Best Motivational Stories In Hindi for Success

Best Motivational Stories In Hindi for Success ये 10 कहानियों को पढ़ने के बाद आपकी सोच बदल जाएगी ये कहानियां आपको inspire motivate करेगी हम वादा करते हैं, यदि आप इन प्रेरक लघु कथाओं को हिंदी में गहराई से पढ़ेंगे तो आप उचित रूप से संतुष्ट होंगे।

Motivational Stories In Hindi for Success – किसी बड़े काम को करने के लिये एक बड़ी energy चहिये होती है और वो energy आती है किसी की life story से, किताबों से, या फिर छोटी-छोटी कहानियों से।

1. First opportunity

एक नौजवान आदमी एक किसान की बेटी सेशादी की इच्छा लेकर किसान के पास गया. किसानने उसकी ओर देखा और कहा, ” युवक, खेत मेंजाओ. मैं एक एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ.अगर तुम तीनों बैलों में से किसी भी एक की पूँछपकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूंगा.”नौजवान खेत में बैल की पूँछ पकड़ने की मुद्रा लेकरखडा हो गया.

किसान ने खेत में स्थित घरका दरवाजा खोला और एक बहुत ही बड़ा औरखतरनाक बैल उसमे से निकला. नौजवान ने ऐसा बैलपहले कभी नहीं देखा था. उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ारकरेगा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसकेपास से होकर निकल गया.दरवाजा फिर खुला.

आश्चर्यजनक रूप से इस बारपहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला. नौजवान नेसोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था. फिर उसने एक ओर होकर बैलको निकल जाने दिया.दरवाजा तीसरी बार खुला. नौजवानके चहरे परमुस्कान आ गई. इस बार एक छोटा औरमरियल बैलनिकला. जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा,नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिएमुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले. पर उस बैल की पूँछ थी ही नहीं.

सीख……ज़िन्दगी अवसरों से भरी हुई है. कुछ सरल हैं औरकुछ कठिन. पर अगर एक बार अवसरगवां दिया तो फिर वह अवसर दुबारा नहीं मिलेगा. अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करनेका प्रयास करना चाहिए

2. शिकंजी का स्वाद

शिकंजी का स्वाद


एक प्रोफ़ेसर क्लास ले रहे थे. क्लास के सभी छात्र बड़ी ही रूचि से उनके लेक्चर को सुन रहे थे. उनके पूछे गये सवालों के जवाब दे रहे थे. लेकिन उन छात्रों के बीच कक्षा में एक छात्र ऐसा भी था, जो चुपचाप और गुमसुम बैठा हुआ था.

प्रोफ़ेसर ने पहले ही दिन उस छात्र को नोटिस कर लिया, लेकिन कुछ नहीं बोले. लेकिन जब ४-५ दिन तक ऐसा ही चला, तो उन्होंने उस छात्र को क्लास के बाद अपने केबिन में बुलवाया और पूछा, “तुम हर समय उदास रहते हो. क्लास में अकेले और चुपचाप बैठे रहते हो. लेक्चर पर भी ध्यान नहीं देते. क्या बात है? कुछ परेशानी है क्या?”

“सर, वो…..” छात्र कुछ हिचकिचाते हुए बोला, “….मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से मैं परेशान रहता हूँ. समझ नहीं आता क्या करूं?”

प्रोफ़ेसर भले व्यक्ति थे. उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बुलवाया.

शाम को जब छात्र प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा, तो प्रोफ़ेसर ने उसे अंदर बुलाकर बैठाया. फिर स्वयं किचन में चले गये और शिकंजी बनाने लगे. उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में ज्यादा नमक डाल दिया.

फिर किचन से बाहर आकर शिकंजी का गिलास छात्र को देकर कहा, “ये लो, शिकंजी पियो.”

छात्र ने गिलास हाथ में लेकर जैसे ही एक घूंट लिया, अधिक नमक के स्वाद के कारण उसका मुँह अजीब सा बन गया. यह देख प्रोफ़ेसर ने पूछा, “क्या हुआ? शिकंजी पसंद नहीं आई?”

“नहीं सर, ऐसी बात नहीं है. बस शिकंजी में नमक थोड़ा ज्यादा है.” छात्र बोला.

“अरे, अब तो ये बेकार हो गया. लाओ गिलास मुझे दो. मैं इसे फेंक देता हूँ.” प्रोफ़ेसर ने छात्र से गिलास लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया. लेकिन छात्र ने मना करते हुए कहा, “नहीं सर, बस नमक ही तो ज्यादा है. थोड़ी चीनी और मिलायेंगे, तो स्वाद ठीक हो जायेगा.”

