । शाम के समय प्रतिदिन की भाँति माद्री फल तथा जड़ी – बूटी लेकर वन से वापस आई । उसे रह – रहकर अपना स्वप्न याद आ रहा था । प्रतिदिन संध्या समय बच्चे ध्यान के चबूतरे पर उसकी प्रतीक्षा कर रहे होते थे पर आज उन्हें वहाँ नहीं देखकर उसे गड़बड़ राजकुमार !

यदि आपने बच्चों के विषय में नहीं बताया तो प्रात : लगी । कुटिया में भी गजब का सन्नाटा था । विशांत्र वहाँ अकेला बैठा था । उसने बच्चों के विषय में पूछा और बोली , “ हे तक आप मुझे मृत पाएँगे । ” विशांत्र ने सुबह की घटना के विषय में माद्री को कुछ नहीं बताया । माद्री सारी रात रोती रही और फिर अचेत हो गई ।

विशांत्र ने चेहरे पर पानी के छींटे डाले तब वह होश में आई । सचेत होने पर माद्री ने पूछा , ” विशांत्र , मेरे प्रभु ! कृपया मुझे बताएँ कि मेरे बच्चे कहाँ हैं ? ” विशांत्र ने विस्तार से उसे बताया , ” माद्री , तुम्हारे वन जाने के बाद एक दीन वृद्ध ब्राह्मण मेरे पास आया ।

उसके याचना करने पर मैंने अपनी दोनों संतानें उसे दे दी । मुझे देखो माद्री , इस प्रकार विलाप मत करो । यदि जीवित रहे तो हमें पुनः हमारे बच्चे मिल जाएंगे और
हम सुखपूर्वक रहेंगे । माद्री , पुत्र अत्युत्तम उपहार है , पर तुम्के मार उपहार का भी अनुमोदन ( प्रशंसा ) करना चाहिए । “

अपने पति का तक सुनकर माद्री द्रवित हो गई । वह आश्वस्त हो गई कि उसके पति ने सही निर्णय लिया है । दूसरी ओर इन्द्रदेव ने देखा कि विशांत्र के संतान – दान से धरती हिल उठी है । उन्होंने विशांत्र की उदारता की और परीक्षा लेने का मन बनाया ।

वह स्वयं ब्राह्मण के वेश में वंक पर्वत बने विशांत्र की कुटी में पहुँचे । अभिवादन कर विशांत्र से उन्होंने कहा , “ श्रीमान् ! मैं वृद्ध हो गया हूँ । बड़ी आशा के साथ में आपसे कुछ याचना करने आया हूँ । जिस प्रकार नदी जल में लबालब सदा बहती रहती है उसका जल नहीं सूखता आप अपनी पत्नी माद्री को इस गरीब ब्राह्मण को दे दें ।

” पल भर के लिए विशांत्र निस्तब्ध रह गया । मन ही मन सोचा , “ कल एक वृद्ध ब्राह्मण मेरे दो बच्चों को ले गया , मैं माद्री के बिना इस वन में कैसे रहूँगा ? ” पर ऊपर से शांत बने रहकर उसने कहा , “ हे ब्राह्मण ! आपने जो चाहा वह मैं देता हूँ । ” यह कहकर , जल से भरा पात्र लेकर ,

औपचारिक रूप से उसने माद्री को ब्राह्मण को दे दिया । दान देते ही धरती हिली । माद्री ने कोई शिकायत या विरोध नहीं किया । यह एक महान दान था । माद्री एक मूक दर्शक बनी हुई थी तभी विशांत्र ने घोषणा करी , “ मैं अपनी पत्नी माद्री और दोनों बच्चों के प्रति कोई

द्वेषभाव नहीं रखता हूँ पर मैं ज्ञान को सर्वोपरि मानता हूँ । अत : मैं अपने प्रियजनों का परित्याग करता हूँ । ” विशांत्र की उदारता से द्रवित इन्द्रदेव ने घोषणा करी , ” मैं तुम्हें तुम्हारी पत्नी माद्री को लौटाता हूँ । संपूर्ण विश्व में मात्र तुम होनों एक दूसरे के लिए उपयुक्त हो ।

” इधर पुजाक ने विशांत के बच्चों को रात में एक वृक्ष से बाँध दिया और उन्हें जमीन पर लेटने के लिए बाध्य किया । वह स्वयं जंगली जानवरों से बचने के लिए वृक्ष पर सोया । वन में वह भटक गया और कलिंग पहुँचने की जगह जतुत्तरा पहुँच गया । वहाँ के राजा संजय ने अपने पोते – पोती को पहचानकर पुजाक से पूछा , “ ये बच्चे तुम्हें कहाँ मिले ?

