संस्कृत व्याकरण लिंग, वचन एवं पुरुष का ज्ञान

संस्कृत व्याकरण लिंग, वचन एवं पुरुष का ज्ञान


संस्कृत व्याकरण लिंग, वचन एवं पुरुष का ज्ञान​

लिंग या सर्वनामशब्द विकारी होते हैं। इन शब्दों में तीन कारणों से विकार उत्पन्न होता है।

(1) लिंग (2) वचन (3) कारक।

इसलिए सर्वप्रथम लिंग के विषय में विचार किया जा रहा है-

लिंग-लिंग शब्द का शाब्दिक अर्थ है-‘चिह्न’। अतः जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की स्त्री या पुरुषजाति का बोध होता है, उसे लिंग कहा जाता है। जैसे-बालक:, चटका (चिड़िया), फलम्।

लिंगभेद-संस्कृत में लिंग तीन प्रकार के होते हैं

पुल्लिंग-वे शब्द जिनमें पुरुष जाति का बोध हो, पुँल्लिंग कहे जाते हैं। जैसे-बालकः, गज: मयूर:, अश्व:, काक: आदि।

पुल्लिंग की पहचान (1) ‘अन्’ प्रत्यय वाले शब्द पुल्लिंग होते हैं। जैसे आत्मन्, मातृन्, राजन् आदि।

(2) ‘घञ्’ प्रत्यय वाले शब्द पुँल्लिंग होते हैं। जैसे अनुतापः, प्रणाम:, विहारः, शोक: आदि।

(3) ‘असुर’ एवं ‘देव’ के पर्यायवाची पुंल्लिंग होते हैं। जैसे-सुरः, देवः, अमर:, रामः, दानवः, बालिः, रावणः, विष्णु: आदि।

(4) ‘इमनिच्’ प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिंग होते हैं। जैसे-लघिमा, गरिमा, महिमा आदि।

(5) ‘अहन्’ तथा ‘दिन’ (नपुंसक) को छोड़कर समयवाचक शब्द पुल्लिंग होते हैं। जैसे-समय:, काल:, दिवसः,

(6) निम्न शब्दों के पर्यायवाची शब्द पुँल्लिंग होते हैं

असिः – खड्ग, खड्ग, करवाल:।

अरिः – शत्रुः, रिपुः।

ओष्ठः – अधरः, रदनच्छदः।।

कण्ठः – गल:।

केश: – कचः, मूर्धजः, शिरोरुहः।

करः – हस्तः, पाणिः ।

कपिः – मर्कट:, कीश:, वानरः।

खगः – विहङ्गः, पक्षी, द्विजः, शकुनिः,अण्डज:।

मृगः – कुरङ्गः, वातायुः, हरिणः

पर्वतः – अद्रिः, गिरिः, शैल:।

भुजः – बाहुः।

यज्ञः – क्रतुः, मखः ।

स्त्रीलिंग-जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे-शिक्षिका, बालिका, अजा आदि।

नियम-स्त्रीलिंग ज्ञात करने के कुछ नियम इस प्रकार हैं (1) आ, ई (‘इन्’ प्रत्ययवाले पापी जैसे शब्दों को छोड़कर) तथा ऊ आदि से समाप्त होनेवाले शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे कन्या, अजा, विद्या, लता, रमा, माला, लक्ष्मी, नदी, गौरी, देवी, तरी: (नाव), वधूः, तनूः आदि।

(2) तिथिवाचक शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, पूर्णिमा आदि।

(3) ‘स्त्री’ शब्द के पर्यायवाची शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। अबला, कान्ता, नारी, महिला, ललना, वनिता, वामा आदि।

(4) विंशति से लेकर नवति: तक संख्यावाचक शब्द स्त्रीलिंग जैसे होते हैं। जैसे-विंशति: त्रिंशत्, चत्वारिंशत्, पञ्चाशत्, सप्तति:, नवतिः आदि।

(5) ‘क्तिन्’ (इ) प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे गति, मति, शान्ति आदि।

नपुंसकलिङ्ग-जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों से न तो पुरुष जाति का बोध होता है और न ही स्त्री जाति का बोध होता है, वे नपुंसकलिंग शब्द कहलाते हैं। जैसे-फलम्, पत्रम्, पुस्तकम्। नियम-नपुंसकलिङ्ग ज्ञात करने के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं- 1. फूलों के नाम नपुंसकलिंग में होते हैं। जैसे-पुष्पम्, कमलम्।

2. फलों के नाम भी नपुंसकलिंग में आते हैं। जैसे आम्रम्, (आम) दाडिमम्, (अनार), कदलीफलम् (केला)।

3. यदि संख्यावाचक शब्द के अन्त में रात्र शब्द हो तो नपुंसकलिङ्ग होता है।जैसे-द्विरात्रम्, पञ्चरात्रम् आदि।

4. क्रिया विशेषण शब्द नपुंसकलिङ्ग में होते हैं। जैसे अश्वः शीघ्रं धावति। कच्छपः तीव्रं वदति। रमा मधुरं

5. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थक शब्द नपुंसकलिङ्ग होते हैं। जैसे अमङ्गलम् अभद्रम्, अशुभम्।

जलम् – उदकम्, पयः, पानीयम्, वारि आदि।

नभः – खम्, गगनम्, व्योम।

नयनम् – अक्षि, चक्षुः, नेत्रम्, लोचनम् आदि। दलम्-पर्णम्, पत्रम्।

भद्रम्-कल्याणम्, मङ्गलम्, शुभम्। सुवर्णम् काञ्चनम्, हेमम्।

6. शतम्, सहस्रम्, लक्षम्, नीलम्, पद्म, शंखम् आदि शब्द नपुंसकलिङ्ग होते हैं।

7. ‘त्र’ से समाप्त होनेवाले शब्द नपुंसकलिङ्ग होते हैं। जैसे चरित्रम्, छत्रम्, पत्रम् आदि।

