हेलो दोस्तों, हमारे ब्लॉक में आपका स्वागत है, आज हम वर्ण विचार की परिभाषा । Varn Vichar ki Paribhasha, वर्णमाला किसे कहते हैं, स्वर किसे कहते हैं, स्वर के भेद, व्यंजन किसे कहते हैं, व्यंजन के भेद, आदि के बारे में जानेंगे। तो चलिए शुरू करते है।
कोई भी भाषा वाक्यों से मिलकर बनती है और वाक्य शब्दों से तथा शब्द वर्णों से अर्थात् भाषा को वाक्यों में वाक्य को शब्दों में तथा शब्द को वर्णों में विभाजित किया जा सकता है ।
जैसे –
शेर जंगल का राजा होता है। – (यह एक वाक्य है।)
शेर, जंगल, का, राजा, होता, है। – (ये सभी शब्द हैं।)
‘श्+ ए + र् + अ’ – (ये सभी वर्ण हैं।)
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट होता है कि भाषा वाक्यों से, वाक्य शब्दों से और शब्द वर्णों से मिलकर बनते हैं। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। इनका और सार्थक विभाजन नहीं किया जा सकता है।
भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण कहलाती है।
जिन वर्णों के उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं ली जाती है, उन्हें स्वर कहते हैं। इनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है तथा ये व्यंजन के उच्चारण में सहायक होते हैं। स्वरों के उच्चारण में हवा बिना किसी रुकावट के मुँह से निकलती है। हिन्दी भाषा में निम्नलिखित 11 स्वर हैं।
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
(क) ह्रस्व स्वर (ख) दीर्घ स्वर (ग) प्लुत स्वर।
(क) ह्रस्व स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में समय सबसे कम लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं–अ, इ, उ और ऋ। ‘ऋ’ का प्रयोग केवल संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है। हिन्दी में इसका उच्चारण ‘रि’ के रूप में होता है। इन स्वरों को मूल स्वर भी कहते हैं।
(ख) दीर्घ स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दो गुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये सात हैं—आ,ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। यहाँ स्वर का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया जाता है।
(ग) प्लुत स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर के उच्चारण से तीन गुना समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्लुत स्वर लिखते समय स्वर के बाद हिन्दी की गिनती का तोन का अंक लिख दिया जाता है। जैसे ओ३म्
अब हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।
अयोगवाह –
ग्यारह स्वरों और तैंतीस व्यंजनों के अतिरिक्त हिन्दी वर्णमाला में तीन वर्ण और भी हैं अ (अनुस्वार), अँ (चंद्रबिंदु या अनुनासिक) तथा अः (विसर्ग)। ये तीनों स्वरों के ठीक बाद लिखे जाते हैं। इन्हें चयोगवाह कहते हैं। ये न तो स्वर में और न ही व्यंजन में आते हैं।
स्वरों की मात्राएँ –
स्वर व्यंजनों के साथ लिखे जाने वाले स्वरों के लिए जो चिह्न निश्चित किए गए हैं, उन्हें मात्रा चिह्न कहते हैं। ‘अ’ स्वर के अतिरिक्त अन्य स्वरों के साथ जब व्यंजनों का मेल होता है तो स्वर अपने पूर्ण रूप में नहीं लिखे जाते हैं, बल्कि उनके स्थान पर मात्राएँ लगाई जाती हैं।
विशेष –
अ की अलग से कोई मात्रो नहीं होती। सभी व्यंजन ‘अ’ सहित लिखे जाते हैं जो इस प्रकार बन जाते हैं क, ख, ग, घ, च, छ आदि। ‘अ’-रहित व्यंजन में हलंत चिह्न लगा होता है। जैसे क्।
जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। इनका उच्चारण करते समय हवा रुककर मुख से बाहर आती है। ये स्वंतत्र ध्वनियाँ नहीं हैं। हिन्दी वर्णमाला में कुल 35 व्यंजन हैं।
(क) स्पर्श व्यंजन (ख) अंत:स्थ व्यंजन (ग) ऊष्म व्यंजन
(क) स्पर्श व्यंजन –
जिन वर्णों को बोलते समय जिह्वा मुख के किसी भाग को नहीं छूती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। ‘क्’ से ‘म्’ तक के पच्चीस व्यंजन स्पर्श कहलाते हैं। इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है। प्रत्येक वर्ग के पाँच-पाँच वर्ण होते हैं।
(ख) अंत:स्थ –
अंत:स्थ व्यंजन चार हैं—य्, र्, ल् तथा व्। वे व्यंजन स्वरों के बीच में स्थित होते हैं।
(ग) ऊष्म व्यंजन –
ऊष्म व्यंजन भी चार हैं— श्, स्, ष् और ह्। इनके उच्चारण में हवा के रगड़ खाने से मुख में एक प्रकार की गर्मी पैदा होती है, इसलिए इन्हें ऊष्म व्यंजन कहा जाता है।
संयुक्त व्यंजन –
दो भिन्न व्यंजनों के परस्पर मेल को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। ये मुख्य रूप से चार हैं- श्र, क्ष,त्र, ज्ञ।
श् + र = श्र, क् + ष = क्ष्,, त् + र = त्र, ज् + ञ् =ज्ञ।
विशेष –
इन व्यंजनों के अतिरिक्त हिन्दी में दो व्यंजनों ‘ड़’ तथा ‘ढ़’ का भी प्रयोग किया जाता है। जैसे चढ़ना, बिगड़ना, पकड़ना आदि।
हिन्दी में कुछ लोगों ने अरबी, फारसी तथा विदेशी प्रभाव से आए हुए शब्दों को मूल शब्दों के साथ बोलना शुरू कर दिया है जैसे क़, ख, ग, ज़, फ़ आदि ।
द्वित्व व्यंजन –
जब एक व्यंजन ध्वनि अपने समान किसी अन्य व्यंजन ध्वनि में संयुक्त होती है, तो इस प्रकार उत्पन्न व्यंजन को द्वित्व व्यंजन कहते हैं; जैसे च्च (कच्चा), क्क (पक्का), ज्ज (छज्जा), ब्ब (धब्बा), म्म (सम्मान) आदि।
उच्चारण के आधार पर व्यंजनों के भेद –
श्वास वायु की मात्रा के आधार पर किए गए उच्चारण के आधार पर व्यंजनों के दो भेद हैं।
(क) अल्पप्राण (Non-aspirated) (ख) महाप्राण (Aspirated)
(क) अल्पप्राण –
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय श्वास वायु की मात्रा कम और कमजोर होकर निकलती है, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहा जाता है; जैसे–क्, ग्, ङ, च्, ज्, ट्, ड्, ण्, त्, द्, न्, प्, ब्, म्, य्, र्, ल्, व्
(ख) महाप्राण –
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु अधिक मात्रा में और जोर से निकलती है, उन्हें महाप्राण कहते हैं; जैसे—ख्, घ्, छ्, ठ्, ढ्, थ्, ध्, फ्, भ्, श्, ष्, स्, ह्
वर्णों के उच्चारण स्थान –
शब्दों का उचित, ठीक एवं शुद्ध प्रयोग करना बहुत आवश्यक है। इसलिए वर्णों का शुद्ध उच्चारण करना अत्यंत आवश्यक है। वर्णों का उच्चारण करते समय फेफड़ों से निकलने वाली वायु और जिह्वा, मुख के भीतर स्थित कंठ से ओष्ठ तक के विभिन्न अंगों का स्पर्श करती है तथा कभी-कभी उनके साथ घर्षण भी करती है। जिस स्थान के साथ ऐसा होता है उसी भाग या स्थल विशेष को उस वर्ग का उच्चारण स्थान माना जाता है।
उच्चारण दोष –
हम जो कुछ भी बोलते हैं उसे उच्चारण कहते हैं। भाषा, सार्थक ध्वनियों का उच्चारण है। भाषा के अक्षरों को बोलना ही उच्चारण है। अतः भाषा में उच्चारण का बहुत महत्व है। यदि हम अशुद्ध बोलते हैं तो लिखने में भी अशुद्ध ही लिखेंगे। नीचे कुछ उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ (रंगीन शब्दों में) व उनके शुद्ध रूप दिए जा रहे हैं।