” पुजाक ने उत्तर दिया , “ वन में राजकुमार विशांत्र ने इन्हें मुझे दान में दिया है । ” बच्चों ने राजा को बताया , “ यह ब्राह्मण हमें गुलामों की भांति छड़ी से मारता है । यह ब्राह्मण नहीं एक दैत्य है । ” महाराज संजय ने उन्हें प्यार से सहलाया और अपनी बाहों में भरकर कहा , “ तुम्हारे माता – पिता स्वस्थ तो हैं ? ” जाली ने उत्तर दिया , ” वे ठीक हैं । मेरी माँ वन से जड़ी – बूटी और फल लेकर आती है और हम सब उसी पर आश्रित

रहते हैं । तेज धूप और हवा से वे दोनों एक कमल की भांति मुरझा गए हैं । जमीन पर जानवर की खाल बिछाकर सोते हैं । ” अपने पुत्र और पुत्रवधू की दिनचर्या जानकर राजा बहुत दु : खी हो गए । वह तुरंत ही दोनों को वापस लाने के लिए वंक पर्वत की ओर चल दिए । राजा को आया देखकर विशांत्र और माद्री ने पैर छूकर उनका आर्शीवाद लिया ।

उनके साथ अपने विशांत्र और माद्री ने कटी में जाकर तपस्वी के कपड़े उतारकर बच्चों को साथ आया देखकर माद्री अत्यन्त प्रसन्न पुनः साथ हो गया था । सबके चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे थी हुई । परिवार अपने वस्त्र धारण किए । सभी प्रसन्नतापूर्वक जतुत्तरा लौट गए ।

शिक्षाः दान – पुण्य घर से ही प्रारम्भ होता है ।

7. मनुष्य की कीमत

मनुष्य की कीमत


लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”
पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.

फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”
बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?
पिताजी – हाँ बेटे.

बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?
सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.

रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?
बालक – 200 रूपये.
पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?

बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .
पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो? बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”

फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”
बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .

8. सही दिशा

सही दिशा


एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लंबा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसनेँ एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईँ बाबा के मंदिर जाना है।

टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे। उस पहलवान आदमी नेँ बुद्दिमानी दिखाते हुए कहा- इतने पास के दो सौ रुपये, आप टैक्सी वाले तो लूट रहे हो। मैँ अपना सामान खुद ही उठा कर चला जाऊँगा।

वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा। कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दुरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे?

टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये।

उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ।

टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप साईँ मंदिर की विपरीत दिशा मेँ दौड़ लगा रहे हैँ जबकि साईँ मँदिर तो दुसरी तरफ है।

उस पहलवान व्यक्ति नेँ कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया।

इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ, और फिर अपनी मेहनत और समय को बर्बाद कर उस काम को आधा ही करके छोड़ देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ से पहले पुरी तरह सोच विचार लेवेँ कि क्या जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ।

हमेशा एक बात याद रखेँ कि दिशा सही होनेँ पर ही मेहनत पूरा रंग लाती है और यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी।

9. नकलची कौआ

नकलची कौआ


एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे।

जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।
एक दिन कौए ने सोचा, ‘वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इनका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा। एकाएक झपट्टा मारकर पकड़ लूंगा।’

दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी। फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारा। अब भला कौआ बाज का क्या मुकाबला करता। खरगोश ने उसे देख लिया और झट वहां से भागकर चट्टान के पीछे छिप गया। कौआ अपनी हीं झोंक में उस चट्टान से जा टकराया। नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूट गईं और उसने वहीं तड़प कर दम तोड़ दिया।

Moral Of The Story

शिक्षा—नकल करने के लिए भी अकल चाहिए।


10. लोमड़ी और खट्टे अंगूर

लोमड़ी और खट्टे अंगूर


एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी. वह भोजन की तलाश में इधर – उधर भटकती रही लेकिन कही से भी उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला. अंत में थक हारकर वह एक बाग़ में पहुँच गयी. वहां उसने अंगूर की एक बेल देखी. जिसपर अंगूर के गुच्छे लगे थे.