वचन​

परिभाषा-संज्ञा, सर्वनाम एवं क्रिया आदि शब्दों के जिस रूप से एक या एक से अधिक संख्या का बोध होता है, उसे ‘वचन’ कहते हैं।

वचन के भेद-प्राय: सभी भाषाओं में दो वचन होते हैं,

परन्तु संस्कृतभाषा में तीन वचन होते हैं। (1) एकवचन, (2) द्विवचन, (3) बहुवचन।

1. एकवचन-यदि संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण या क्रियाशब्द एक संख्या का बोध कराता है, तो वह एकवचन कहलाता है जैसे-बालकः पठति। बालिका धावति । ।

2. द्विवचन-संज्ञा आदि शब्द जब दो संख्या का बोध कराता है, तो द्विवचन होता है। जैसे–तौ छात्रौ गच्छत:। ते बालिके पठतः।

3. बहुवचन-संज्ञा के जिस रूप से दो से अधिक संख्या का बोध कराता है, तब बहुवचन होता है। जैसे-छात्रा: पठन्ति। ता: कन्याः सन्ति।

संस्कृत में वचनों के प्रयोग के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें ध्यान रखनी चाहिए​

एकवचन शब्द के प्रयोग नियम

1. जाति के अर्थ में एकवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे-बाल: चपल: भवति। 2. एकोनविंशति: से लेकर शतम् तक के शब्द विशेषण के रूप एकवचन में आते हैं। 3. द्वयम्, युगलम्, द्वितीयम् आदि शब्द दो का तथा, त्रयम्, त्रिकम् आदि शब्द तीन का बोध कराने पर भी एकवचन में ही आते हैं। जैसे-कद्धयम्, पुस्तकयुगलम्, मुनित्रयम् आदि।

द्विवचन शब्दों के प्रयोग के नियम-नेत्र, हस्त, पाट श्रोत्र आदि के वाचक शब्द द्विवचन में प्रयोग किए जाते हैं। जैसे-वयम् नेत्राभ्याम् पश्यामः। अहम् कर्णाभ्याम् आकर्णयामि। स: हस्ताभ्यां कार्य करोति।

बहुवचन के प्रयोग के नियम

1. दारा, लाज, प्राण, अक्षत्, असु आदि शब्द हमेशा पुल्लिंग बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं। जैसे-दशरथ: प्राणान् तत्याज। (दशरथ ने प्राण त्याग दिए।) अस्मिन् पात्रे अक्षताः सन्ति। (इस पात्र में चावल हैं।)

2. समा (वर्षा), अप (जल), वर्षा आदि शब्द स्त्रीलिंग बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं। जैसे वर्षासु मेघाः गर्जन्ति। (वर्षा में मेघ गजरते हैं।) 3. कति (कितने), तति (उतने), यति (जितने ) आदि शब्द बहुवचन में आते हैं। जैसे भवत: विद्यालये कति छात्राः सन्ति ?

4. प्रदेशों के नाम प्राय: बहुवचन में प्रयोग किए जाते हैं। जैसे अस्ति काश्मीरेषु विजयाख्यम् क्षेत्रम् ।

पुरुष

परिभाषा-जो शब्द कहनेवाले, सुननेवाले या जिसके बारे में कुछ कहा जाए उसके लिए आते हैं, वे पुरुषवाचक शब्द कहलाते हैं। जैसे

“मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि वह नहीं आएगा।” इस वाक्य में मैंने’, ‘तुमसे’ तथा ‘वह शब्दक्रमशः उत्तम, मध्यम तथा प्रथम पुरुषवाचक शब्द हैं।

पुरुष के भेद-संस्कृत में पुरुष तीन प्रकार के होते हैं (1) प्रथमपुरुष, (2) मध्यमपुरुष, (3) उत्तमपुरुष।

प्रथम पुरुष-जब हम किसी अन्य के बारे में बातचीत करते हैं तो जिसके विषय में बात कही जाती है वह प्रथम पुरुष होता है। प्रथम पुरुष को ही अन्य पुरुष भी कहते हैं जैसे-स- (वह), तौ (वे दोनों), ते (वे सब), आदि तद् शब्द के रूप, भवान् (आप), भवन्तौ (आप दोनों), भवन्तः (आप सब) आदि भवान् शब्द के रूप तथा किसी का नाम आदि प्रथम पुरुष में आते हैं।

मध्यम पुरुष- –जिससे बात की जाती है या बात को सुननेवाला मध्यम पुरुष होता है। जैसे-त्वम् (तू), युवाम् (तुम दोनों), यूयम् (तुम सब) आदि युष्मद शब्द के रूप मध्यम पुरुष में आते हैं।

उत्तम पुरुष-जब हम किसी से बातचीत करते हैं तो, वहाँ जो बात करता है अर्थात् बात करनेवाला उत्तम पुरुष कहलाता हैं। जैसे-अहम् (मैं), आवाम् (हम दोनों), वयम् (हम सब) आदि अस्मद् शब्द के रूप उत्तम पुरुष में आते हैं। पुरुषवाचक शब्दों को इस तालिका द्वारा अच्छी तरह समझा जा सकता है।

मित्रों कैसी लगी आज की यह पोस्ट मुझे आशा है की आपको पोस्ट बहुत अच्छी और ज्ञानपुवक लगी होगी । ऐसी और संस्कृत भाषा से भरपूर पोस्ट देखने के लिए पोस्ट को शेयर करे और प्यारी सी टिप्पणी जरूर करे ।
 

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