संस्कृत भाषा – शुद्ध और परिष्कृत भाषा को संस्कृतभाषा कहते हैं। संस्कृत ही समस्त भाषाओं की जननी है। संस्कृतभाषा को देववाणी भी कहते हैं।
भाषा – भाषा वह साधन अथवा माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने भावों या विचारों को प्रकट करते हैं तथा दूसरों के भावों एवं विचारों को समझ सकते हैं।
संस्कृत भाषा और व्याकरण : Sanskrit Language and Grammar
भाषा के भेद-भाषा के तीन भेद होते हैं
1. लिखित
2. मौखिक
3. सांकेतिक।
1. लिखित भाषा – जिसके माध्यम से लिखकर भाव प्रकट किया जाए, उसे लिखित भाषा कहते हैं।
2. मौखिक भाषा – दो या दो से अधिक व्यक्ति जब समीप रहते हैं, तथा अपने भावों या विचारों को बोलकर प्रकट करते हैं, उसे मौखिकभाषा कहते हैं।
3.सांकेतिकभाषा – इस भाषा को संकेत के माध्यम से ही समझा जा सकता है। मूक व्यक्ति इसी भाषा के माध्यम से अपने
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विचारों को व्यक्त करते हैं।
व्याकरण – व्याकरण वह है, जिससे शुद्ध पढ़ना-लिखना सीखा जाता है। व्याकरण शब्द-वि + आ + कृ + शतृ + अन्–शब्दों से मिलकर बना है। व्याकरण को वेद का मुख कहा जाता है।वर्ण – भाषा की सबसे सूक्ष्म इकाई जिसका विभाजन नहीं हो सकता है, वर्ण कहते हैं।
लिपि – मौखिक भाषा को लिखित रूप देने के लिए निश्चित किए गए चिह्नों को लिपि कहते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है। संस्कृतभाषा की लिपि देवनागरी है।
वर्ण के भेद –
वर्ण दो प्रकार के होते हैं-
(क) स्वर
(ख) व्यञ्जन।
(क) स्वरवर्ण – जिस वर्ण के उच्चारण में किसी व्यञ्जन वर्ण की सहायता न लेनी पड़े उसे स्वर वर्ण कहते हैं। जैसे अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ ए, ऐ, ओ, औ।
स्वरवर्ण के भेद-
स्वर वर्ण के तीन भेद होते हैं-
1. हस्व,
2. दीर्घ,
3. मिश्रित।
1. ह्रस्वस्वर- जिस वर्ण का उच्चारण करने में कम से कम समय लगे, उसे हस्व स्वर कहा जाता है। इनकी संख्या चार है-अ, इ, उ ऋ तथा लृ ।
2. दीर्घस्वर- जिस वर्ण का उच्चारण करने में हस्व की अपेक्षा दोगुना समय लगता है, उसे दीर्घ स्वर कहते हैं। दीर्घ स्वर-आ, ई, ऊ तथा ऋ हैं।
3. मिश्रितस्वर- अ+ इ = ए, अ + उ = ओ, अ + ए = ऐ, अ + ओ = औ ये मिश्रित स्वर हैं।
विशेष- संस्कृत व्याकरण में मिश्रित स्वरों को भी स्वरों के अन्तर्गत ही रखा जाता है। और प्लुत स्वरों को स्वरों के भेदों के अन्तर्गत स्वीकार किया जाता है।
प्लुत स्वर- जिस वर्ण का उच्चारण करने में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। जैसे ओ३म्।
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(ख) व्यञ्जन वर्ण- वह वर्ण जो बिना स्वर-वर्ण की सहायता से नहीं बोला जा सकता, उसे व्यञ्जन वर्ण कहते हैं। जैसे-राम = र् = + आ + म् + अ।
व्यंजन वर्णों को तीन भागों में विभक्त किया गया है
(1) स्पर्श व्यञ्जन, (2) अन्तःस्थ व्यञ्जन, (3) ऊष्म व्यञ्जन।
स्पर्श व्यञ्जन- स्पर्श व्यञ्जन उन्हें कहते हैं जिनके उच्चारण में स्वर तन्त्रियाँ आपस में स्पर्श करती हैं।
अन्तःस्थ व्यञ्जन- जिन व्यञ्जनों के उच्चारण में जीभ. मुख के विविध स्थानों का स्पर्श तो अवश्य करती है, परन्तु वह स्पर्श आंशिक होता है। इस प्रकार के व्यञ्जनों को अन्तःस्थ व्यञ्जन कहा जाता है।
ऊष्म व्यञ्जन- जिन व्यञ्जनों के उच्चारण में मुख से निकलने वाली वायु अत्यधिक घर्षण के कारण ऊष्म अर्थात् गर्म हो जाती है, उनको ऊष्म व्यञ्जन कहा जाता है-श्, ष्, स्, ह् ये चार ऊष्म व्यञ्जन हैं।