डॉ० सम्पूर्णानन्द – जीवनी एवं योगदान

डॉ० सम्पूर्णानन्द हिंदी साहित्य के महान लेखकों में से एक गिने जाते थे| इनको हिंदी साहित्य के द्वारा कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है| इन्होंने हिंदी साहित्य को उच्च कोटि की रचनाएं दी है| इसके साथ साथ यह राजनीतिक क्षेत्रों में भी सक्रिय थे|

यह भारत के बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे हैं| इसके अलावा उन्होंने पत्रिका का संपादन कार्य भी किया था|

डॉ० सम्पूर्णानन्द – जीवनी एवं योगदान


डॉ० सम्पूर्णानन्द का जीवन परिचय​

प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, कुशल राजनीतिज्ञ एवं हिंदी साहित्य के महान एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डॉ० सम्पूर्णानन्द का जन्म 1 जनवरी, 1890 ई0 को उत्तर प्रदेश के पवित्र स्थान काशी में हुआ था| इनके पिता का नाम विजयानंद तथा माता का नाम आनंदी देवी था| इन्होंने क्वीन्स कालेज, वाराणसी से बी0एस-सी0 की परीक्षा पास करने के बाद ट्रेनिंग कालेज, इलाहाबाद से एल० टी० किया| इन्होंने एक अध्यापक के रूप में जीवन-क्षेत्र में प्रवेश किया और सबसे पहले प्रेम महाविद्यालय, वृन्दावन में अध्यापक हुए| कुछ दिनों बाद इनकी नियुक्ति डूंगर कालेज, बीकानेर में प्रिंसिपल के पद पर हुई| सन् 1921 में महात्मा गाँधी के राष्ट्रीय आन्दोलन से प्रेरित होकर काशी लौट आये और ‘ज्ञान मंडल’ में काम करने लगे| इन्हीं दिनों इन्होंने ‘मर्यादा’ (मासिक) और ‘टुडे’ (अंग्रेजी दैनिक) का सम्पादन का कार्य किया|


इन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रथम पंक्ति के सेनानी के रूप में कार्य किया था और सन् 1936 में प्रथम बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के सदस्य चुने गये| सन् 1937 में कांग्रेस मंत्रिमंडल गठित होने पर ये उत्तर प्रदेश के शिक्षामंत्री नियुक्त हुए| सन् 1955 में ये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने| सन् 1960 में इन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया| सन् 1962 में ये राजस्थान के राज्यपाल नियुक्त हुए| सन् 1967 में राज्यपाल पद से मुक्त होने पर ये काशी लौट आये और मृत्युपर्यन्त काशी विद्यापीठ के कुलपति बने रहे| 10 जनवरी, 1969 ई० को काशी में ही इस साहित्य-तपस्वी का निधन हो गया| इनका हिंदी साहित्य में विशेष स्थान था| हिंदी साहित्य को आज भी इनकी कमी महसूस होती है|

डॉ० सम्पूर्णानन्द का साहित्यिक परिचय​

डॉ० सम्पूर्णानन्द एक उद्भट विद्वान् थे| हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी तीनों भाषाओं पर इनका समान अधिकार था| ये उर्दू और फारसी के भी अच्छे ज्ञाता थे| विज्ञान, दर्शन और योग इनके प्रिय विषय थे| इन्होंने इतिहास, राजनीति और ज्योतिष का भी अच्छा अध्ययन किया था| राजनीतिक कार्यों में उलझे रहने पर भी इनका अध्ययन-क्रम बराबर बना रहा| सन् 1940 में ये अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए थे| हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इनकी ‘समाजवाद’ कृति पर इनको मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्रदान किया था| इनको सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति भी प्राप्त हुई थी| काशी नागरी प्रचारिणी सभा के भी ये अध्यक्ष और संरक्षक थे| उत्तर प्रदेश के शिक्षामंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में इन्होंने शिक्षा, कला और साहित्य की उन्नति के लिए अनेक उपयोगी कार्य किये| वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय इनकी ही देन है|

सम्पूर्णानन्द की प्रसिद्ध कृतियाँ निम्नलिखित हैं:​

समाजवाद, आर्यों का आदि देश, चिद्विलास, गणेश, जीवन और दर्शन, अन्तर्राष्ट्रीय विधान, पुरुषसूक्त, व्रात्यकाण्ड, पृथिवी से सप्तर्षि मण्डल, भारतीय सृष्टि क्रम विचार, हिन्दू देव परिवार का विकास, वेदार्थ प्रवेशिका, चीन की राज्यक्रान्ति, भाषा की शक्ति तथा अन्य निबंध, अन्तरिक्ष यात्रा, स्फुट विचार, ब्राह्मण सावधान, ज्योतिर्विनोद, अधूरी क्रान्ति, भारत के देशी राज्य आदि|