(क) कभी-कभी स्वरों से संबंधित अशुद्धियाँ उच्चारण करते समय हो जाती हैं।
जैसे –
(ख) कभी-कभी कुछ लोग स्वर-रहित व्यंजन का उच्चारण अर्थात आधे अक्षर का उच्चारण स्वरयुक्त व्यंजन के रूप में कर देते हैं।
जैसे –
(ग) कभी-कभी आधे अक्षरों से शुरू होने वाले शब्दों से पहले ‘इ’ या ‘आ’ जोड़कर उच्चारित किया जाता है जिससे उच्चारण अशुद्ध हो जाता है।
जैसे –
( घ ) कभी-कभी आधे ‘स’ या ‘प’ से शुरू होने वाले शब्दों में व्यर्थ ही कोई स्वर लगाकर उच्चारित किया जाता है जिससे उच्चारण अशुद्ध हो जाता है।
जैसे –
दोस्तों, आज हमने आपको वर्ण विचार की परिभाषा । Varn Vichar ki Paribhasha, वर्णमाला किसे कहते हैं, स्वर किसे कहते हैं, स्वर के भेद, व्यंजन किसे कहते हैं, व्यंजन के भेद, आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा। तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके बताया ताकि मुझे और अच्छे आर्टिकल लिखने का अवसर प्राप्त ह। धन्यवाद्।
वर्ण विचार की परिभाषा । Varn Vichar ki Paribhasha
वर्ण विचार । Varn Vichar ki Paribhashaकोई भी भाषा वाक्यों से मिलकर बनती है और वाक्य शब्दों से तथा शब्द वर्णों से अर्थात् भाषा को वाक्यों में वाक्य को शब्दों में तथा शब्द को वर्णों में विभाजित किया जा सकता है ।
जैसे –
शेर जंगल का राजा होता है। – (यह एक वाक्य है।)
शेर, जंगल, का, राजा, होता, है। – (ये सभी शब्द हैं।)
‘श्+ ए + र् + अ’ – (ये सभी वर्ण हैं।)
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट होता है कि भाषा वाक्यों से, वाक्य शब्दों से और शब्द वर्णों से मिलकर बनते हैं। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। इनका और सार्थक विभाजन नहीं किया जा सकता है।
भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण कहलाती है।
वर्णमाला किसे कहते हैं? । Varnmala kise kahate hain
वर्णों का एक निश्चित क्रम होता है। प्रत्येक भाषा में वर्णों की लिपि व चिह्न निश्चित होते हैं। इन्हीं वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी भाषा में कुल 44 वर्ण हैं, जिन्हें उच्चारण और प्रयोग के आधार पर दो वर्गों वर्गीकृत किया गया है – स्वर और व्यंजन।स्वर किसे कहते हैं? । Swar kise kahate hain
स्वर किसे कहते हैं? । Swar kise kahate hainजिन वर्णों के उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं ली जाती है, उन्हें स्वर कहते हैं। इनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है तथा ये व्यंजन के उच्चारण में सहायक होते हैं। स्वरों के उच्चारण में हवा बिना किसी रुकावट के मुँह से निकलती है। हिन्दी भाषा में निम्नलिखित 11 स्वर हैं।
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
स्वर के भेद । Swar ke bhed
स्वरों के निम्नलिखित तीन भेद हैं।(क) ह्रस्व स्वर (ख) दीर्घ स्वर (ग) प्लुत स्वर।
(क) ह्रस्व स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में समय सबसे कम लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं–अ, इ, उ और ऋ। ‘ऋ’ का प्रयोग केवल संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है। हिन्दी में इसका उच्चारण ‘रि’ के रूप में होता है। इन स्वरों को मूल स्वर भी कहते हैं।
(ख) दीर्घ स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दो गुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये सात हैं—आ,ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। यहाँ स्वर का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया जाता है।