यह बात सुन प्रोफ़ेसर गंभीर हो गए और बोले, “सही कहा तुमने. अब इसे समझ भी जाओ. ये शिकंजी तुम्हारी जिंदगी है. इसमें घुला अधिक नमक तुम्हारे अतीत के बुरे अनुभव है. जैसे नमक को शिकंजी से बाहर नहीं निकाल सकते, वैसे ही उन बुरे अनुभवों को भी जीवन से अलग नहीं कर सकते. वे बुरे अनुभव भी जीवन का हिस्सा ही हैं. लेकिन जिस तरह हम चीनी घोलकर शिकंजी का स्वाद बदल सकते हैं. वैसे ही बुरे अनुभवों को भूलने के लिए जीवन में मिठास तो घोलनी पड़ेगी ना. इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अब अपने जीवन में मिठास घोलो.”

प्रोफ़ेसर की बात छात्र समझ गया और उसने निश्चय किया कि अब वह बीती बातों से परेशान नहीं होगा.

सीख – जीवन में अक्सर हम अतीत की बुरी यादों और अनुभवों को याद कर दु:खी होते रहते हैं. इस तरह हम अपने वर्तमान पर ध्यान नहीं दे पाते और कहीं न कहीं अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं. जो हो चुका, उसे सुधारा नहीं जा सकता. लेकिन कम से कम उसे भुलाया तो जा सकता है और उन्हें भुलाने के लिए नई मीठी यादें हमें आज बनानी होगी. जीवन में मीठे और ख़ुशनुमा लम्हों को लाइये, तभी तो जीवन में मिठास आयेगी.

3. हीरे की खान

हीरे की खान


अफ्रीका महाद्वीप में हीरों की कई खानों की खोज हो चुकी थी, जहाँ से बहुतायत में हीरे प्राप्त हुए थे. वहाँ के एक गाँव में रहने वाला किसान अक्सर उन लोगों की कहानियाँ सुना करता था, जिन्होंने हीरों की खान खोजकर अच्छे पैसे कमाये और अमीर बन गए. वह भी हीरे की खान खोजकर अमीर बनना चाहता था.

एक दिन अमीर बनने के सपने को साकार करने के लिए उसने अपना खेत बेच दिया और हीरों की खान की खोज में निकल पड़ा. अफ्रीका के लगभग सभी स्थान छान मारने के बाद भी उसे हीरों का कुछ पता नहीं चला. समय गुजरने के साथ उसका मनोबल गिरने लगा. उसे अपना अमीर बनने का सपना टूटता दिखाई देने लगा. वह इतना हताश हो गया कि उसके जीने की तमन्ना ही समाप्त हो गई और एक दिन उसने नदी में कूदकर अपनी जान दे दी.

इस दौरान दूसरा किसान, जिसने पहले किसान से उसका खेत खरीदा था, एक दिन उसी खेत के मध्य बहती छोटी नदी पर गया. सहसा उसे नदी के पानी में से इंद्रधनुषी प्रकाश फूटता दिखाई पड़ा. उसने ध्यान से देखा, तो पाया कि नदी के किनारे एक पत्थर पर सूर्य की किरणें पड़ने से वह चमक रहा था. किसान ने झुककर वह पत्थर उठा लिया और घर ले आया.

वह एक ख़ूबसूरत पत्थर था. उसने सोचा कि यह सजावट के काम आएगा और उसने उसे घर पर ही सजा लिया. कई दिनों तक वह पत्थर उसके घर पर सजा रहा. एक दिन उसके घर उसका एक मित्र आया. उसने जब वह पत्थर देखा, तो हैरान रह गया.

उसने किसान से पूछा, “मित्र! तुम इस पत्थर ही कीमत की जानते हो?”

किसान ने जवाब दिया, “नहीं.”

“मेरे ख्याल से ये हीरा है. शायद अब तक खोजे गए हीरों में सबसे बड़ा हीरा.” मित्र बोला.

किसान के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल था. उसने अपने मित्र को बताया कि उसे यह पत्थर अपने खेत की नदी के किनारे मिला है. वहाँ ऐसे और भी पत्थर हो सकते हैं.”

दोनों खेत पहुँचे और वहाँ से कुछ पत्थर नमूने के तौर पर चुन लिए. फिर उन्हें जाँच के लिए भेज दिया. जब जाँच रिपोर्ट आयी, तो किसान के मित्र की बात सच निकली. वे पत्थर हीरे ही थे. उस खेत में हीरों का भंडार था. वह उस समय तक खोजी गई सबसे कीमती हीरे की खदान थी. उसका खदान का नाम ‘किम्बर्ले डायमंड माइन्स’ है. दूसरा किसान उस खदान की वजह से मालामाल हो गया.

पहला किसान अफ्रीका में दर-दर भटका और अंत में जान दे दी. जबकि हीरे की खान उसके अपने खेत में उसके क़दमों तले थी.