वह उन्हें देखकर बहुत खुश हुई. वह अंगूरों को खाना चाहती थी, पर अंगूर बहुत ऊँचे थे. वह अंगूरों को पाने के लिए ऊँची – ऊँची छलांगे लगाने लगी. किन्तु वह उन तक पहुँच न सकी. वह ऐसा करते – करते बहुत थक चुकी थी. आखिर वह बाग से बाहर जाते हुए कहने लगी कि अंगूर खट्टे है. अगर मैं इन्हें खाऊँगी तो बीमार हो जाउंगी.

Moral Of The Story

जिससे हम पा नहीं सकते उससे हम बुरा नाम रखते हैं।


11. मुर्गे की अक्ल ठिकाने

मुर्गे की अक्ल ठिकाने


एक समय की बात है, धवलपुर नाम के एक गांव में बहुत सारे मुर्गे-मुर्गिया रहते थे। गांव के एक शरारती बच्चें ने एक मुर्गे को बहुत ज़्यादा परेशान कर दिया था। मुर्गा तंग हो गया, उसने सोचा अगले दिन सुबह को मैं आवाज नहीं करूंगा। सब सोते रहेंगे तब मेरी अहमियत सबको समझ आएगी, और मुझे परेशान नहीं करेंगे।

मुर्गा अगली सुबह कुछ नहीं बोला। सभी लोग समय पर उठकर अगले दिन अपने-अपने काम पर चले गए ये सब कुछ हो जाने पर मुर्गे को समझ आया के किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता, सब कुछ वैसे ही चलता रहता है।

Moral Of The Story

घमंड नहीं करना चाहिए। आपकी अहमियत लोगों को बिना देखे-और बिना बताए पता चलता है।


12. जिस की लाठी उस की भैंस

जिस की लाठी उस की भैंस


तो कहानी कुछ यों है कि एक ब्राह्मण को कहीं से यजमानी में एक भैंस मिली। उसे लेकर वह घर की ओर रवाना हुआ। सुनसान रास्ते में वह पैदल ही चला जा रहा था। बीच रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसके हाथ में मोटा डण्डा था और शरीर से भी वो अच्छा तगड़ा था। उसने ब्राह्मण को देखते ही कहा – “क्यों ब्राह्मण देवता, खूब दक्षिणा मिली लगती है, पर यह भैंस तो मेरे साथ जाएगी।“

ब्राह्मण ने झट कहा- “क्यों भाई?”

चोर बोला- “क्यों क्या? जो कह दिया सो करो। भैंस छोड़ कर चुपचाप यहाँ से चलते बनो, वरना लाठी देखी है, तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े- टुकड़े कर दूँगा।”

अब तो ब्राह्मण का गला सूख गया। हालाँकि शारीरिक बल में वह चोर से कम नहीं था। पर खाली हाथ वह करे भी तो क्या करे? विपरीत समय में बुद्धिबल काम आया। ब्राह्मण बोला- “ठीक है भाई, भैंस भले ही ले लो, पर ब्राह्मण की चीज यों छीन लेने से तुम्हें पाप लगेगा। बदले में कुछ देकर भैंस लेते तो पाप से बच जाते।”

चोर बोला- “यहाँ मेरे पास देने को धरा क्या है?” ब्राह्मण ने झट कहा- “और कुछ न सही, लाठी देकर भैंस का बदला कर लो।”

चोर ने खुश हो कर लाठी ब्राह्मण को पकडा दी और भैंस पर दोंनो हाथ रख कर खड़ा हो गया। तभी ब्राह्मण कड़क कर बोला- “चल हट भैंस के पास से, नहीं तो अभी खोपड़ी दो होती है।”

चोर ने पूछा-“ क्यों?”

