Rus ki Lokkatha: हँसिया, मुर्गा और बिल्ली

Rus ki Lokkatha का अंश:

जब वैसिली, निकोलाई और एलेग्जेंडर के पिता का निधन हुआ, तब जो कुछ भी उनके पास था वह अपने तीनों लड़कों को दे गये। हॉसिया वैसिली को, मुर्गा निकोलाई को और बिल्ली एलेग्जेंडर को।

हर बेटे ने अपनी धरोहर ली और काम की तलाश में घर से निकल पड़ा और हर एक ने पाया कि जो उपहार पिता ने उसे दिया था, उसी के द्वारा उसका भाग्य खुल गया।

तीनों भाई धन अर्जित कर के घर लाौटे और सदा प्रसन्‍नता से रहे। रूस की यह लोककथा बच्चों की बहुत प्रिय है।…।

Rus ki Lokkatha: हँसिया, मुर्गा और बिल्ली


रूस के एक गाँव में एक गरीब, वृद्ध आदमी रहता था, जिसके तीन बेटे थे: वैसिली, निकोलाई और ऐलिग्ज़ैन्डर।

उस गरीब आदमी के पास सिर्फ़ एक हँसिया, एक मुर्गा और एक बिल्ली थी।

मरने से पहले उसने हँसिया सबसे छोटे बेटे वैसिली को, मुर्गा मँझले बेटे निकोलाई को और बिल्ली सबसे बड़े बेटे ऐलिग्ज़ैन्डर को दे दी।

अपना हँसिया लेकर वैसिली काम की तलाश में घर से निकल पड़ा। कुछ समय बाद वह एक गाँव में पहुँचा जिसके चारों ओर तिपतिया घास के खेत थे। फसल काटने का समय था और गाँव वाले खेतों में इकट्ठे होकर हाथों से तिपतिया घास तोड़ कर जमा कर रहे थे।

जब लोगों ने एक अजनबी को देखा जिसने एक लंबा डंडा, जिसके एक सिरे पर एक अनोखा ब्लेड था, पकड़ रखा था, तो वह भयभीत हो गए. गाँव वालों ने पहले कभी हँसिया देखा न था।

“तुम ने अपने कंधे पर क्‍या उठा रखा है” ? लोगों ने पूछा।

“यह एक हँसिया है,” वैसिली ने उत्तर दिया।

“यह किस काम आता है?” उन्होंने पूछा।

“यह हँसिया आपकी तिपतिया घास काट सकता है,” वैसिली ने कहा।

कुछ ग्रामीण झटपट जागीरदार के पास भाग कर गए और उन्हें अजनबी और उसके हँसिये के विषय में बताया।

जागीरदार ने लोगों से कहा कि उस अजनबी को तुरंत उसके महल में लेकर आयें।

“हम चाहते हैं कि तुम्हारा हँसिया हमारी तिपतिया घास काटे,” जागीरदार ने कहा। ” बदले में जो कुछ तुम चाहोगे वह हम तुम्हें देंगे।”

” मुझे दो लोगों के लिए भोजन चाहिए, एक भोजन मेरे लिए और एक मेरे हँसिये के लिए, “वैसिली ने कहा,” ऐसा है कि जब मेरा हँसिया थक जाता है तो इसे भयँकर भूख लग जाती है।”

जागीरदार ने उसकी बात मान ली और वचन दिया कि काम खत्म होने पर वह सोने के सिक्‍कों से भरी एक थैली भी उसे देगा।

वैसिली ने भोजन की दोनों थालियाँ खा लीं और फिर सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक काम करता रहा और इसलिए सुबह होने तक अधिकतर तिपतिया घास कट चुकी थी। जागीरदार और अन्य ग्रामीण बहुत प्रसन्‍न हुए।

जागीरदार ने सोने के सिक्कों से भरी एक थैली वैसिली को दी और कहा, ” अगर तुम यह हँसिया मुझे दे दोगे तो मैं हीरों से भरी एक थैली तुम्हें दूँगा।”

वैसिली ने खुशी से अपना हँसिया दे कर हीरों से भरी थैली ले ली और घर की ओर चल पड़ा।

गाँव वालों ने हँसिये को उस खेत में रख दिया जहाँ से वैसिली ने घास की कटाई न की थी। हँसिये के लिए वह स्वादिष्ट रोटी, दूध और पनीर भी लाये।

सारा खाना हँसिये के पास रख कर वह सब अपना काम करने चले गए.