सीख – मित्रों, इस कहानी में हीरे पहले किसान के कदमों तले ही थे, लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं पाया और उनकी खोज में भटकता रहा. ठीक वैसे ही हम भी सफलता प्राप्ति के लिए अच्छे अवसरों की तलाश में भटकते रहते हैं. हम उन अवसरों को पहचान नहीं पाते या पहचानकर भी महत्व नहीं देते, जो हमारे आस-पास ही छुपे रहते हैं. जीवन में सफ़ल होना है, तो आवश्यकता है बुद्धिमानी और परख से उन अवसरों को पहचानने की और धैर्य से अनवरत कार्य करने की. सफ़लता निश्चित है.

4. आख़री प्रयास

आख़री प्रयास


एक समय की बात है. एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया.राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ. उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया.

महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं. सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना. इसके लिए तुम्हें 50 स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी.”

50 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए. अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा. किंतु पत्थर जस का तस रहा. मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये. किंतु पत्थर नहीं टूटा.

पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा.

वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है. इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती.

महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था. इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया. पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया.

पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया. इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 50 स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता.

सीख – मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं. कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं. कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं. जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता. यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती. क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये.

5. आलस्य को छोड़ो

पुरानी लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक गरुड़ अपने दो बच्चों को अपनी पीठ पर बैठाकर एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। दोनों बच्चों ने वहां दिनभर दाना चुगते रहे। शाम को गरुड़ ने फिर बच्चों को अपनी पीठ पर बैठाकर अपने घर पहुंचा दिया। रोज यही क्रम चलने लगा। बच्चों ने सोचा कि जब पिताजी पीठ पर बैठाकर ले जाते हैं तो हमें उड़ाने की क्या जरूरत है।

गरुड़ ने समझ लिया कि उसके दोनों बच्चे आलसी हो गए हैं और मेहनत नहीं करना चाहते हैं। इसीलिए उड़ना नहीं सीख रहे हैं। एक दिन सुबह-सुबह गरुड़ ने बच्चों को अपनी पीठ पर बैठाकर ऊंची उड़ान भरी। ऊंचाई पर पहुंचकर गरुड़ ने पीठ पर बैठे दोनों बच्चों को गिरा दिया। अब दोनों बच्चों ने अपने-अपने पंख फड़फड़ाना शुरू कर दिए। उस दिन उन्हें समझ आ गया कि उड़ना सीखना बहुत जरूरी है। किसी तरह दोनों बच्चों ने अपने प्राण बचा लिए।

शाम को घर पहुंचकर दोनों बच्चों ने अपनी माता मादा गरुड़ से कहा कि मां आज हमने पंख न फड़फड़ाए होते तो पिताजी ने मरवा ही दिया था। मादा गरुड़ ने अपने बच्चों से कहा कि जो लोग अपने आप नहीं सीखते हैं, आलस्य नहीं छोड़ते हैं, उन्हें सिखाने का यही नियम है। हमारी पहचान ऊंची उड़ान से होती है, यही हमारी योग्यता है। इसे बढ़ाने के लिए लगातार अभ्यास करते रहने की जरूरत है। बच्चों को अपनी मां की बातें समझ आ गईं, इसके बाद उन्होंने भी आलस्य छोड़कर उड़ना सीखा और लगातार अभ्यास से वे भी काफी ऊंचाई तक उड़ने लगे।

Moral Of The Story : अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें आलस्य छोड़कर अपनी योग्यता को बढ़ाते रहना चाहिए। किसी भी काम में परफेक्ट होने के लिए लगातार अभ्यास करते रहना चाहिए। इस कहानी में गरुड़ के बच्चे आलसी थे, इस कारण उड़ना नहीं सीख रहे थे। गरुड़ की योग्यता यही है कि वे काफी ऊंचाई तक उड़ सकते हैं। इसके लिए गरुड़ के बच्चों ने आलस्य छोड़कर उड़ना सीख लिया।

6. बिल गेट्स

बिल गेट्स


बिल गेट्स का वास्तविक तथा पूर्ण नाम विलियम हेनरी गेट्स है। इनका जन्म 28 अक्टूबर, 1955 को वाशिंगटन के सिएटल में हुआ। इनके परिवार में इनके अतिरिक्त चार और सदस्य थे – इनके पिता विलियम एच गेट्स जो कि एक मशहूर वकील थे, इनकी माता मैरी मैक्‍सवेल गेट्स जो प्रथम इंटरस्टेट बैंक सिस्टम और यूनाइटेड वे के निदेशक मंडल कि सदस्य थी तथा इनकी दो बहनें जिनका नाम क्रिस्टी और लिब्बी हैं। बिल गेट्स ने अपने बचपन का भी भरपूर आनंद लिया तथा पढ़ाई के साथ वह खेल कूद में भी सक्रिय रूप से भाग लेते रहे।