ब्राह्मण बोला-“ क्यों क्या ? जिस की लाठी उस की भैंस।”

चोर को अपनी बेवकूफी समझ आ गयी और उसने वहाँ से भागने में ही भलाई समझी। किसी ने सच ही कहा है कि जिसमें अक्ल है, उसमें ताकत है।

तो अब समझे कि यह कहावत यहीं से शुरू हुई, जिस की लाठी उस की भैंस।

13. समस्या का दूसरा पहलु

पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता .

पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता.

तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है. उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे. तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा , उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया – ” देखो ये वर्ल्ड मैप है , अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ , तुम्हे इन टुकड़ों को फिर से जोड़ कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा.”
और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया.

बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे की अब वो आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे .

लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला , ” ये देखिये पिताजी मैंने मैप तैयार कर लिया है .”

पिता ने आश्चर्य से देखा , मैप बिलकुल सही था, – ” तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया , ये तो बहुत मुश्किल काम था ?”

” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था , आपने जो पेज दिया था उसके पिछले हिस्से में एक कार्टून बना था , मैंने बस वो कार्टून कम्प्लीट कर दिया और मैप अपने आप ही तैयार हो गया.”, और ऐसा कहते हुए वो बाहर खेलने के लिए भाग गया और पिताजी सोचते रह गए .

Friends , कई बार life की problems भी ऐसी ही होती हैं, सामने से देखने पर वो बड़ी भारी-भरकम लगती हैं , मानो उनसे पार पान असंभव ही हो , लेकिन जब हम उनका दूसरा पहलु देखते हैं तो वही problems आसान बन जाती हैं, इसलिए जब कभी आपके सामने कोई समस्या आये तो उसे सिर्फ एक नजरिये से देखने की बजाये अलग-अलग दृष्टिकोण से देखिये , क्या पता वो बिलकुल आसान बन जाएं !

14. समुराई की समस्या

एक समुराई जिसे उसके शौर्य ,इमानदारी और सज्जनता के लिए जाना जाता था , एक जेन सन्यासी से सलाह लेने पहुंचा .

जब सन्यासी ने ध्यान पूर्ण कर लिया तब समुराई ने उससे पूछा , “ मैं इतना हीन क्यों महसूस करता हूँ ? मैंने कितनी ही लड़ाइयाँ जीती हैं , कितने ही असहाय लोगों की मदद की है . पर जब मैं और लोगों को देखता हूँ तो लगता है कि मैं उनके सामने कुछ नहीं हूँ , मेरे जीवन का कोई महत्त्व ही नहीं है .”

“रुको ; जब मैं पहले से एकत्रित हुए लोगों के प्रश्नों का उत्तर दे लूँगा तब तुमसे बात करूँगा .” , सन्यासी ने जवाब दिया .

समुराई इंतज़ार करता रहा , शाम ढलने लगी और धीरे -धीरे सभी लोग वापस चले गए .

“ क्या अब आपके पास मेरे लिए समय है ?” , समुराई ने सन्यासी से पूछा .

सन्यासी ने इशारे से उसे अपने पीछे आने को कहा , चाँद की रौशनी में सबकुछ बड़ा शांत और सौम्य था , सारा वातावरण बड़ा ही मोहक प्रतीत हो रहा था .

“ तुम चाँद को देख रहे हो , वो कितना खूबसूरत है ! वो सारी रात इसी तरह चमकता रहेगा , हमें शीतलता पहुंचाएगा , लेकिन कल सुबह फिर सूरज निकल जायेगा , और सूरज की रौशनी तो कहीं अधिक तेज होती है , उसी की वजह से हम दिन में खूबसूरत पेड़ों , पहाड़ों और पूरी प्रकृति को साफ़ –साफ़ देख पाते हैं , मैं तो कहूँगा कि चाँद की कोई ज़रुरत ही नहीं है….उसका अस्तित्व ही बेकार है !!”

“ अरे ! ये आप क्या कह रहे हैं, ऐसा बिलकुल नहीं है ”- समुराई बोला, “ चाँद और सूरज बिलकुल अलग -अलग हैं , दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है , आप इस तरह दोनों की तुलना नहीं कर सकते हैं .”, समुराई बोला.

“तो इसका मतलब तुम्हे अपनी समस्या का हल पता है . हर इंसान दूसरे से अलग होता है , हर किसी की अपनी -अपनी खूबियाँ होती हैं , और वो अपने -अपने तरीके से इस दुनिया को लाभ पहुंचाता है ; बस यही प्रमुख है बाकि सब गौड़ है “, सन्यासी ने अपनी बात पूरी की.

