Woh Mujhe Khone Se Darta Hai | Mansi Soni | The Social House Poetry

Woh Mujhe Khone Se Darta Hai | Mansi Soni | The Social House Poetry


इस कविता के बारे में :

इस काव्य ‘वह मुझे खोने से डरता है’ को Social House के लेबल के तहत मानसी सोनी ने लिखा और प्रस्तुत किया है।

शायरी…

एक पता पूछना है मुझे हस्ते हस्ते बता दो, एहसा से लफ्ज़ उतार लिया है कागज़ पे मैंने, अरे भाई सुनो ज़रा सोशल हाउस का रास्ता बता दो


*****

खूबसूरत एहसास – जब कोई हमे

एहसास दिलाता है कि वो

हमे खोने से डरता है


***

अपने सौ ग़मों को परा रख बस मेरा


इक ग़म मिट जाये वो ऐसी दुआ करता हैं

उसका इश्क़ मेरी रूह को कुछ

***


इस कदर छुआ करता हैं

कभी ख्वाब में भी देख ले मुझे दूर

जाता खुद से तो मेरे माथे को


आकार चूम लिया करता हैं

***

मैं खुशनसीब हु वो मुझे खोने

से डरता हैं शिकायतें तो लाखो

रहती होंगी उसे भी मुझ से

अगर करे कोई जिक्र मेरा तो


तारीफों के पुल बांध दिया करता है

***

गवारा नहीं उसे कोई मुझे

गंदी नजर से देखे

कम जोर न पड़ जाऊँ मैं इसलिए

अक्सर वो अपना हाथ मेरे कंधे

पर रख दिया करता हैं


***

मेरी हर गलती की माफ़ी हैं उसके पास

लेकिन मुझे कभी गलत करार नहीं करता

बेऐतबारी लफ़्ज़ कोसों दूर रखता है

वरना कब का कह जाता कि

मैं तुझसे प्यार नहीं करता


***

मेरे ऐब मेरी खामियां अपनाने

की हिम्मत रखता हैं

Perfect की बात जहा आए उसे


***

अक्सर मेरा चेहरा दिखता हैं

देखने की तलब जब भी होती हैं उसे

बेवक़्त मुझे वीडियो call कर देता है


***

मैं खुशनसीब हु वो मुझे खोने से डरता हैं

वो सड़क पर चलते वक़्त जब मुझे

safe side पर करता हैं


***

कब तक उसकी पनाह मे रह पाऊँगी

सोचकर मेरा मन सा भारता हैं

यू तो इस कदर महफ़ूज़ रखने के वादे


***

तो उसने किए नहीं

फिर भी निभाए जा रहा है

खुद हजारो बोझ के तले दवा हो


***

लेकिन बतायेगा नहीं

लेकिन मुझे जिंदगी जिए जाने का

हौसला दिए जा रहा है


***

वो लड़ाई को सिर्फ लड़ाई समझ

कर मसला सुलझा कर

मुझे सीने से लगाता है यू वो मुझसे

दूर जाने के बहाने नहीं करता

मैं खुशनसीब हु वो मुझे खोने से डरता हैं


***

रो दू अगर मैं तो वो भी कमजोर

पड जाता है आसुओं की वजह तो

पता चले जनाब उससे क्या उसके

खानदान से लड़ जाता है


***

मेरे मुस्काने से उसकी सासों की

गिनती बड़ जाती हैं

कि इतनी अहम हू उसके लिए

वो यह बात मुझे बैठकर समझता है


***

मोहब्बत है तुमसे कभी खुल

के नहीं बोल पाता

मगर यकीन करो यह बोलने से

पहले मुझे यह एहसास कराता हैं


***

सारे जहां की खुशियां इकठ्ठी करके

उसके कदमों मे रख दु ऐसा

मेरा दिल भी करता है

मैं खुशनसीब हु वो मुझे खोने से डरता हैं


***

आजमाइश मैं भी क्यू करू उसकी


जिसने देख इतना प्यार करता हू कहकर

अपने दिए हुए प्यार को कभी नहीं नापा

लो आज सबके सामने कहती हूँ मैं भी

आपसे बे इन्तहा मोहब्बत करती हू पापा


***

सो जाऊँ मैं कभी ठंड में सोफ़े पर बिन

जगाए मुझे कंबल उड़ाकर मेरे कमरे तक

पहुंचा सको तो चले आओ


***

कि खूब बारिश हो जिस दिन और

मैं जमकर बीघ जाऊँ

बस करो बीमार पड़ जाओगी कहकर

छत से नीचे पुकार सकों मुझे तो चले आओ


***

भूख नहीं लगी कहकर जिद करूंगी

जब एक एक निवाले को अपना नाम

देकर खिला सको तो चले आओ

कि बिन कहे मेरी ख्वाहिशें को

कोई समझ जाये


***

इतना काबिल कोई नहीं मेरी नजर मे

लेकिन मगर हाँ मेरी आधी जुबान से

निकली चीजों को कुछ पलों मे मेरे


***

हाथ मे थमा सको तो चले आओ

कि जिस दिन गूंजे न हसी मेरी मगर

चहरे पर मेरे मुस्कान हो किस बात

का गम है पूछकर मुझे


***

सीने से लगा सको तो चले आओ

मेरी छोटी से छोटी खुशी के खातिर

लाखो खुशियो का गला दवा

सको तो चले आओ


***

कभी हम दोनों बन ठन के

घूमने जाँय कहीं पर

मुझसे ज्यादा खूबसूरत लगने के बाद

भी लाओ तुम्हारी एक तस्वीर खींच दू

ऐसा कह सको तो चले आओ


***

माँ बाप सी मोहब्बत मुझे कोई नहीं कर

पायेगा कि यह यकीन हैं मुझे

उनकी थोड़ी सी भी छवि तुम मुझे

अपने आप मे दिखा सको तो चले आओ


 
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