बिल गेट्स को किसी परिचय कि आवश्यकता नहीं है, वह पूरी दुनिया में अपने कार्यों से जाने जाते हैं। हम सभी यह भली भांति जानते हैं कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ Software Company “Microsoft” की नींव भी बिल गेट्स के द्वारा ही रखी गयी है।

बिल गेट्स का बचपन –
उनके माता – पिता उनके लिए क़ानून में करियर बनाने का स्वप्न लेकर बैठे थे परन्तु उन्हें बचपन से ही कंप्यूटर विज्ञान तथा उसकी प्रोग्रामिंग भाषाओं में रूचि थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लेकसाइड स्कूल में हुई। जब वह आठवीं कक्षा के छात्र थे तब उनके विद्यालय ने ऐएसआर – 33 दूरटंकण टर्मिनल तथा जनरल इलेक्ट्रिक (जी।ई।) कंप्यूटर पर एक कंप्यूटर प्रोग्राम खरीदा जिसमें गेट्स ने रूचि दिखाई। तत्पश्चात मात्र तेरह वर्ष की आयु में उन्होंने अपना पहला कंप्यूटर प्रोग्राम लिखा जिसका नाम “टिक-टैक-टो” (tic-tac-toe) तथा इसका प्रयोग कंप्यूटर से खेल खेलने हेतु किया जाता था। बिल गेट्स इस मशीन से बहुत अधिक प्रभावित थे तथा जानने को उत्सुक थे कि यह सॉफ्टवेयर कोड्स किस प्रकार कार्य करते हैं।

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के प्रति बिल गेट्स की लगन –
इसके पश्चात गेट्स डीईसी (DEC), पीडीपी (PDP), मिनी कंप्यूटर नामक सिस्टमों में दिलचस्पी दिखाते रहे, परन्तु उन्हें कंप्यूटर सेंटर कॉरपोरेशन द्वारा ऑपरेटिंग सिस्टम में हो रही खामियों के लिए 1 महीने तक प्रतिबंधित कर दिया गया। इसी समय के दौरान उन्होंने अपने मित्रों के साथ मिलकर सीसीसी के सॉफ्टवेयर में हो रही कमियों को दूर कर लोगों को प्रभावित किया तथा उसके पश्चात वह सीसीसी के कार्यालय में निरंतर जाकर विभिन्न प्रोग्रामों के लिए सोर्स कोड का अध्ययन करते रहे और यह सिलसिला 1970 तक चलता रहा। इसके पश्चात इन्फोर्मेशन साइंसेस आइएनसी। लेकसाइड के चार छात्रों को जिनमें बिल गेट्स भी शामिल थे, कंप्यूटर समय एवं रॉयल्टी उपलब्ध कराकर कोबोल (COBOL), पर एक पेरोल प्रोग्राम लिखने के लिए किराए पर रख लिया।

इसके पश्चात उन्हें रोकना नामुमकिन था। मात्र 17 वर्ष कि उम्र में उन्होंने अपने मित्र एलन के साथ मिलकर ट्राफ़- ओ- डाटा नामक एक उपक्रम बनाया जो इंटेल 8008 प्रोसेसर (Intel 8008 Processor) पर आधारित यातायात काउनटर (Traffic Counter) बनाने के लिए प्रयोग में लाया गया। 1973 में वह लेकसाइड स्कूल से पास हुए तथा उसके पश्चात बहु- प्रचलित हारवर्ड कॉलेज में उनका दाखिला हुआ।

परन्तु उन्होंने 1975 में ही बिना स्नातक किए वहाँ से विदा ले ली जिसका कारण था उस समय उनके जीवन में दिशा का अभाव। उसके पश्चात उन्होंने Intel 8080 चिप बनाया तथा यह उस समय का व्यक्तिगत कंप्यूटर के अन्दर चलने वाला सबसे वहनयोग्य चिप था, जिसके पश्चात बिल गेट्स को यह एहसास हुआ कि समय द्वारा दिया गया यह सबसे उत्तम अवसर है जब उन्हें अपनी स्वयं कि कंपनी का आरम्भ करना चाहिए।

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी का उत्थान –
MITS (Micro Instrumentation and Telemetry Systems) जिन्होंने एक माइक्रो कंप्यूटर का निर्माण किया था, उन्होंने गेट्स को एक प्रदर्शनी में उपस्थित होने कि सहमती दी तथा गेट्स ने उनके लिए अलटेयर एमुलेटर (Emulator) निर्मित किया जो Mini Computer और बाद में इंटरप्रेटर में सक्रिय रूप से कार्य करने लगा। इसके बाद बिल गेट्स व् उनके साथी को MITS के अल्बुकर्क स्थित कार्यालय में काम करने कि अनुमति दी गयी। उन्होंने अपनी जोड़ी का नाम Micro-Soft रखा तथा अपने पहले कार्यालय कि स्थापना अल्बुकर्क में ही की।