Friends, हमें भी खुद को दूसरों से compare नहीं करना चाहिए , अगर औरों के अन्दर कुछ qualities हैं तो हमारे अन्दर भी कई गुण हैं , पर शायद हम अपने गुणों को कम और दूसरों के गुणों को अधिक आंकते हैं , हकीकत तो ये है की हम सब unique हैं और सभी किसी न किसी रूप में special हैं .

15. सफलता की तैयारी

सफलता की तैयारी


शहर से कुछ दूर एक बुजुर्ग दम्पत्ती रहते थे . वो जगह बिलकुल शांत थी और आस -पास इक्का -दुक्का लोग ही नज़र आते थे .

एक दिन भोर में उन्होंने देखा की एक युवक हाथ में फावड़ा लिए अपनी साइकिल से कहीं जा रहा है , वह कुछ देर दिखाई दिया और फिर उनकी नज़रों से ओझल हो गया .दम्पत्ती ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया , पर अगले दिन फिर वह व्यक्ति उधर से जाता दिखा .अब तो मानो ये रोज की ही बात बन गयी , वह व्यक्ति रोज फावड़ा लिए उधर से गुजरता और थोड़ी देर में आँखों से ओझल हो जाता .

दम्पत्ती इस सुन्सान इलाके में इस तरह किसी के रोज आने -जाने से कुछ परेशान हो गए और उन्होंने उसका पीछा करने का फैसला किया .अगले दिन जब वह उनके घर के सामने से गुजरा तो दंपत्ती भी अपनी गाडी से उसके पीछे -पीछे चलने लगे . कुछ दूर जाने के बाद वह एक पेड़ के पास रुक और अपनी साइकिल वहीँ कड़ी कर आगे बढ़ने लगा . १५-२० कदम चलने के बाद वह रुका और अपने फावड़े से ज़मीन खोदने लगा .

दम्पत्ती को ये बड़ा अजीब लगा और वे हिम्मत कर उसके पास पहुंचे ,“तुम यहाँ इस वीराने में ये काम क्यों कर रहे हो ?”

युवक बोला , “ जी, दो दिन बाद मुझे एक किसान के यहाँ काम पाने क लिए जाना है , और उन्हें ऐसा आदमी चाहिए जिसे खेतों में काम करने का अनुभव हो , चूँकि मैंने पहले कभी खेतों में काम नहीं किया इसलिए कुछ दिनों से यहाँ आकार खेतों में काम करने की तैयारी कर रहा हूँ!!”

दम्पत्ती यह सुनकर काफी प्रभावित हुए और उसे काम मिल जाने का आशीर्वाद दिया .

Friends, किसी भी चीज में सफलता पाने के लिए तैयारी बहुत ज़रूरी है . जिस sincerity के साथ युवक ने खुद को खेतों में काम करने के लिए तैयार किया कुछ उसी तरह हमें भी अपने-अपने क्षेत्र में सफलता के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।

16. जोकर की सीख

जोकर की सीख


एक बार एक जोकर सर्कस मे लोगो को एक चुटकुला सुना रहा था। चुटकुला सुनकर लोग खूब जोर-जोर से हंसने लगे । कुछ देर बाद जोकर ने वही चुटकुला दुबारा सुनाया । अबकी बार कम लोग हंसे । थोडा और समय बीतेने के बाद तीसरी बार भी जोकर ने वही चुटकुला सुनाना शुरू किया ।

पर इससे पहले कि वो अपनी बात ख़त्म करता बीच में ही एक दर्शक बोला, ” अरे ! कितनी बार एक ही चुटकुला सुनाओगे…. कुछ और सुनाओ अब इस पर हंसी नहीं आती। “

जोकर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , ” धन्यवाद भाई साहब , यही तो मैं भी कहना चाहता हूँ…. जब ख़ुशी के एक कारण की वजह से आप लोग बार- बार खुश नहीं हो सकते तो दुःख के एक कारण से बार-बार दुखी क्यों होते हो , भाइयों हमारे जीवन में अधिक दुःख और कम ख़ुशी का यही कारण है…हम ख़ुशी को आसानी से छोड़ देते हैं पर दुःख को पकड़ कर बैठे रहते हैं … “