उपर्युक्त ग्रंथों के अतिरिक्त इन्होंने सम्राट् अशोक, सम्राट् हर्षवर्धन, महादजी सिंधिया, चेतसिंह आदि इतिहास प्रसिद्ध व्यक्तियों तथा महात्मा गाँधी, देशबन्धु चितरंजनदास जैसे आधुनिक महापुरुषों की जीवनियाँ तथा अनेक महत्त्वपूर्ण निबंध भी लिखे हैं|

इनकी शैली शुद्ध, परिष्कृत एवं साहित्यिक है| इन्होंने विषयों का विवेचन तर्कपूर्ण शैली में किया है| विषय प्रतिपादन की दृष्टि से इनकी शैली के तीन रूप (1) विचारात्मक, (2) व्याख्यात्मक तथा (3) ओजपूर्ण लक्षित होते हैं| -इस शैली के अन्तर्गत इनके स्वतंत्र एवं मौलिक विचारों की अभिव्यक्ति हुई है| भाषा विचारात्मक शैली-इ विषयानुकूल एवं प्रवाहपूर्ण है| वाक्यों का विधान लघु है, परन्तु प्रवाह तथा ओज सर्वत्र विद्यमान है|


व्याख्यात्मक शैली-दार्शनिक विषयों के प्रतिपादन के लिए इस शैली का प्रयोग किया गया है| भाषा सरल एवं संयत है| उदाहरणों के प्रयोग द्वारा विषय को अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है|
ओजपूर्ण शैली- इस शैली में इन्होंने मौलिक निबंध लिखे हैं| ओज की प्रधानता है| वाक्यों का गठन सुन्दर है| भाषा व्यावहारिक है|

इनकी भाषा सबल, सजीव, साहित्यिक, प्रौढ़ एवं प्राञ्जल है| संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है| गंभीर विषयों के विवेचन में भाषा विषयानुकूल गंभीर हो गयी है| कहावतों और मुहावरों का प्रयोग प्रायः नहीं किया गया है| शब्दों का चुनाव भावों और विचारों के अनुरूप किया गया है| भाषा में सर्वत्र प्रवाह, सौष्ठव और प्राञ्जलता विद्यमान है|

साहित्य में स्थान​

हिंदी साहित्य को महान एवं उच्च कोटि की रचनाएं दिया है| किसके साथ साथ यह राजनीति क्षेत्रों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते रहें| हिंदी साहित्य के महान लेखक थे| इन्होंने काशी संस्कृत विश्वविद्यालय के निर्माण में भी योगदान दिया है| अंता हिंदी साहित्य में इनका विशिष्ट स्थान था|

संक्षिप्त परिचय​

  • जन्म – 1 जनवरी, सन् 1890 ई०
  • मृत्यु – 10 जनवरी, सन् 1969 ई०
  • जन्म स्थान – काशी (उ० प्र०)
  • पिता – विजयानन्द
  • माता – आनंदी देवी
  • राज्य के शिक्षामंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल रहे
  • सम्पादन – ‘मर्यादा’, ‘टुडे’
  • पुरस्कार – मंगलाप्रसाद पारितोषिक
  • प्रमुख रचनाएं – गणेश, जीवन और दर्शन, हिंदू देव परिवार का विकास, ब्राह्मण सावधान, अंतर्राष्ट्रीय विधान, समाजवाद, आर्यों का आदि देश, अंतरिक्ष यात्रा, अधूरी क्रांति, आदि प्रमुख रचनाएं हिंदी साहित्य में प्रसिद्ध है|
  • मुख्यमंत्री – उत्तर प्रदेश 1954 – 1960 तक

FAQ​

1) सम्पूर्णानन्द का जन्म कब और कहां हुआ था?
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के काशी में 1 जनवरी सन 1890 में हुआ था| इनको हिंदी साहित्य द्वारा मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया है| इन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को ग्रहण किया था|

2) संपूर्णानंद के माता-पिता का क्या नाम था?
इनके पिता का नाम बिजयानंद तथा माता का नाम आनंदी देवी था|

3) संपूर्णानंद की मृत्यु कब हुई थी?
इनकी मृत्यु 10 जनवरी सन 1969 में हुई|

4) संपूर्णानंद की प्रमुख रचनाएं?
गणेश, जीवन और दर्शन, हिंदू देव परिवार का विकास, ब्राह्मण सावधान, अंतर्राष्ट्रीय विधान, समाजवाद, आर्यों का आदि देश, अंतरिक्ष यात्रा, अधूरी क्रांति, आदि इनकी प्रमुख रचनाएं हैं|
 
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