26 नवम्बर, 1976 को उन्होंने Microsoft का नाम एक व्यापारिक कंपनी के तौर पर पंजीकृत किया। Microsoft Basic कंप्यूटर के चाहने वालों में सबसे अधिक लोकप्रिय हो गया था। 1976 में ही Microsoft MITS से पूर्णत: स्वतंत्र हो गया तथा Gates और Allen ने मिलकर कंप्यूटर में प्रोग्रामिंग भाषा Software का कार्य जारी रखा।

इनसे बाद Microsoft ने अल्बुकर्क में अपना कार्यालय बंद कर बेलेवुए, वाशिंगटन में अपना नया कार्यालय खोला। Microsoft ने उन्नति की ओर बढ़ते हुए प्रारंभिक वर्षों में बहुत मेहनत व् लगन से कार्य किया। गेट्स भी व्यावसायिक विवरण पर भी ध्यान देते थे, कोड लिखने का कार्य भी करते थे तथा अन्य कर्मचारियों द्वारा लिखे गए व् जारी किये गए कोड कि प्रत्येक पंक्ति कि समीक्षा भी वह स्वयं ही करते थे।

इसके बाद जानी मानी कंपनी IBM ने Microsoft के साथ काम करने में रूचि दिखाई, उन्होंने Microsoft से अपने पर्सनल कंप्यूटर के लिए बेसिक इंटरप्रेटर बनाने का अनुरोध किया। कई कठिनाइयों से निकलने के बाद गेट्स ने Seattle कंप्यूटर प्रोडक्ट्स के साथ एक समझौता किया जिसके बाद एकीकृत लाइसेंसिंग एजेंट और बाद में 86-DOS के वह पूर्ण आधिकारिक बन गए और बाद में उन्होंने इसे आईबीएम को $80,000 के शुल्क पर PC-DOS के नाम से उपलब्ध कराया। इसके पश्चात Microsoft का उद्योग जगत में बहुत नाम हुआ।

1981 में Microsoft को पुनर्गठित कर बिल गेट्स को इसका चेयरमैन व् निदेशक मंडल का अध्यक्ष बनाया गया। जिसके बाद Microsoft ने अपना Microsoft Windows का पहला संस्करण पेश किया। 1975 से लेकर 2006 तक उन्होंने Microsoft के पद पर बहुत ही अदभुत कार्य किया, उन्होंने इस दौरान Microsoft कंपनी के हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।

बिल गेट्स का विवाह व् आगे का जीवन –
1994 में बिल गेट्स का विवाह फ्रांस में रहने वाली Melinda से हुआ तथा 1996 में इन्होंने जेनिफर कैथेराइन गेट्स को जन्म दिया। इसके बाद मेलिंडा तथा बिल गेट्स के दो और बच्चे हुए जिनके नाम रोरी जॉन गेट्स तथा फोएबे अदेले गेट्स हैं। वर्तमान में बिल गेट्स अपने परिवार के साथ वाशिंगटन स्थित मेडिना में उपस्थित अपने सुन्दर घर में रहते हैं, जिसकी कीमत 1250 लाख डॉलर है।

बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन का उदय –
वर्ष 2000 में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशनकी नींव रखी जो कि पारदर्शिता से संचालित होने वाला विश्व का सबसे बड़ा Charitable फाउंडेशन था। उनका यह फाउंडेशन ऐसी समस्याओं के लिए कोष दान में देता था जो सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ कर दी जाती थीं जैसे कि कृषि, कम प्रतिनिधित्व वाले अल्पसंख्यक समुदायों के लिये कॉलेज छात्रवृत्तियां, एड्स जैसी बीमारियों के निवारण हेतु, इत्यादि।

परोपकारी कार्य –
सन 2000 में इस फाउंडेशन ने Cambridge University को 210 मिलियन डॉलर गेट्स कैम्ब्रिज छात्रवृत्तियों हेतु दान किये। वर्ष 2000 तक बिल गेट्स ने 29 बिलियन डॉलर केवल परोपकारी कार्यों हेतु दान में दे दिए। लोगों की उनसे बढती हुई उम्मीदों को देखते हुए वर्ष 2006 में उन्होंने यह घोषणा की कि वह अब Microsoft में अंशकालिक रूप से कार्य करेंगे और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन में पूर्णकालिक रूप से कार्य करेंगे। वर्ष 2008 में गेट्स ने Microsoft के दैनिक परिचालन प्रबंधन कार्य से पूर्णतया विदा ले ली परन्तु अध्यक्ष और सलाहकार के रूप में वह Microsoft में विद्यमान रहे

7 - Problems Oriented Vs Solutions Oriented

Problems Oriented Vs Solutions Oriented


एक समय की बात है। एक आदमी मज़े से दोपहर में कार से ट्रेवल कर रहा था। वो अपनी धुन में गाड़ी चला रहा था।
आगे एक पुल था जिसके नीचे नदी बह रही थीं।