मित्रो इस बात का आशय यह है कि जीवन मे सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है ।पर जिस तरह एक ही खुशी को हम बार बार नही महसूस करना चाहते उसी तरह हमें एक ही दु:ख से बार-बार दुखी नहीं महसूस करना चाहिए । जीवन मे सफलता तभी मिलती है जब हम दु:खो को भूलकर आगे बढने का परयत्न करते है ।

17. पेड़ों की समस्या

पेड़ों की समस्या


एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बागीचे में सैर करने गया , पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़- पौधे मुरझाए हुए हैं । राजा बहुत चिंतित हुआ, उसने इसकी वजह जानने के सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा।

ओक वृक्ष ने कहा, वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है। राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी की वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी।

राजा थोडा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था, खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था।

राजा ने उससे पूछा , ” बड़ी अजीब बात है , मैं पूरे बाग़ में घूम चुका लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े पेड़ दुखी हुई बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो…. ऐसा कैसे संभव है ?”

पेड़ बोला , ” महाराज , बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाये स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं , जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं , यदि आप इस स्थान पर ओक , अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते !! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता केअनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ । “

Friends, इस छोटी सी कहानी में बहुत बड़ा संदेश छिपा है। हम अकसर दुसरो से अपनी तुलना कर स्वयं को कम आंकने की गलती कर बैठते हैं । दूसरो की विशेषताओ से प्रेरित होने की बजाए हम अफ़सोस करने लगते हैं कि हम उन जैसे क्यों नहीं हैं ।

न तो हम Sachin Tendulkar की तरह बैटिंग कर सकते हैं , न Amitabh Bachchan की तरह acting कर सकते है और न ही हम Usain Bolt की तरह दौड़ सकते हैं या Roger Federer की तरह Tennis खेल सकते है। हमें यह याद रखना चाहिए की सभी व्यक्ति अलग हैं और सभी की विशेषताए अलग हैं । हम जैसे है वैसे ही अस्तित्व हमें चाहता है। हम सभी में कुछ ऐसी qualities है, जो अन्य लोगो में नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उस quality को और विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की ।

हम सभी में कुछ ऐसी Qualities है, जो अन्य लोगो में नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उस quality को और विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की। अगर हम यकीन कर ले की हम सफल हो सकते है, तो इससे दूसरे भी हम पर विश्वास करने लगते है। इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी खुद का मूल्यांकन कम करने की होती है। हमें अपनी कमिया पता होना अच्छी बात है। इनसे हमें यह पता चलता है की हमें किस क्षेत्र में सुधार करना है।

हमेशा अपने गुणों, अपनी योग्यताओ पर ध्यान केन्द्रित करे। यह जान ले, आप जितना समझते है, आप उससे कही बेहतर है। बड़ी सफलता उन्ही लोगो का दरवाजा खटखटाती है जो लगातार खुद के सामने उचे लक्ष्य रखते है, जो अपनी कार्यक्षमता सुधारना चाहते है।

18. एक बाल्टी दूध

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।

अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।

दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।

मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश मेंबर ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।

Moral Story In Hindi With Picture पढ़ने के लिए धन्यवाद जो वास्तव में आपको ज़िन्दगी की कई बातें सीखने में मदद करती है जो आजकल ज़रूरी हैं। Moral Stories In Hindi With Picture उन बच्चों के लिए बहुत करती है जिनकी उम्र 13 साल से कम है। अगर आप और कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं फिर आप ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक करें जो कि बहुत दिलचस्प कहानियाँ है।

दोस्तों आपको ये Moral Stories In Hindi With Picture कहानियां कैसी लगी? आप हमें नीचे दिए गए कम्मेंट सेक्शन में ज़रूर बताये।
 

सम्बंधित टॉपिक्स

सदस्य ऑनलाइन

अभी कोई सदस्य ऑनलाइन नहीं हैं।

हाल के टॉपिक्स

फोरम के आँकड़े

टॉपिक्स
1,845
पोस्ट्स
1,886
सदस्य
242
नवीनतम सदस्य
Ashish jadhav
Back
Top