(ग) प्लुत स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर के उच्चारण से तीन गुना समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्लुत स्वर लिखते समय स्वर के बाद हिन्दी की गिनती का तोन का अंक लिख दिया जाता है। जैसे ओ३म्
अब हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।
अयोगवाह –
ग्यारह स्वरों और तैंतीस व्यंजनों के अतिरिक्त हिन्दी वर्णमाला में तीन वर्ण और भी हैं अ (अनुस्वार), अँ (चंद्रबिंदु या अनुनासिक) तथा अः (विसर्ग)। ये तीनों स्वरों के ठीक बाद लिखे जाते हैं। इन्हें चयोगवाह कहते हैं। ये न तो स्वर में और न ही व्यंजन में आते हैं।
स्वरों की मात्राएँ –
स्वर व्यंजनों के साथ लिखे जाने वाले स्वरों के लिए जो चिह्न निश्चित किए गए हैं, उन्हें मात्रा चिह्न कहते हैं। ‘अ’ स्वर के अतिरिक्त अन्य स्वरों के साथ जब व्यंजनों का मेल होता है तो स्वर अपने पूर्ण रूप में नहीं लिखे जाते हैं, बल्कि उनके स्थान पर मात्राएँ लगाई जाती हैं।
विशेष –
अ की अलग से कोई मात्रो नहीं होती। सभी व्यंजन ‘अ’ सहित लिखे जाते हैं जो इस प्रकार बन जाते हैं क, ख, ग, घ, च, छ आदि। ‘अ’-रहित व्यंजन में हलंत चिह्न लगा होता है। जैसे क्।
व्यंजन किसे कहते हैं? । Vyanjan kise kahate hain
व्यंजन किसे कहते हैं? । Vyanjan kise kahate hainजिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। इनका उच्चारण करते समय हवा रुककर मुख से बाहर आती है। ये स्वंतत्र ध्वनियाँ नहीं हैं। हिन्दी वर्णमाला में कुल 35 व्यंजन हैं।
व्यंजन के भेद । Vyanjan ke bhed
वयंजनों को तीन भागों में बाँटा गया है। ये इस प्रकार हैं।(क) स्पर्श व्यंजन (ख) अंत:स्थ व्यंजन (ग) ऊष्म व्यंजन
(क) स्पर्श व्यंजन –
जिन वर्णों को बोलते समय जिह्वा मुख के किसी भाग को नहीं छूती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। ‘क्’ से ‘म्’ तक के पच्चीस व्यंजन स्पर्श कहलाते हैं। इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है। प्रत्येक वर्ग के पाँच-पाँच वर्ण होते हैं।
(ख) अंत:स्थ –
अंत:स्थ व्यंजन चार हैं—य्, र्, ल् तथा व्। वे व्यंजन स्वरों के बीच में स्थित होते हैं।
(ग) ऊष्म व्यंजन –
ऊष्म व्यंजन भी चार हैं— श्, स्, ष् और ह्। इनके उच्चारण में हवा के रगड़ खाने से मुख में एक प्रकार की गर्मी पैदा होती है, इसलिए इन्हें ऊष्म व्यंजन कहा जाता है।
संयुक्त व्यंजन –
दो भिन्न व्यंजनों के परस्पर मेल को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। ये मुख्य रूप से चार हैं- श्र, क्ष,त्र, ज्ञ।
श् + र = श्र, क् + ष = क्ष्,, त् + र = त्र, ज् + ञ् =ज्ञ।
विशेष –
इन व्यंजनों के अतिरिक्त हिन्दी में दो व्यंजनों ‘ड़’ तथा ‘ढ़’ का भी प्रयोग किया जाता है। जैसे चढ़ना, बिगड़ना, पकड़ना आदि।
हिन्दी में कुछ लोगों ने अरबी, फारसी तथा विदेशी प्रभाव से आए हुए शब्दों को मूल शब्दों के साथ बोलना शुरू कर दिया है जैसे क़, ख, ग, ज़, फ़ आदि ।
द्वित्व व्यंजन –
जब एक व्यंजन ध्वनि अपने समान किसी अन्य व्यंजन ध्वनि में संयुक्त होती है, तो इस प्रकार उत्पन्न व्यंजन को द्वित्व व्यंजन कहते हैं; जैसे च्च (कच्चा), क्क (पक्का), ज्ज (छज्जा), ब्ब (धब्बा), म्म (सम्मान) आदि।
उच्चारण के आधार पर व्यंजनों के भेद –