जब वो पल पार कर रहा था। अचानक से उसको लगा।
गाड़ी चलाने में कुछ दिक्कत हो रही हैं। उसको अंदाज़ा हो गया था गाड़ी का कोई ना कोई टायर तो पंचर हुआ है।
उसने नीचे उतर के देखा गाड़ी का पीछे वाला (Left Side) का टायर पंचर हो गया है।

अब वो परेशान इतनी तेज़ धूप में टायर बदलना पड़ेगा वह बोला खौर जो भी हैं। टायर तो बदलना ही पड़ेगा।
उसके बाद उसने गाड़ी में से जैक निकाला उसको गाड़ी में फिट किया। टायर के बोल्ट खोले। और चारो बोल्ट को एक सात साइड में रख दिया।

अब वो टायर को निकालने लगा उसने ज़ोर लगाया टायर को झटके से पीछे खींचा इसी दौरान उसका पैर साइड में रखे बोल्ट पे लगा और चारो बोल्ट नदी में गिर गए। अब वो बंदा बहुत ज़्यादा परेशान सोचने लगा अब मैं टायर कैसे बदलूँगा अब क्या होगा

मैं कैसे अपनी मंज़िल पे पहुँचूँगा। पहले से ही इतना लेट हो गया हूं। इतनी गर्मी में दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा है।

किसी से मदद भी नहीं मांग सकता। सिट यार ये मैं कहाँ फस गया। वह आदमी अब निराश होकर खड़ा है।

उसकी सोच काम नहीं कर रही हैं। अब-जब भी वो सोचने बैठता है। एक ही बात उसके दिमाग में आती हैं चारो बोल्ट नदी में गिर चुके हैं। अब वो आगे नहीं जा सकता।
अब ये बंदा परेशानी में काफ़ी देर हो चुकी हैं।

अब सामने से उसको एक किसान नज़र आता है। वो ये सोच रहा होता हैं। उससे मदद मांगू या नहीं मांगु क्या ये मेरी मदद कर पायेगा या नहीं। अब ये सोच ही रहा होता हैं वो किसान खुद ही आके पूछ लेता हैं। साहब कोई परेशानी है तो बताइये।
क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ।

अब ये आदमी पहले से ही परेशान हैं। गुस्से में हैं। और बोलता है मेरा टायर पंचर हो गया है। अब स्टेपनी लगा रहा था तो बोल्ट नदी में गिर गए। वह गुस्से से बोला अब तू भी मेरी क्या मदद करेगा ? वो किसान समझ गया ये बंदा गर्मी और परेशानी की वज़ह से ये गुस्से में हैं।

किसान मुस्कुराते हुए बोलता है यहां से (10.Km) की दूरी पे एक मकैनिक हैं उसके पास गाड़ी का सारा सामान मिल जाता हैं। और वहां जाने के लिए आप एक काम कर सकते हो आप अपनी गाड़ी के बाकी तीन टायरों के एक-एक बोल्ट खोल के इसमें लगा लो और धीरे-धीरे गाड़ी चला कर वहां चले जाओ। आपका काम हो जाएगा।

वह आदमी हैरान हो जाता हैं। उसका गुस्सा एक दम शांत हो जाता हैं। और कहता है। भाईसाहब मैं इतनी देर से इस परेशानी से लड़ रहा था। इसने ज़रा देर में इसका हल निकाल दिया। उसने किसान से बोला माफ़ करना भाई।

और बोला आपने इतनी जल्दी इस परेशानी का हल कैसे निकाल दिया। क्या ये परेशानी पहले आपके साथ हुई थी ?

किसान मुस्कुराते हुए बोला ऐसा कुछ नहीं है।
सिर्फ एक ही फ़र्क़ हैं। आप उस परिस्थिति में परेशानी के बारे में सोच रहे थे। और मैं उसी परिस्थिति में हल के बारे में सोच रहा था।

सो दोस्तों आप या तो (Problems Oriented) हो सकते हो या फिर (Solutions Oriented) हो सकते हो
या तो आप (Problems) आते ही परेशान होने लगोगे (Problems) के अलावा कुछ दिखेगा नहीं।
परेशानी की वज़ह से कुछ कर नहीं पाओगे।

लेकिन आप (Solutions Oriented) हो तो
आप (Solutions) ढूँढने में ध्यान करोगे आपका दिमाग हल को तलाश करने में चलेगा ना के परेशानी ढूंढने में।

जब महाराणा प्रताप की सेना में।
अकबर की सेना के मुकाबले हाथी कम थे। तो उन्होंने घोड़ो के आगे नकली सूंड लगा दिए। के उनको हाथी अपना साथी समझ के मारे ना।

महाराणा प्रताप ने परेशानी पे ध्यान नहीं दिया के हाथी कम हैं। उन्होंने हल निकालने में ध्यान दिया। घोड़ो को हाथी बना दिया।

8 - सफलता का रहस्य

एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है?

सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो.वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया. लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना.

सुकरात ने पूछा ,” जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”

लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना”

सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है.

सो आज से अभी से अपने (Future) को (Build) करना शुरु कर दो अपने (Future) की ईंट अच्छे से लगा दे अपने (Hard) (Work) के साथ अपने (Focus) के साथ (Education) के साथ अपने (Future) को पेंट करते हैं।

All The Best

9. सफ़ाई कर्मचारी

बहुत बार हमारी ज़िन्दगी में ऐसी परेशानी आती हैं। मुश्किलें आती हैं। के हम समझ ही नहीं पाते ये हमारे साथ ही क्यों हो रहा है।

एक बार एक मंदिर में सफ़ाई करने वाला कर्मचारी भगवान की तरफ़ देखता है। और कहता है। भगवान आप बोर नहीं हो जाते एक ही जगह पे खड़े-खड़े इतनी सालो से एक ही (Position) में खड़े हो।

कर्मचारी-मेरे पास एक आईडिया हैं। क्यो ना हम एक दिन के लिए (Rol Exchange) कर ले ? आप मेरे रूप में एक दिन मेरी ज़िन्दगी जी के देखों और मैं आपके रूप में एक दिन यहाँ खड़े हो जाता हूँ। आप भी एक दिन छुट्टी लो आप भी एक दिन आराम करो।

भगवान आगे से जबाब देते हैं। यहाँ खड़े होना इतना आसान नहीं है। तू अपना काम कर और मुझे अपना काम करने दे। यहाँ खड़े रहना बहुत मुश्किल है। वो सेवक कहता है। नहीं भगवान
आप जैसे बोलोगे मैं वैसा ही करूँगा। जैसे कहोगे वैसे ही खड़ा हो जाऊँगा। लेकिन आप एक दिन के लिए मेरी ज़िन्दगी जी के देखो।

वो भगवान जी कहते हैं मैं रूप तो (Exchange) कर लूंगा तू मेरे रूप में आजा मै तेरे रूप में आ जाऊँगा लेकिन मेरी एक बात याद रखना तुझे मूर्ति बन के खड़े रहना है। लोग कुछ भी कहे कुछ बोले कोई अपने दुःख सुनाए कोई अपनी तख़लीक़ सुनाए या कोई तुझसे कुछ मांगे तुझे बस मूर्ति बन के खड़े रहना है।

सेवक कहता है ठीक है भगवान मुझे मंज़ूर हैं। सेवक मूर्ति बन के खड़ा हो जाता हैं। और भगवान एक दिन की छुट्टी लेके चले जाते हैं। अब ये सेवक भगवान की मूर्ति बन के मंदिर में खड़ा है। मंदिर में पहला भक्त आता है। वो भी (Business Men) और कहता है। हे भगवान मेरी दौलत और बढ़ाना मेरे पैसे और बढ़ाना। मेरी इज़्ज़त और बढ़ाना मैं एक नई फैक्टरी और लगा रहा हूँ। उसपे भी अपनी कृपा बनाये रखना। और आगे माथा टेकता हैं।

और जब उठता है तो अपना (Wallet) वहीं भूल जाता हैं। और वही भूल के वो चला जाता हैं।

ये देखकर मूर्ति के रूप में सेवक को बड़ी घबराहट होती हैं।
के उसका (Wallet) रह गया। उसका मन करता है उसको आवाज़ दे दु तेरा (Wallet) रह गया। लेकिन सेवक वो याद आ जाता है भगवान ने कहा था। तुझे हिलना नहीं है। कुछ नहीं बोलना हैं। जो होना है। बस देखते रहना है।

तो वो सेवक मूर्ति के रूप बिना कुछ बोले खड़ा रहता हैं।
इतने में एक दूसरा भक्त आता हैं। जो एक गरीब आदमी हैं।
वो एक रुपया भगवान के आगे चढ़ाता हैं और कहता हैं हे भगवान मेरे पास सिर्फ़ एक रुपया था वो भी मैंने चढ़ा दिया।

मेरे घर में बहुत परेशानी है। बहुत गरीबी हैं। दवाई की ज़रुरत है। हे भगवान कुछ कृपा कर। वो माथा टेकता हैं। और आंखे खोलता है। उसकी नज़र उस (Wallet) पे पड़ती है जो (Business Man) का रह गया था। वो कहता हैं। हे भगवान तेरा सुक्र हैं। जो तूने मुझे पैसे दे दिए। (Wallet) लेके वो गरीब आदमी चला जाता हैं।

इतने में मूर्ति बने सेवक को और घबराहट होती हैं। वो उसका (Wallet) इसने चोरी कर लिया मैंने तो दिया नहीं।
सेवक को और प्रोब्लम होती हैं। वो कहता हैं यार मैं रोक सकू लेकिन भगवान ने बोला है। तुझे हिलना नहीं है।

