संस्कृत व्याकरण छन्द परिचय

संस्कृत व्याकरण छन्द परिचय


क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥


हिंदी अनुवाद:

क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है।

संस्कृत व्याकरण छन्द परिचय

(छन्दोऽलङ्कार-प्रकरणम्)​

छन्दःपरिचयः Sanskrit grammar verse introduction​

छन्द-पद्य लिखते समय वर्णों की एक निश्चित व्यवस्था रखनी पड़ती है। यह व्यवस्था छन्द या वृत्त कहलाती है।

वृत्त के भेद


प्राय: प्रत्येक पद्य के चार भाग होते हैं, जो पाद या चरण कहलाते हैं। जिस वृत्त के चारों चरणों में बराबर अक्षर हो, वे समवृत्त कहलाते हैं। जिसके प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण अक्षरों की दृष्टि से समान हों, वे अर्धसमवृत्त हैं। जिसके चारों चरणों में अक्षरों की संख्या समान न हो, वे विषमवृत्त कहे जाते हैं।

गुरु-लघु व्यवस्था

छन्द की व्यवस्था वर्णों पर आधारित रहती है-मुख्यत: स्वर वर्ण पर। ये वर्ण छन्द की दृष्टि से दो प्रकार के होते हैं-लघु एवं गुरु । सामान्यतः हस्व स्वर लघु होता है और दीर्घ स्वर गुरु किंतु कुछ परिस्थितियों में हस्व स्वर लघु न होकर गुरु माना जाता है।

छन्द में गुरु-लघु व्यवस्था का नियम इस प्रकार है अनुस्वारयुक्त, दीर्घ, विसर्गयुक्त तथा संयुक्त वर्ण के पूर्व वाले वर्ण गुरु होते हैं। शेष 1. सभी वर्ण लघु होते हैं। छन्द के किसी पाद का अंतिम वर्ण लघु होने पर भी आवश्यकतानुसार गुरु मान लिया जाता है

सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत्।

वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा।

गुरु एवं लघु के लिए अधोलिखित चिह्न प्रयुक्त होते हैं

लघु वर्ण अधोलिखित चार दशाओं में गुरु वर्ण मान लिया जाता है

1. अनुस्वार युक्त लघु वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे- अंशत: । यहाँ ‘अ’ लघु होते हुए भी अनुस्वार युक्त ‘अं’ होने के कारण गुरु हो गया है।

2.विसर्ग युक्त लघु वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे- अंशतः । यहाँ ‘त’ लघु होते हुए भी विसर्ग युक्त ‘त: ‘ होने के कारण गुरु हो गया है।

3.संयुक्त वर्ण के पूर्व वाला वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे- यहाँ ‘र’ लघु होते हुए भी संयोगपूर्व वाला होने के कारण ‘रक् गुरु हो गया है।

4. छन्द के पादान्त में लघु वर्ण भी गुरु हो जाता है; जैसे

त्वमेव माता च पिता त्वमेव।

I S I S S I I S I S S

यहाँ पादान्त में ‘व’ लघु होते हुए भी छन्द की आवश्यकतानुसार गुरू हो गया है।विच्छेद, विराम, यति आदि इसके अनेक नाम हैं।

इन गणों को सरलता से याद रखने के लिए नीचे दिया गया गणसूत्र याद कर लेना चाहिए

I S S S I S I I I S

य माता राज भान सलभगा

(क) वैदिक छन्द

वैदिक मन्त्रों में गेयता का समावेश करने के लिए जिन छन्दों का प्रयोग हुआ है; उनमें गायत्री, अनुष्टुप् और त्रिष्टुप् छन्द प्रमुख हैं।

1. गायत्री (आठ अक्षरों के तीन पादों वाला समवृत्त)

जिस छन्द में तीन चरण हों और प्रत्येक चरण में आठ अक्षर हों तथा जिनमें पाँचवाँ अक्षर लघु और छठा अक्षर गुरु हो, वह गायत्री छन्द कहलाता है अधोलिखित मन्त्र में गायत्री छन्द है_

पावका न: सरस्वती,

वाजेभिर्वाजिनीवती।

यज्ञं वष्टु धिया वसुः॥

2.अनुष्टुप् (आठ अक्षरों वाला समवृत्त)

जिस छन्द में चार चरण हों और प्रत्येक चरण में आठ अक्षर हों, जिनमें पाँचवाँ अक्षर लघु या छठा अक्षर गुरु हो, सातवाँ अक्षर जिसके पहले और तीसरे चरण में गुरु हो, किन्तु दूसरे र चौथे चरण में लघु हो, वह अनुष्टुप् छन्द कहलाता है।

सगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य॑ स्विद्धनम्॥

(ख) लौकिक छन्द

प्रस्तुत पुस्तक के अनेक पाठों में अनेक लौकिक छन्दों का संकलन है। अत: संकलित छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण प्रस्तुत है

1. अनुष्टुप् (आठ अक्षरों वाला समवृत्त)

संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण_

श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।

द्विचतुष्पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥

अनुष्टुप् छन्द के चारों चरणों का पाँचवाँ वर्ण लघु, छठा वर्ण गुरु तथा प्रथम एवं तृतीय चरण का सातवाँ वर्ण गुरु और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण का सातवाँ वर्ण लघु होता है।

उदाहरण

द्विचतुष्पादयोर्ह्स्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥

पतितैः पतमानैश्च, पादपस्थैश्च मारुतः ।

कुसुमैः पश्य सौमित्रे ! क्रीडन्निव समन्ततः ॥

2. इन्द्रवज्रा

(त त ज ग ग)

(ग्यारहवर्णों वाला समवृत्त)

संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण

स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।

जिस छन्द के प्रत्येक पाद में दो तगण, एक जगण और दो गुरु वर्ण क्रम से हों, वह इन्द्रवज्रा छन्द होता है ।

उदाहरणम्-

हंसो यथा राजतपञ्जरस्थः सिंहो यथा मन्दरकन्दरस्थः। वीरो यथा गर्वित कुञ्जरस्थः चेन्द्रोपि बभ्राज तथाम्बरस्थः ॥

3.उपेन्द्रवज्रा

(ज त ज ग ग)

(ग्यारहवर्णों का समवृत्त)

संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण

उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ।

जिस छन्द के प्रत्येक पाद में क्रमश: एक जगण, एक तगण, एक जगण और दो गुरु वर्ण हों, वह उपेन्द्रवज्रा छंद होता है।

उदाहरणम्- त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वेमव।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

4 उपजाति

(ग्यारह वर्णों का समवृत्त)

संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण

अनन्तरोदीरितलक्ष्मभाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः ।

इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु वदन्ति जातिष्िवदमेव नाम ॥

इसके प्रथम एवं तृतीय चरण उपेन्द्रवज्रा तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण इन्द्रवज्रा छन्द के अनुसार, होते है, अत: इसे उपजाति छन्द कहा जाता है।

उदाहरण

अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा

हिमालयो नाम नगाधिराज: ।

पूर्वापरौ तोयनिधि वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः।।

5. मालिनी

(न न म य य)

(पन्द्रह अक्षरों वाला समवृत्त)

संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण

ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः ।

जिसके प्रत्येक चरण में क्रमश: दो नगण, एक मगण तथा दो यगण, हों, वह छन्द ननी कहलाता है। इसमें पहली यति (विराम) आठवें वर्ण के बाद और दूसरी यति वें वर्ण के बाद होती है। लक्षण में भोगि’ शब्द का अर्थ – अष्ट ( 8) तथा ‘लोक’शब्द का अर्थ-सप्त (7) है।

उदाहरण

मम हि पितृ्भिरस्य प्रस्तुतो ज्ञातिभेदः

तदिह मयि तु दोषो वक्तृभिः पातनीयः।

अथ च मम स पुत्रः पाण्डवानां तु पश्चात् सति च कुलविरोधे नापराध्यन्ति बालाः॥

6. मन्दाक्रान्ता

(म भ न त त ग ग) (सत्रह अक्षरों वाला समवृत्त)

संस्कृत में लक्षण एवं उदाहरण

मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्

मगण, भगण, नगण, दो तगणों और दो गुरुओं से मन्दाक्रान्ता छन्द होता है। इसमें चौथे अक्षर के बाद पहली यति, दसवें अक्षर बाद दूसरी यति तथा सत्रहवें अक्षर के बाद तीसरी यति होती है। लक्षण में ‘अम्बुधि’ शब्द का अर्थ – चत्वारः

उदाहरण

‘पश्चात्पुच्छं वहति विपुलं तच्च धूनोत्यजस्रम्

दीर्घग्रीवः स भवति, खुरास्तस्य चत्वार एवं।

शष्पाण्यत्ति, प्रकिरति शकृत्-पिण्डकानाम्र-मात्रान्।

किं व्याख्यानैर्व्रजति स पुन(रमेयेहि याम।।
 

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