Bihar Ki Lok Katha: राजकुमार, चीटी और चूहे [बिहार की लोकथा]

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क समय प्रतापगढ़ राज्य में राजा महेन्द्र प्रताप का शासन था। वह एक बुद्धिमान राजा था और उसकी प्रजा उसे पसन्द करती थी। उसके एक बेटा था जिसका नाम था- प्रताप वर्मा । छोटी उम्र में ही राजकुमार प्रजा का प्रिय पात्र बन गया था, क्योंकि वह बहुत कोमल और उदार हृदय का था। पशु उसे प्रिय थे यद्यपि वह एक अच्छा धनुर्धर था, फिर भी वह कभी शिकार खेलने नहीं जाता था।

एक दिन दरबार में तीन आगन्तुक आये। उनके पास अद्भुत शक्तियाँ थीं। जब वे अपनी करामाती शक्तियों के बारे में बखान कर रहे थे, तब प्रताप वर्मा उन्हें सुनकर मुग्ध हो गया।

एक आगन्तुक धनुर्विद्या में निष्णात था। दूसरा वायु के बेग से दौड़ सकता था और तीसरा आगन्तुक, जिसे कोई न देख पाता, उसे देख सकता था। राजकुमार ने उन आगन्तुकों के साथ काफी समय बिताया। शीघ्र ही उसके मन में उन तीनों के साथ यात्रा करने की इच्छा हुई।

राजा पहले अपने बेटे को अपने राज्य के बाहर भेजने के पक्ष में नहीं था। लेकिन तीनों आगन्तुकों के इस आश्वासन पर कि वे राजकुमार की देखभाल करेंगे, राजा ने उनके साथ जाने की अनुमति दे दी। अगले दिन प्रताप वर्मा अपने तीनों मित्रों के साथ यात्रा पर चल पड़ा।

मार्ग में राजकुमार ने देखा कि एक चूहा पानी से भरे एक गड्ढे में से निकलने के लिए संघर्ष कर रहा है। जब भी गड्ढे की फिसलन भरी दीवार पर वह चलने का प्रयास करता, वह फिर गड्ढे में गिर पड़ता। राजकुमार को चूहे पर दया आ गई, इसीलिए उसने गड्ढे में एक तीर छोड़ दिया। चूहा तीर के सहारे. गड्ढे से बाहर आ गया।

चूहे ने राजकुमार का भला मुखड़ा देख कर कहा, “ओ भले राजकुमार! मेरी ज़िन्दगी बचाने के लिए शुक्रिया। मैं चूहा राजा हूँ, चूहों का राजा | आज से मेरे राज्य के सभी चूहे ज़रूरत पड़ने पर आप की सेवा में हाजिर हो जायेंगे। आपको केवल धरती पर लेटकर मेरा नाम पुकारना है । बस, फिर हम सब अपने बिलों से निकल कर आ जायेंगे।”

राजकुमार चूहा राजा पर मुस्कुराया और आगे बढ़ गया। जब चारों मित्र कुछ दूर आगे बढ़े ही थे कि प्रताप वर्मा ने कुछ चींटियों को एक पंक्ति में क्रमबद्ध होकर जाते देखा। अचानक, पास के एक घर से कोई बाहर आया और उन पर बिना ध्यान से देखे एक घड़ा पानी डाल गया। कुछ चींटियाँ उस कीचड़ में लथपथ हो डूब गई और कुछ पानी से बाहर आने के लिए निराश होकर संघर्ष करने लगीं।

प्रताप वर्मा रुक गया और पास के एक पौधे से कुछ पत्तियाँ तोड़कर उन्हें पानी पर बिखेर दीं। जीवित बची हुई चींटियाँ पत्तियों पर चढ़ गई जो हवा के झोंकों से दूर चली गई।

चींटियाँ इस प्रकार सूखी ज़मीन पर पहुंच गई। वे रुककर बोलीं, “है दयालु राजकुमार! हम हमेशा आप के शुक्रगुजार रहेंगे। जब भी आपको हमारी सेवा की ज़रूरत हो तो आपको केवल ताली बजाना है, हम तुरन्त आपके पास हाज़िर हो जायेंगे।”