वो सेवक अपनी घबराहट को किसी तरीके से रोकता है। और मूर्ति के रूप में खड़े रहता हैं। इतने में तीसरा भक्त आता। वह माथा टेक के कहता है। हे भगवान मैं अपनी समुन्द्र जहाज़ को लेके अगले (15) दिन के लिए काम पे जा रहा हूँ अपनी कृपा मेरे पे बनाये रखना। इतने में वो (Business Men) पुलिस को लेकर आ जाता हैं। जिसका (Wallet) रह गया था।

(Business Men) कहता हैं मेरे बाद यही आया है इसको पकड़ लो। और चोरी के जुर्म में पुलिस उसको पकड़ लेती हैं।

अब ये देख के सेवक कहता हैं। मुझसे नहीं रोका जाएगा
अगर मेरी जगह भगवान यहाँ होते तो वो भी इतनी ना इंसाफी नहीं देखते अब मुझे बोलना पड़ेगा।

तो वो मूर्ति बना सेवक बोल पड़ता हैं। (Excuse Me) मैं भगवान हु मैंने देखा हैं क्या हुआ है। (Business Men) का

(Wallet) उस ग़रीब आदमी ने चुराया हैं उसको पकड़ो इसमें (Seller) का कोई कसूर नहीं है। इसको छोड़ दो इसे अपने (Business Tour) पे जाना है।

तो पुलिस कहती हैं। भगवान खुद बोल पड़े। पुलिस उस गरीब आदमी को पकड़ लेती हैं। उस (Business Men) का (Wallet) उसे वापस मिल जाता हैं। और जो (Seller) वो अपना जहाज़ लेके जाने के लिए तैयार हो जाता हैं।

अब सेवक वापस मूर्ति बन के खड़ा हो जाता हैं। फिर शाम हो जाती हैं। अब भगवान वापस आ जाते हैं। सेवक को देख के बोलते हैं और कैसा रहा आज का दिन ?
सेवक- भगवान जी मैं आपको दिन के बारे में बताता हूँ।
आप खुश हो जाओगे मैंने इतना अच्छा काम किया।
पता है कितनी बड़ी न इंसाफी हो रही थीं मैंने रोक ली ?

सेवक उनको अपने पूरे दिन की बात बताता है। तीनों भक्तों की बात बताता हैं कैसे उसने ग़लत चीज़े को सही कर दिया।
भगवान जी उसकी पूरी बात सुन के कहते हैं तूने काम सुधारा नहीं तूने काम और बिगाड़ दिया।

तुझे बोला था तुझे कुछ नहीं बोलना तुझे था मूर्ति बन के खड़े रहना फिर तू क्यो बोला ?
अब सुन मेरी प्लांनिग जो तेरी सोच से भी परे थीं।

जो पहला- भक्त आया था ना (Business Men) उसकी सारी कमाई चोरी की हैं। अगर उसकी थोड़ी सी कमाई उस ग़रीब के पास चली जाती तो (Business Men) का कर्मा कम हो जाता।

और वो ग़रीब हमेशा लोगों की सेवा करता है।
जितने पैसे उसके पास बचते वो सेवा में लग देता था।
उस (Business Men) का पैसा एक सही जगह चला जाता उसके कर्मा कम हो जाते।

(And Most Important) वो जो (Seller) हैं।

वो जिस तरफ़ जा रहा है। उस समुन्द्र में एक बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है जिसमे वो बचेगा नहीं। अगर वो (Seller) जेल में होता तो मरने से बच जाता। उसके बच्चे अनाथ होने से बच जाते। उसकी पत्नी विधवा होने से बच जाती। और उस (Business Men) का कर्मा भी कम हो जाता।
और उस गरीब के घर में रोटी भी चली जाती।

ऐसा ही हमारी ज़िन्दगी में भी होता हैं हमारी ज़िन्दगी में भी प्रॉब्लम्स आती हैं। हम सोंचते हमारे साथ ही इतना बुरा क्यो हो रहा है। क्योंकि हमारी सोच से भी ऊपर उसकी प्लानिइंग हैं।

सो आज के बाद जब भी कोई मुश्किल आये कोई प्रोब्लेम्स आये तो उदास मत होना। इस कहानी को याद करना मुस्कुरानासमझ जाना ज़िन्दगी में जो होता हैं अच्छे के लिए होता है। जो होता है हमारे फ़ायदे के लिए होता हैं।
 

सम्बंधित टॉपिक्स

सदस्य ऑनलाइन

अभी कोई सदस्य ऑनलाइन नहीं हैं।

हाल के टॉपिक्स

फोरम के आँकड़े

टॉपिक्स
1,845
पोस्ट्स
1,886
सदस्य
242
नवीनतम सदस्य
Ashish jadhav
Back
Top