लेकिन जब गाँव वाले वापस आए तो उन्होंने देखा कि न तो हँसिये ने खाना खाया था और न ही तिपतिया घास काटी थी।

जागीरदार बहुत निराश हुआ। उसने लोगों को आदेश दिया कि हँसिये को उसकी कामचोरी की सज़ा दें और उसकी खूब पिटाई करें। लेकिन पिटाई के बाद भी हसिये ने काम नहीं किया।

फिर एक आदमी ने हँसिये को दो टुकड़ों में तोड़ने के लिए डंडे को पकड़ कर ज़ोर से घुमाया। लेकिन हँसिया टूटा नहीं।

परन्तु जैसे ही वह घास के बीच में से निकला उसने घास को काट डाला और इस तरह गाँव वालों ने हँसिये से तिपतिया घास काटना सीख लिया।

अब निकोलाई की घर से जाने की बारी थी। उसने अपने मुर्गे को अपनी बॉँह के नीचे दबाया और घर से चल पड़ा। बहुत दूर तक चलने के बाद वह एक घाटी में पहुँचा। घाटी ऊँचे पहाड़ों से घिरी हुई थी। बहुत सुबह का समय था पर घाटी में अभी भी अँधेरा था। Hindi Panchatantra Tale: चूहा जिसने लोहा खाया को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

उसने आश्चर्य से देखा कि कई लोग एक विशाल अलाव के इर्दगिर्द जमा थे। वह लोग उन आदमियों को देख रहे थे, जो ऊँचे पहाड़ की चोटी पर चढ़ रहे थे।

जैसे ही निकोलाई अलाव के निकट आया उसके मुर्गे ने अचानक ज़ोर से बाँग दी, “कुक्ड़ू कूँ!”

“यह कैसा शोर है?” लोगों ने पूछा।

निकोलाई ने देखा कि उसी पल सूर्य पहाड़ के ऊपर आ रहा था। ” मेरा मुर्गा आपके लिए सूर्य को पहाड़ के ऊपर बुला रहा है,

“हमारा कितना सौभाग्य है कि तुम यहाँ आए,” हर कोई चिल्लाया। ”

सूर्य को बुलाने के लिए हर दिन हमारे आदमियों को ऊँचे पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है। अगर वह ऐसा नहीं करें तो यहाँ सदा रात ही होगी और तुम्हारा अनोखा पक्षी सिर्फ बाँग देकर सूर्य को बुला सकता है।”

गाँव के लोग निकोलाई और उसके मुर्गे को राजकुमार के पास ले गए. राजकुमार ने आदेश दिया कि मुर्गे को खाने के लिए मक्का दी जाये और उसके रहने के लिए एक शानदार दरबा बनाया जाये।

तब से मुर्गा आधी रात से भोर तक बाँग देता था और हर दिन सूर्य पहाड़ों के ऊपर आ जाता था और लोगों को प्रकाश और गर्मी देता था।

राजकुमार ने निकोलाई को बहुत सारे बहुमूल्य उपहार दिये और वह धनी व्यक्ति बन कर घर लौट आया।

अब ऐलिग्ज़ैन्डर की घर से बाहर संसार में जाने की बारी थी। उसने अपनी बिल्ली उठाई, अपने भाइयों को अलविदा कहा और घर से चल पड़ा।

कई दिन चलने के बाद वह एक नगर में पहुँचा, जहाँ चर्चों के शानदार गुंबद सूर्य के प्रकाश में चमक रहे थे।

लेकिन उस नगर में चूहों की भरमार थी जो अन्न-भंडारों में रखा सारा अन्न खा गये थे और लोग भूख से तड़प रहे थे।

जब लोगों ने एक अजनबी और उसकी बिल्ली को देखा तो उन्होंने उससे पूछा, “यह कैसा जानवर है?”

“यह एक बिल्ली है और यह चूहों को पकड़ सकती है,” ऐलिग्ज़ैन्डर ने उत्तर दिया।

“हमारा कैसा सौभाग्य है कि तुम यहॉ आए हो,” लोगों ने चिल्ला कर कहा।

लोग ऐलिग्ज़ैन्डर को सम्राट के महल में ले गये।

सम्राट ने बिल्ली की ओर संदेह से देखा। उन्हें विश्वास न हुआ कि यह अनोखा पशु उनके राज्य को चूहों के आतंक से बचा सकता था।

अचानक बिल्ली ने ‘म्याऊ’ कहा और कूद कर सम्राट के सिंहासन के नीचे चली गई. अगले ही पल, मुँह में एक चूहा पकड़े हुए वह बाहर आई.

सम्राट ने दोनों हाथों से ताली बजाई. ” अगर तुम अपनी बिल्ली हमें दे दोगे तो हम तुम्हें यह हीरे की अँगूठी और बहुमूल्य रत्नों से भरा एक पिटारा देंगे।”

ऐलिग्ज़ैन्डर ने सम्राट का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

बिल्ली ने उस राज्य से चूहों को भगा दिया और ऐलिग्ज़ैन्डर अपना धन लेकर घर लौट आया और फिर तीनों भाई प्रसन्‍नता से रहे।

उन्होंने विवाह किया और उनके कई बच्चे हुए और उन्हें कभी पता ही न लगा कि भूख क्‍या होती है।
 

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