श्वास वायु की मात्रा के आधार पर किए गए उच्चारण के आधार पर व्यंजनों के दो भेद हैं।
(क) अल्पप्राण (Non-aspirated) (ख) महाप्राण (Aspirated)
(क) अल्पप्राण –
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय श्वास वायु की मात्रा कम और कमजोर होकर निकलती है, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहा जाता है; जैसे–क्, ग्, ङ, च्, ज्, ट्, ड्, ण्, त्, द्, न्, प्, ब्, म्, य्, र्, ल्, व्
(ख) महाप्राण –
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु अधिक मात्रा में और जोर से निकलती है, उन्हें महाप्राण कहते हैं; जैसे—ख्, घ्, छ्, ठ्, ढ्, थ्, ध्, फ्, भ्, श्, ष्, स्, ह्
वर्णों के उच्चारण स्थान –
शब्दों का उचित, ठीक एवं शुद्ध प्रयोग करना बहुत आवश्यक है। इसलिए वर्णों का शुद्ध उच्चारण करना अत्यंत आवश्यक है। वर्णों का उच्चारण करते समय फेफड़ों से निकलने वाली वायु और जिह्वा, मुख के भीतर स्थित कंठ से ओष्ठ तक के विभिन्न अंगों का स्पर्श करती है तथा कभी-कभी उनके साथ घर्षण भी करती है। जिस स्थान के साथ ऐसा होता है उसी भाग या स्थल विशेष को उस वर्ग का उच्चारण स्थान माना जाता है।
उच्चारण दोष –
हम जो कुछ भी बोलते हैं उसे उच्चारण कहते हैं। भाषा, सार्थक ध्वनियों का उच्चारण है। भाषा के अक्षरों को बोलना ही उच्चारण है। अतः भाषा में उच्चारण का बहुत महत्व है। यदि हम अशुद्ध बोलते हैं तो लिखने में भी अशुद्ध ही लिखेंगे। नीचे कुछ उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ (रंगीन शब्दों में) व उनके शुद्ध रूप दिए जा रहे हैं।
(क) कभी-कभी स्वरों से संबंधित अशुद्धियाँ उच्चारण करते समय हो जाती हैं।
जैसे –
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
---|---|
वह लौट गया। | लोट |
तुम अपने घर चलो जाओ। | चले |
आज दिन में गर्मि है। | गर्मी |
आटा शात किलो है। | सात |
(ख) कभी-कभी कुछ लोग स्वर-रहित व्यंजन का उच्चारण अर्थात आधे अक्षर का उच्चारण स्वरयुक्त व्यंजन के रूप में कर देते हैं।
जैसे –
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
---|---|
आज मंतर काम नहीं आया। | मंत्र |
तुम्हारा चाल-चल्न अच्छा नहीं है। | चलन |
तुमने गज्ब कर दिया। | गजब |
वह गल्त कह रहा था। | गलत |
(ग) कभी-कभी आधे अक्षरों से शुरू होने वाले शब्दों से पहले ‘इ’ या ‘आ’ जोड़कर उच्चारित किया जाता है जिससे उच्चारण अशुद्ध हो जाता है।
जैसे –
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
---|---|
आज इस्कूल नहीं जाना है। | स्कूल |
यह इस्टूल किसका है? | स्टूल |
बाबा का इस्थान कहाँ है? | स्थान |
( घ ) कभी-कभी आधे ‘स’ या ‘प’ से शुरू होने वाले शब्दों में व्यर्थ ही कोई स्वर लगाकर उच्चारित किया जाता है जिससे उच्चारण अशुद्ध हो जाता है।
जैसे –
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
---|---|
सुवाती आ रही है। | स्वाति |
मैं क्या कर सकता हूँ? | क्या |
गाय पयासी है। | प्यासी |
दोस्तों, आज हमने आपको वर्ण विचार की परिभाषा । Varn Vichar ki Paribhasha, वर्णमाला किसे कहते हैं, स्वर किसे कहते हैं, स्वर के भेद, व्यंजन किसे कहते हैं, व्यंजन के भेद, आदि के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा। तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके बताया ताकि मुझे और अच्छे आर्टिकल लिखने का अवसर प्राप्त ह। धन्यवाद्।
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