अगले दिन राजुकमार प्रताप वर्मा तथा उसके साथी चन्द्रपुर नगर पहुंचे, जहाँ राजा चन्द्रसेन का राज्य था। रात में विश्राम के लिए स्थान की खोज करते समय उन्हें यह मालूम हुआ कि यहाँ का राजा बहुत दुष्ट और क्रूर है, जिसने उन अनेक राजकुमारों को बन्दी बना लिया है जो वहां की सुन्दर राजकुमारी चन्द्रमती से विवाह करने आये थे लेकिन राजा के कथनानुसार उसकी तीन शर्तें पूरी नहीं कर पाये थे।

उन राजकुमारों के पिता राजाओं ने राजा चन्द्रसेन से उन्हें छोड़ देने के लिए अनुनय विनय की, किन्तु चन्द्रसेन ने उनकी एक न सुनी। प्रताप वर्मा ने निश्चय किया कि वह कम से कम उन राजकुमारों को मुक्त करने का प्रयास करेगा, राजकुमारी के साथ विवाह के लिए वह उतना चिन्तित नहीं था।

अगले दिन सुबह राजकुमार प्रताप वर्मा राजा चन्द्रसेन से मिला और अपना परिचय देते हुए उसने राजा की शर्तो से अनजान बनने का नाटक करते हुए राजकुमारी चन्द्रमती का हाथ मांगा।

राजा ने राजकुमारी से विवाह की शर्तें बताई और मन ही मन इस बात पर हसा कि शीघ्र ही प्रतापवर्मा भी बन्दी राजकुमारों की टोली में शामिल हो जायेगा।

प्रताप वर्मा ने राजा से उन शर्तों के बारे में पूछा। “हिमालय पर्वत की घाटियों में सुन्दर पीले फूल खिलते हैं। राजकुमारी के बालों में लगाने के लिए कल भोर तक उन्हें लाना पहली शर्त है, क्योंकि सूर्य की पहली किरण पड़ते ही उसका रंग फीका पड़ जायेगा।” राजा ने समझाया।

यह असम्भव कार्य था। सुदूर हिमालय पर्वतों में जाकर फूलों की खोज करना, उन्हें तोड़ना और भोर तक वापस आना भला कौन कर सकता है? प्रताप वर्मा ने अपने मित्रों से सलाह माँगी। एक मित्र ने अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया कि वे फूल ठीक किस स्थान पर खिलते हैं और वायु के वेग से दौड़नेवाले मित्र ने कहा, ”

राजकुमार, मैं जाऊँगा और तुम्हारे लिए फूल ले आऊँगा!” अगले ही क्षण वह चल पड़ा और अन्य मित्रों के साथ राजकुमार उसके वापस आने की प्रतीक्षा करने लगा। आधी रात से पहले एक मित्र ने कहा, “हमारा दोस्त हिमालय में पहुँच गया है और फूलों को तोड़कर वापस चल पड़ा है।” जैसी कि उम्मीद थी, वह मित्र फूलों के साथ भोर से पहले वापस पहुँच गया और प्रताप वर्मा उन फूलों को लेकर राजा से मिलने के लिए महल की ओर चल पड़ा।

यद्यपि राजा चन्द्रसेन मुस्कुराया, फिर भी वह राजकुमार के इस साहसिक अभियान के पूरा कर लेने पर प्रसन्न नहीं था। लेकिन उसे यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि उसने इस असम्भव कार्य को कैसे पूरा कर लिया। फिर उसने दूसरी शर्त बताई। उसने नौकरों से बीजों की तीन बोरियाँ मंगवाई। फिर उन्हें महल के आंगन में बीजों को मिट्टी के साथ मिला देने के लिए कहा। “अब कल सुबह तक बीजों को मिट्टी से अलग कर दो। पूरे तीनों बोरियाँ भरनी चाहिये।” राजा ने राजकुमार कहा।

दूसरा कार्य कठिन होने के साथ साथ असम्भव था। राजकुमार प्रताप वर्मा ने क्षण भर तक सोचा। उसे उन चींटियों की याद आई जिन्हें उसने चन्द्रपुर आते हुए मार्ग में बचाया था। उसने तीन बार तालियाँ बजाई। कुछ ही क्षणों में वहाँ हजारों चीटियाँ प्रकट हो गई। राजकुमार उन्हें काम समझाकर सोने के लिए चला गया। सुबह जब महल में वापस आया तो उसे बीजों का ढेर देखकर बड़ी खुशी हुई।

शीघ्र ही राजा आ गया। उसने नौकरों को तीनों बोरियाँ भरने के लिए कहा। जैसे ही आखिरी बीज डाला गया, तीनों बोरियाँ भर गई। राजा को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। राजा को इस बार भी यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि उसने कैसे यह सब कर दिया।

“राजकुमार प्रतापवर्मा, तुम काफी चतुर जान पड़ते हो, लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि तुम तीसरा कठिन कार्य पूरा नहीं कर पाओगे। महल के फाटक पर एक विशाल वृक्ष है जो सड़ रहा है। कल सुबह तक इसे महीन चूर्ण बनाना है। लेकिन याद रहे, पेड़ को काटना मना है।” राजा ने तीसरी शर्त समझाते हुए कहा।

राजकुमार ने फाटक पर जाकर सड़े हुए वृक्ष को देखा। वह जमीन पर लेट गया और बोला, “चूहा राजा, कृपया आकर मेरी सहायता कीजिये।” पलक झपकते ही, सैकड़ों चूहे वहाँ पर प्रकट हो गये और पेड़ को कुतरने लगे अगली सुबह तक पेड़ का नामोनिशान तक न था। उसकी जगह पर था महीन चूर्ण का ढेर।

राजकुमार को समय पर काम पूरा होते देख बड़ी खुशी हुई। उसने महल में जाकर राजा को सूचना दी। राजा ने फाटक पर आकर द्वारपालों से राजकुमार के काम की सफाई के बारे में पूछताछ की। द्वारपालों के विश्वास दिलाने पर वह सन्तुष्ट हो गया।

“राजकुमार प्रताप वर्मा, तुमने तीनों कठिन कार्य निष्पादित कर दिये हैं, इसलिए, अब मैं अपना वचन पूरा कर देता हूँ। कल मेरी बेटी से विवाह के लिए तैयार हो जाओ।” राजा ने कहा।

राजकुमार ने इस बात पर बल दिया कि बन्दी राजकुमारों को तुरन्त मुक्त कर दिया जाये। राजा चन्द्रसेन को राजकुमार से ऐसी मांग की उम्मीद नहीं थी। इसीलिए वह उससे नाराज हो गया।

फिर भी, चन्द्रमती और प्रताप वर्मा का विवाह बड़े धूमधाम से हुआ। राजकुमार अपने मित्रों के साथ तुरन्त प्रतापगढ़ के लिए रवाना हो गया। उन सबको घोड़े दिये गये। अपने दोस्तों के आगे आगे राजकुमारी चन्द्रमती के साथ राजकुमार प्रताप वर्मा चल रहा था।

दुष्ट राजा चन्द्रसेन ने इस बीच अपने कुछ सैनिकों को आदेश दिया कि वे राजकुमार प्रतापवर्मा और उसके साथियों पर आक्रमण कर उन्हें बन्दी बना लें और राजकुमारी को वापस ले आयें, क्योंकि राजकुमार उससे अधिक चतुर साबित हुआ। बन्दी राजकुमारों को मुक्त कर देने को प्रताप वर्मा को अपनी मौन सहमति देने के कारण वह उससे चिढ़ गया था।

जैसे ही प्रताप वर्मा को राजा की दुष्टता भरी चाल का पता चला, उसने और उसके धनुर्धारी मित्र ने उन सैनिकों का बहादुरी से सामना किया और उन्हें तितर-बितर कर दिया। कुछ सैनिक मारे गये और कुछ नौ-दो ग्यारह हो गये। इसके बाद राजकुमार यात्रा पूरी कर प्रतापगढ़ पहुँचा, जहाँ अपने बेटे और अति सुन्दर बहू से मिलकर उनके माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।
 

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